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This Article is From Jun 30, 2020

सैयद अली शाह गिलानी ने आखिर हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को अलविदा क्यों कहा? यह है पर्दे के पीछे की कहानी

अलगाववादी नेता गिलानी को आईएसआई और पाकिस्तान द्वारा लगातार दरकिनार किया जा रहा था, कश्मीर घाटी में असर खो चुके थे गिलानी

सैयद अली शाह गिलानी ने आखिर हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को अलविदा क्यों कहा? यह है पर्दे के पीछे की कहानी
कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

अलगवादी हुर्रियत नेता सैयद अली गिलानी ने अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस 27 साल  बाद इसीलिए छोड़ी क्योंकि पाकिस्तान ने उन्हें बिलकुल दरकिनार कर दिया था. यह कहना है केंद्रीय गृह मंत्रालय का. 90 वर्षीय नेता ने कल कश्मीर घाटी के सबसे बड़े अलगाववादी संगठन से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ साजिश रचने और केंद्र द्वारा जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने के बाद वे अलगाववादी आंदोलन में विफल रहे.

केन्द्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर घाटी में आंदोलन  के "पतन" के लिए गिलानी पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हैं. जबकि पाकिस्तान, जो वर्षों से उस पर निर्भर था, ने स्पष्ट किया कि उसने  (गिलानी) अपनी उपयोगिता को रेखांकित किया है.  

पिछले साल अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद पाकिस्तान ने अपनी रणनीति बदल दी है. मंत्रालय में पाकिस्तान डेस्क को संभालने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि “आईएसआई का ध्यान अब कश्मीरियों के लिए नहीं बल्कि पैन इस्लामिक है. और इसके लिए वे एक ऐसा नेता चाहते हैं जो उनसे सवाल न करे और सिर्फ उनके डिक्टेट्स का पालन करे.''

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ नौकरशाह ने NDTV को बताया "हम जानते थे कि ऐसा होगा क्योंकि गिलानी को लगातार आईएसआई और पाकिस्तान द्वारा दरकिनार किया जा रहा था." अधिकारियों ने कहा कि विशेष दर्जे की व्यवस्था पर अलगाववादियों की प्रतिक्रिया ने पाकिस्तान को भी चकरा दिया है.

एक दशक से ज़्यादा वक्त से आईबी में कश्मीर डेस्क देख रहे और पाकिस्तान में भी रह चुके अविनाश मोहनने ने NDTV को बताया कि "पाकिस्तान को उम्मीद थी कि केंद्र के धारा 370 को खत्म करने के बाद कश्मीरी भारतीय राज्य के खिलाफ बगावत करेंगे, कुछ नहीं हुआ. गिलानी को उम्मीद थी कि पाकिस्तान इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और दोनों का एक-दूसरे से मोहभंग हो गया. अब दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं." 

राज्य पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह ने NDTV को बताया कि "गिलानी का एक पत्र आंख खोलने वाला था. उसने स्वीकार किया था कि उसका रास्ता गलत था.''

खुफिया रिपोर्ट कहती है कि गिलानी अन्य अलगाववादी नेताओं द्वारा धन के दुरुपयोग से भी परेशान थे. वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हुर्रियत संयोजक जीएम सफी को लेकर भी बहुत उत्सुक नहीं थे, क्योंकि उन पर धन की हेराफेरी के आरोप थे. गिलानी ने तब हुर्रियत में कई लोगों की इच्छाओं के खिलाफ अब्दुल्ला गिलानी को चुना. लेकिन ऐसा लगता है कि एक महीने पहले अब्दुल्ला के खिलाफ आईएसआई में विरोध था, इसलिए आईएसआई ने मोहम्मद हुसैन खतीब को संयोजक के रूप में चुना.” एक अधिकारी ने कहा, 'गिलानी ने इसे अपमान के रूप में देखा क्योंकि उनसे सलाह नहीं ली गई थी.'

पूर्व डीजीपी के राजेंद्र कहते हैं कि ''गिलानी ने अपने अहंकार के कारण इस्तीफा दे दिया. तीन दशक की जासूसी, अलगाववाद के बाद गिलानी ने महसूस किया है कि पाकिस्तान केवल कश्मीरियों को तबाही की ओर धकेलने में रुचि रखता था.“ उनके अनुसार 1990 के बाद से पाकिस्तान ने हज़ार मौतों को प्रायोजित किया है और अब उन्हें ड्रग्स की लत लगाकर युवाओं को निशाना बनाने में व्यस्त है. युवाओं पर हुर्रियत का धीरे-धीरे प्रभाव कम हो रहा है. गिलानी के समर्थन का आधार भी वर्षों से कमजोर पड़ गया था क्योंकि उनकी कॉल की अपील भी खो गई थी. वह अपने प्रो पाक रुख में बदलाव नहीं कर सकते हैं. 

एक खुफिया एजेंसी के प्रमुख ने कहा, "पाकिस्तान पहले गिलानी का आंख बंद करके समर्थन करता था और इसीलिए उन्होंने किन्हीं अन्य अलगाववादी नेताओं को घाटी में बढ़ने नहीं दिया." हालांकि गिलानी के उत्तराधिकारी प्रभाव नहीं डालेंगे, लेकिन आने वाले वर्षों में घाटी में अलगाव बढ़ेगा. उन्होंने कहा, क्योंकि पाकिस्तान द्वारा छोड़ी गईं नई कठपुतलियों को एक सख्त रुख अपनाने में एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी.

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