
सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है.
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हाई फंक्शनरी के खिलाफ जांच उस दिशा में नहीं गई जैसा सरकार चाहती थी
उन मामलों के विवरण पेश कर सकते हैं जो मौजूदा हालात के लिए जिम्मेदार
DSPE अधिनियम की धारा 4 बी के विपरीत निदेशक पद से हटाया गया
आलोक वर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यह भी कहा गया है कि एक स्वतंत्र और स्वायत्त सीबीआई की आवश्यकता है. वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा कदम उस वक्त उठाया गया जब हाई फंक्शनरी के खिलाफ जांच उस दिशा में नहीं गई जो सरकार के लिए वांछनीय है. याचिका में कहा गया है कि वे कोर्ट में उन मामलों के विवरण प्रस्तुत कर सकते हैं जो वर्तमान परिस्थितियों का कारण बने. वे बेहद संवेदनशील हैं.
आलोक वर्मा ने इशारा किया है कि सरकार ने सीबीआई के कामकाज में हस्तक्षेप करने की कोशिश की. 23 अक्तूबर को रातोंरात रेपिड फायर के तौर पर CVC और DoPT ने तीन आदेश जारी किए. ये फैसले मनमाने और गैरकानूनी हैं, इन्हें रद्द किया जाना चाहिए.
याचिका में आलोक वर्मा ने कहा है कि सीवीसी, केंद्र ने मुझे सीबीआई निदेशक की भूमिका से हटाने के लिए "रातों रात निर्णय" लिया. यह फैसला DSPE अधिनियम की धारा 4 बी के विपरीत है जो एजेंसी की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए सीबीआई प्रमुख को दो साल की सुरक्षित अवधि प्रदान करता है.
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वर्मा ने कहा है कि अधिनियम के तहत PM, LoP और CJI के उच्चस्तरीय पैनल द्वारा सीबीआई निदेशक की नियुक्ति जरूरी है तो उसी तरह सीबीआई निदेशक को स्थानांतरित करने के लिए इस समिति की सहमति आवश्यक है. इस मामले में कानून से बाहर फैसला लिया गया है.
VIDEO : CBI विवाद पर सरकार की सफाई
वर्मा ने याचिका में केंद्र सरकार और CVC को पार्टी बनाया है.
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