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This Article is From Dec 27, 2020

नीतीश ने भाजपा को गठबंधन धर्म की 'अटल सहिंता' के पालन की नसीहत क्यों दी?

पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने स्वीकार भी किया कि अब दोनो पार्टियों में मीडिया के माध्यम से संवाद होता हैं. उनका कहना था कि मंत्रिमंडल विस्तार भी भाजपा के तरफ़ से सूची ना मिलने के कारण रुका हुआ हैं .

नीतीश ने भाजपा को गठबंधन धर्म की 'अटल सहिंता' के पालन की नसीहत क्यों दी?
रविवार को पटना में JDU राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक हुई.
पटना:

जनता दल यूनाइटेड (JDU) और भाजपा (BJP) के बीच गठबंधन में दूरियां बढ़ती जा रही हैं .इन दोनों दलों के बीच अविश्वास अरुणाचल प्रदेश के उस घटनाक्रम के बाद और बढ़ा हैं, जब भाजपा ने जनता दल यूनाइटेड के 6 विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. रविवार को तो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी ने प्रस्ताव में यहां तक कह डाला कि अभी हाल में अरुणाचल प्रदेश की अप्रत्याशित घटना ने विपक्ष को घर बैठे हवा देने का अवसर दे दिया है, हमें गहराई से इस मुद्दे पर विचार करने की ज़रूरत है और कार्यकारणी की बैठक गठबंधन धर्म की अटल संहिता के पालन का प्रस्ताव करती है.

निश्चित रूप से इस प्रस्ताव में ‘अटल सहिंता' का ज़िक्र कर नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित साह को संदेश दिया हैं कि अपने सहयोगियों का दल तोड़कर वो स्वर्गीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के गठबंधन के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- "ये गठबंधन के लिए ठीक नहीं",अरुणाचल में जेडीयू के 6 विधायकों के बीजेपी में शामिल होने पर बोले केसी त्यागी

पार्टी नेताओं की मानें तो रविवार को बैठक के दौरान कमोबेश सभी नेता अरुणाचल की घटना से ख़फ़ा थे .सभी नेताओं ने अपने भाषण में इसका ज़िक्र कर उन्हें कम ना आंकने की नसीहत दी. दूसरी और पार्टी के नेता अब साफ़ साफ़ ये कहने लगे हैं कि भाजपा के ऊपर राजनीतिक विश्वास करना आत्मघाती होगा.

जनता दल यूनाइटेड के नेताओं के अनुसार विधानसभा चुनाव में भी जेडीयू के अधिकांश प्रत्याशियों का यही फीडबैक रहा कि उनकी हार में स्थानीय भाजपा नेताओं का असहयोग और उनका वोट ट्रांसफर ना होना सबसे बड़ा कारण रहा हैं. लेकिन पार्टी में अब वो चाहे पुराने नेता हो या नए सबका मानना हैं कि भाजपा सहयोगी बनाकर उन्हें ख़त्म करने में लगा हैं.

पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने स्वीकार भी किया कि अब दोनो पार्टियों में मीडिया के माध्यम से संवाद होता हैं. उनका कहना था कि मंत्रिमंडल विस्तार भी भाजपा के तरफ़ से सूची ना मिलने के कारण रुका हुआ हैं .

नीतीश कुमार का भी राष्ट्रीय अध्यक्ष से हट जाना एक तरफ़ से साफ़ संकेत हैं कि उनकी कोई रूचि भाजपा से बातचीत करने में नहीं है फिर चाहे वो या दिल्ली में. 

दूसरी तरफ़ उन्होंने पार्टी के कामकाज से अलग होकर भले सरकार के काम में अधिक समय देने की बात की हो लेकिन पार्टी नेताओं के अनुसार भाजपा अगर ग़लतफहमी में हैं नीतीश कुमार आत्मसम्मान से समझौता कर सता में बने रहेंगे तो उन्हें निराशा हाथ लगने वाली हैं .

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