पीएम नरेंद्र मोदी श्रीलंका में बुन रहे रिश्तों के धागे, तो उनके घर वाराणसी में नृत्य के जरिए लिखी गई नई इबारत

वाराणसी के 84 घाट पर आयोजित शास्त्रीय नृत्य कार्यक्रम में रिकॉर्ड स्तर पर शास्त्रीय नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस घाट संध्या के 100 दिन पूरे होने पर एक अनूठा रिकॉर्ड बना.

पीएम नरेंद्र मोदी श्रीलंका में बुन रहे रिश्तों के धागे, तो उनके घर वाराणसी में नृत्य के जरिए लिखी गई नई इबारत

वाराणसी के 84 घाट पर आयोजित शास्त्रीय नृत्य को देख वहा मौजूद लोग मंत्रमुग्ध हो गए.

खास बातें

  • वाराणसी के 84 घाट पर एक साथ 100 कलाकरों ने किया कथक और भरतनाट्यम
  • इस घाट पर लगातार 100 दिनों तक ऐसा आयोजन कर बना रिकॉर्ड
  • पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है वाराणसी, कोलंबो तो बनारस हवाई सेवा का ऐलान
वाराणसी:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को जहां भगवान बुद्ध के आदर्शों को मानने वाले देश श्रीलंका के साथ संबंधों को नई ऊंचाईयां देने में जुटे रहे, वहीं उनके राजनीतिक घर वाराणसी में गंगा के 84 घाट पर शास्त्रीय नृत्य का आयोजन कर दुनिया को भारतीय संस्कृति से रूबरू कराया गया. यहां गौर करने वाली बात यह है कि वाराणसी के सारनाथ में भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश दिया था और श्रीलंका में बौद्ध धर्म के काफी अनुयायी हैं. यानी बुद्ध के जरिए करीब 3000 किलोमीटर की दूरी पर बसे श्रीलंका और वाराणसी में रिश्ते बनाने का संदेश दिया गया. इस रिश्ते को प्रगाढ़ करने के लिए पीएम मोदी ने कोलंबो से वाराणसी के लिए सीधे हवाई सेवा शुरू करने का ऐलान कर दिया. 

बनारस में गंगा के किनारे बने 84 घाट खुले आकाश के नीचे अर्धचन्द्राकार मुक्ताशीय मंच से नजर आते हैं. गंगा के किनारे इन्ही घाटों पर कभी बिस्म्मिल्लाह की शहनाई गूंजा करती थी, तो कभी किशन महराज गुदई महराज के तबले के थाप पर भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला लोगों को मन्त्र मुग्ध करती थी. बीते कई सालों से गंगा के ये घाट इन कलाओं से सूने पड़ गये थे.

इन्ही कलाओं को फिर से जीवंत करने और नए कलाकारों को मंच देने के लिये बनारस के अस्सी घाट के बगल के रीवां घाट पर घाट संध्या की शुरआत की गई. इस घाट संध्या पर हर दिन शाम को कोई न कोई कलाकार भारतीय नृत्य की प्रस्तुति करते हैं. इस कार्यक्रम के शुरू हुए 100 दिन पूरे हो गये. इन 100 दिनों में खास बात ये रही कि किसी भी दिन कलाकार रिपीट नहीं हुए यानी हर दिन नए कलाकार ने इस मुक्तासिय मंच पर अपनी प्रतिभा लोगों के सामने प्रस्तुत की.  

इस घाट संध्या के 100 दिन पूरे होने पर एक अनूठा रिकॉर्ड बना. इस मंच पर सौवें दिन सौ कलाकारों ने एक साथ प्रस्तुति की. इसमें 50 कलाकारों ने कथ्थक की बंदिश पर घुंघरुओं की झंकार से गंगा के किनारे सुर लय ताल की त्रिवेणी बहाई तो भरत नाट्यम के 50 कलाकारों ने अपनी भावभंगिमा से दर्शाकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. 

घुंघरुओं की झंकार, तबले की थाप और भावों के संगम ने इन प्राचीन नगर की पहचान को एक बार फिर शीर्ष तक लेजाने का उत्साह भरा, उम्मीद जगाई और लोगों को कला की इस अनूठी नगरी की पुरानी पहचान से रूबरू कराया, जिससे सभी निहाल हो गये. घाट संध्या का ये कांरवां अब लगातार अपनी ऊंचाई झू रहा है यही वजह है कि मंच पर बड़े से बड़े कलाकार भी अपनी प्रस्तुति देने के लिए आगे आ रहे हैं.


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