यह ख़बर 21 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

संजीव चतुर्वेदी, आखिर क्यों हैं सरकार के निशाने पर...?

संजीव चतुर्वेदी का फाइल चित्र

नई दिल्ली:

इसी साल स्वास्थ्य सचिव से 'ईमानदार अधिकारी' का तमगा पाने के बावजूद पांच साल में 12 बार ट्रांसफर, आधा दर्जन झूठे पुलिस मुकदमे और निलंबन के बाद राष्ट्रपति के यहां से चार बार बहाली।

यह ट्रैक रिकॉर्ड है हरियाणा कैडर के 2002 बैच के इंडियन फॉरेस्ट सर्विसेज के संजीव चतुर्वेदी का। इन्हें 20 अगस्त को एम्स के चीफ विजिलेंस आफिसर पद से भी हटा दिया गया, और दूसरी ओर, सरकार इस पोस्ट को ही खत्म करने की तैयारी भी कर रही है।

लेकिन हरियाणा कैडर का जो अधिकारी पहले हरियाणा की कांग्रेस सरकार की आंखों की किरकिरी बना था, वह अब बीजेपी के स्वास्थ्यमंत्री डा. हर्षवर्द्धन के निशाने पर है। हालांकि सरकार कहती है कि सीवीओ पोस्ट पर इनकी नियुक्ति की इजाज़त नही ली गई थी, इसलिए इन्हें हटाया गया, लेकिन सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि दो साल से वह कैसे सीवीओ के पद पर तैनात थे, और जब एम्स और खुद सीवीसी को उनके पद से ऐतराज नहीं है, तो मंत्री जी क्यों इस अधिकारी को हटाने के लिए उतावले हैं।

संजीव चतुर्वेदी, आखिर क्यों हैं सरकार के निशाने पर...?

  • दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में वर्ष 2012 में चीफ विजिलेंस आफिसर के पद पर संजीव चतुर्वेदी की नियुक्ति हुई।
  • बतौर सीवीओ, उन्होंने एम्स के तत्कालीन एडमिनिस्ट्रेटर विनीत चौधरी के खिलाफ जांच शुरू की। चौधरी के खिलाफ शिकायत थी कि उनके कुत्ते का इलाज एम्स के कैंसर सेंटर में हुआ। सरकारी गाड़ी के दुरुपयोग के अलावा कई वित्तीय अनियमितताओं का आरोप भी लगा। बाद में विनीत चौधरी के खिलाफ सीबीआई ने मामला भी दर्ज किया।
  • बतौर सीवीओ, संजीव चतुर्वेदी ने एम्स में प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड के टेंडर में करोड़ों के गबन की जांच की। इस केस में भी सीबीआई ने आईपीएस अधिकारी शैलेश यादव के खिलाफ मामला दर्ज किया।
  • बतौर सीवीओ, संजीव चतुर्वेदी ने एम्स में पूर्व कांग्रेस विधायक की दवा की दुकान पर छापेमारी की। बाद में दिल्ली पुलिस ने यहां से घटिया दवाएं बरामद कीं।

दरअसल विनीत चौधरी, शैलेश यादव, पूर्व विधायक अशोक आहूजा, सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर रहे बीएस आनंद, पूर्व रजिस्ट्रार रहे वीपी गुप्ता, पूर्व मेडिकल सुपरिंटेंडेंट आरसी आनंद, चीफ सिक्योरिटी आफिसर राजीव लोचन, चीफ एडमिनिस्ट्रेटर अत्तर सिंह, फाइनेंशियल एडवाइजर बसंत दलाल, डा. सीएस बल... ये कुछ ऐसे नाम हैं, जिनके खिलाफ बतौर सीवीओ संजीव चतुर्वेदी ने जांच की।

दो साल में इस तरह के 10 मामलों को उजागर कर संजीव चतुर्वेदी ने कई ताकतवर, लेकिन भ्रष्ट नौकरशाहों और नेताओं से दुश्मनी मोल ली। बीजेपी महासचिव जेपी नड्डा ने संजीव चतुर्वेदी को हटाने के लिए कई चिट्ठियां उस वक्त के स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद को लिखीं, लेकिन डीओपीडी ने कहा कि उनकी नियुक्ति में कोई खामी नहीं है। खुद स्वास्थ्य सचिव ने इस साल 23 मई को जेपी नड्डा को जवाब देते हुए लिखा कि संजीव चतुर्वेदी की योग्यता और कार्यशैली पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

लेकिन हाल ही में संजीव चतुर्वेदी की डा. एसी अमीनी के मामले में सीधे स्वास्थ्यमंत्री डॉ हर्षवर्द्धन से ठन गई। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने डा. एसी अमीनी पर आरोप लगाया कि एक कॉलेज की मान्यता के मामले में उन्होंने लाभ लिया, जिसके चलते उन पर जुर्माना लगाया जाए। सूत्रों के मुताबिक तत्कालीन सीवीओ संजीव चतुर्वेदी ने उनकी जांच शुरू की, लेकिन स्वास्थ्यमंत्री इस डाक्टर पर कार्रवाई करने के पक्ष में नहीं थे। सीवीओ को हटाने का मामला इसलिए भी संदेह के दायरे में है, क्योंकि सरकार इस नियुक्ति को अवैध कह रही है, जबकि एम्स में संजीव चतुर्वेदी की नियुक्ति की फाइल ही गायब हो गई। फाइल गायब होने की 18 अप्रैल, 2013 को एक रिपोर्ट भी हौजखास थाने में लिखवाई गई है।

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जानकार कहते हैं कि संजीव चतुर्वेदी को अचानक हटाने के मामले में सरकार के पास कोई ठोस तर्क न होने के चलते इस मामले में संदेह की सुई भ्रष्ट नौकरशाहों और ताकतवर नेताओं के गठजोड़ पर अटक जाती है। डर इस बात का है कि अगर इसी तरह ईमानदार अधिकारियों को बिना किसी ठोस कारण बताए हटाया जाता रहा, तो ईमानदारी ताकत की जगह बेवकूफी का प्रतीक बनती जाएगी।