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मणिपुर:
मणिपुर में इनर लाइन परमिट कानून को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद रविवार को दिल्ली पहुंच गया। कुकी और नगा आदिवासी समुदाय के कई लोगों ने दिल्ली के मणिपुर भवन के आगे प्रदर्शन किया।
ये लोग हाथों में बैनर और पोस्टर लिए हुए थे, जिसमें लिखे नारों में आरोप लगे थे कि सरकार पहाड़ी इलाकों में रहे रहे आदिवासी समुदाय के साथ भेदभाव कर रही है।
मणिपुर सरकार ने पिछले 31 अगस्त को तीन कानून पास किए थे, जिसके बाद पहाड़ी ज़िले चूड़ाचांदपुर में हिंसा भड़क गई। पुलिस फायरिंग में कुल नौ लोगों की मौत हुई, जिनके शव अब भी शवगृह में रखे हुए हैं और कुकी आदिवासी उनका अंतिम संस्कार करने को तैयार नहीं है। उनकी मांग है कि पहले सरकार नए कानूनों को वापस ले उसके बाद ही ये अपने 'शहीदों' का अंतिम संस्कार करेंगे।
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इससे पहले मैती समुदाय ने भी पुलिस की गोली से मारे गए स्कूली छात्र सपम रॉबिनहुड का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था और करीब दो महीने बाद ही पिछले 3 सितंबर को उसका शव लेने को तैयार हुए जब सरकार ने नए कानून बनाए।
मणिपुर भवन के बाहर हुए विरोध-प्रदर्शन में भी प्रदर्शनकारी मारे गए लोगों की तस्वीरें और उनके सम्मान में लिखी तख्तियां अपने हाथों में लिए हुए थे। इनमें से एक तख्ती में अंग्रेजी में लिखा था 'सरकार की गोली हमें चुप नहीं करा सकती। प्रदर्शनकारियों ने जो बैनर लगाया उसमें लिखा था, 'हम मणिपुर सरकार की ओर से आदिवासियों के साथ किए जा रहे भेदभाव और अन्याय की निंदा करते हैं।'
पढ़ें- मंझधार में मणिपुर
गौरतलब है कि मणिपुर में घाटी में रह रहे मैती समुदाय और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी और नगा आदिवासियों में इनर लाइन परमिट कानून को लेकर विवाद है। मैती इस बात की मांग करते रहे हैं कि घाटी में बाहरी लोगों के आने से दबाव बढ़ रहा है और किसी न किसी तरह के नियंत्रण की जरूरत है। इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार ने पिछली 31 अगस्त को कानून पास किए, जिसके बाद ये हिंसा भड़की।
ये लोग हाथों में बैनर और पोस्टर लिए हुए थे, जिसमें लिखे नारों में आरोप लगे थे कि सरकार पहाड़ी इलाकों में रहे रहे आदिवासी समुदाय के साथ भेदभाव कर रही है।
मणिपुर सरकार ने पिछले 31 अगस्त को तीन कानून पास किए थे, जिसके बाद पहाड़ी ज़िले चूड़ाचांदपुर में हिंसा भड़क गई। पुलिस फायरिंग में कुल नौ लोगों की मौत हुई, जिनके शव अब भी शवगृह में रखे हुए हैं और कुकी आदिवासी उनका अंतिम संस्कार करने को तैयार नहीं है। उनकी मांग है कि पहले सरकार नए कानूनों को वापस ले उसके बाद ही ये अपने 'शहीदों' का अंतिम संस्कार करेंगे।
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इससे पहले मैती समुदाय ने भी पुलिस की गोली से मारे गए स्कूली छात्र सपम रॉबिनहुड का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था और करीब दो महीने बाद ही पिछले 3 सितंबर को उसका शव लेने को तैयार हुए जब सरकार ने नए कानून बनाए।
पढ़ें-मणिपुर में 17 बरस के रॉबिनहुड को अंतिम विदाई देने 25 हजार से ज्यादा पहुंचे
मणिपुर भवन के बाहर हुए विरोध-प्रदर्शन में भी प्रदर्शनकारी मारे गए लोगों की तस्वीरें और उनके सम्मान में लिखी तख्तियां अपने हाथों में लिए हुए थे। इनमें से एक तख्ती में अंग्रेजी में लिखा था 'सरकार की गोली हमें चुप नहीं करा सकती। प्रदर्शनकारियों ने जो बैनर लगाया उसमें लिखा था, 'हम मणिपुर सरकार की ओर से आदिवासियों के साथ किए जा रहे भेदभाव और अन्याय की निंदा करते हैं।'
पढ़ें- मंझधार में मणिपुर
गौरतलब है कि मणिपुर में घाटी में रह रहे मैती समुदाय और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी और नगा आदिवासियों में इनर लाइन परमिट कानून को लेकर विवाद है। मैती इस बात की मांग करते रहे हैं कि घाटी में बाहरी लोगों के आने से दबाव बढ़ रहा है और किसी न किसी तरह के नियंत्रण की जरूरत है। इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार ने पिछली 31 अगस्त को कानून पास किए, जिसके बाद ये हिंसा भड़की।
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