
देहरादून:
उत्तराखंड के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जिंदगियों को बचाने में भारतीय सशस्त्र बलों के जवान जी-जान लगाए हुए हैं, मगर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में राहत अभियान चलाने में उन्हें बहुत कठिनाइयों से गुजरना पड़ रहा है।
अपनी सुरक्षा की चिंता को परे रखते हुए, ईंधन आपूर्ति के दबाव को झेलते हुए भारतीय सशस्त्र बलों के जवान जिनमें से कुछ ने माउंट एवरेस्ट पर भी फतह की है, उत्तराखंड के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जिंदगियों को बचाने में समय के साथ होड़ लगाए हुए हैं। उनके लिए उद्देश्य की अनिवार्यता और आपदा में जीवित बच गए लोगों की आंखों में उम्मीद की लौ प्रेरणा का काम कर रहा है।
शनिवार की शाम तक करीब 70,000 लोगों को निकाला गया था। करीब 20,000 लोग अभी भी लापता हैं। हिमालयी सुनामी की चपेट में आकर मरने वालों का अधिकृत आंकड़ा शनिवार तक 557 था, लेकिन आपदा से मारे गए लोगों की संख्या बढ़ने की आशंका है।
भारतीय सेना, भारतीय वायुसेना, भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), सीमा सुरक्षा संगठन (बीआरओ) और राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल (एनडीआरएफ) के कर्मी बद्रीनाथ और केदारनाथ क्षेत्र और राज्य के अन्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बादल फटने के बाद आई बाढ़ के कारण फंसे तीर्थयात्रियों को बचाने के जीतोड़ प्रयास में जुटे हैं।
वायुसेना ने हवाई ईंधन सेतु की बेजोड़ व्यवस्था की है, आईटीबीपी ने अपनी एवरेस्ट पवर्तारोहियों को तैनात किया है और एनडीआरएफ जीवित बचे लोगों और प्रभावितों की तलाश के लिए मानव रहित विमान का इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है।
विभिन्न एजेंसियों के अधिकारियों ने कहा कि पहाड़ी राज्य में राहत कार्यों के दौरान वे लोग कठिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और संकट में फंसे लोगों को उबारने की युक्ति निकाल रहे हैं।
वायुसेना के एक अधिकारी ने कहा कि पहाड़ के खतरनाक कटनों और खराब मौसमी परिस्थिति में पायलट राहत अभियान को अंजाम दे रहे हैं।
वायुसेना के एक अधिकारी ने कहा, "पायलटों के उड़ान के घंटे को लेकर कड़े नियम हैं, लेकिन हम नियम पुस्तिका का कड़ाई से पालन नहीं कर रहे हैं। हम ज्यादा से ज्यादा राहत कार्य अंजाम देने में जुटे हैं।" ऑपरेशन राहत के तहत शनिवार दोपहर तक वायुसेना के हेलीकॉप्टरों ने 768 उड़ानें भरी थीं। अधिकारी ने कहा कि जीवित बच गए लोगों की उम्मीद उन्हें प्रयास जारी रखने के लिए प्रेरित कर रही है।
खराब मौसम के बावजूद हाल ही में शामिल सी-130जे सुपर हरक्यूलस विमान राजधानी देहरादून से 155 किलोमीटर दूर धारसू में शनिवार को उतरा। यहां 1300 मीटर का लैंडिंग ग्राउंड है।
वायुसेना की प्रवक्ता प्रिया जोशी ने कहा, "इस विमान ने एक रिक्त बोवसर में 8000 लीटर ईंधन भरा। पहले यह एमआई 26 हेलीकॉप्टर से एयर लिफ्ट किया गया था। धारसू में अतिरिक्त ईंधन मुहैया होने के बाद राहत अभियान ने गति पकड़ ली।" उन्होंने बताया कि विमान में इस्तेमाल होने वाले ईंधन की कमी के कारण अभियान सीमित है। दूसरा सी-130जे विमान ने और ईंधन धारसू पहुंचाया।
आईटीबीपी ने माउंट एवरेस्ट पर फतह करने वाले अपने सदस्यों की टीम भेजी है। आईटीबीपी के प्रमुख अजय चड्ढा ने आईएएनएस को बताया, "हमारे पास एक विशेष दल है जिसने माउंट एवरेस्ट फतह किया था। उनके पास विशेष उपकरण हैं। वे राहत अभियान में जुटे हैं।"
आईटीबीपी के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि चीन सीमा पर कर्तव्य निभाने के बाद जो कर्मी आराम कर रहे थे उन्हें भी अभियान में उतारा गया है। उन्होंने कहा, "उत्तराखंड में पदस्थ कर्मी वहां की चट्टानी बनावट से भलिभांति परिचित हैं।"
अधिकारी ने कहा, "भोजन के अभाव में कमजोर हो गए तीर्थयात्रियों को हमारे कर्मियों ने अपनी अपनी परवाह न कर पीठ पर ढोया है।"
अपनी सुरक्षा की चिंता को परे रखते हुए, ईंधन आपूर्ति के दबाव को झेलते हुए भारतीय सशस्त्र बलों के जवान जिनमें से कुछ ने माउंट एवरेस्ट पर भी फतह की है, उत्तराखंड के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जिंदगियों को बचाने में समय के साथ होड़ लगाए हुए हैं। उनके लिए उद्देश्य की अनिवार्यता और आपदा में जीवित बच गए लोगों की आंखों में उम्मीद की लौ प्रेरणा का काम कर रहा है।
शनिवार की शाम तक करीब 70,000 लोगों को निकाला गया था। करीब 20,000 लोग अभी भी लापता हैं। हिमालयी सुनामी की चपेट में आकर मरने वालों का अधिकृत आंकड़ा शनिवार तक 557 था, लेकिन आपदा से मारे गए लोगों की संख्या बढ़ने की आशंका है।
भारतीय सेना, भारतीय वायुसेना, भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), सीमा सुरक्षा संगठन (बीआरओ) और राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल (एनडीआरएफ) के कर्मी बद्रीनाथ और केदारनाथ क्षेत्र और राज्य के अन्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बादल फटने के बाद आई बाढ़ के कारण फंसे तीर्थयात्रियों को बचाने के जीतोड़ प्रयास में जुटे हैं।
वायुसेना ने हवाई ईंधन सेतु की बेजोड़ व्यवस्था की है, आईटीबीपी ने अपनी एवरेस्ट पवर्तारोहियों को तैनात किया है और एनडीआरएफ जीवित बचे लोगों और प्रभावितों की तलाश के लिए मानव रहित विमान का इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है।
विभिन्न एजेंसियों के अधिकारियों ने कहा कि पहाड़ी राज्य में राहत कार्यों के दौरान वे लोग कठिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और संकट में फंसे लोगों को उबारने की युक्ति निकाल रहे हैं।
वायुसेना के एक अधिकारी ने कहा कि पहाड़ के खतरनाक कटनों और खराब मौसमी परिस्थिति में पायलट राहत अभियान को अंजाम दे रहे हैं।
वायुसेना के एक अधिकारी ने कहा, "पायलटों के उड़ान के घंटे को लेकर कड़े नियम हैं, लेकिन हम नियम पुस्तिका का कड़ाई से पालन नहीं कर रहे हैं। हम ज्यादा से ज्यादा राहत कार्य अंजाम देने में जुटे हैं।" ऑपरेशन राहत के तहत शनिवार दोपहर तक वायुसेना के हेलीकॉप्टरों ने 768 उड़ानें भरी थीं। अधिकारी ने कहा कि जीवित बच गए लोगों की उम्मीद उन्हें प्रयास जारी रखने के लिए प्रेरित कर रही है।
खराब मौसम के बावजूद हाल ही में शामिल सी-130जे सुपर हरक्यूलस विमान राजधानी देहरादून से 155 किलोमीटर दूर धारसू में शनिवार को उतरा। यहां 1300 मीटर का लैंडिंग ग्राउंड है।
वायुसेना की प्रवक्ता प्रिया जोशी ने कहा, "इस विमान ने एक रिक्त बोवसर में 8000 लीटर ईंधन भरा। पहले यह एमआई 26 हेलीकॉप्टर से एयर लिफ्ट किया गया था। धारसू में अतिरिक्त ईंधन मुहैया होने के बाद राहत अभियान ने गति पकड़ ली।" उन्होंने बताया कि विमान में इस्तेमाल होने वाले ईंधन की कमी के कारण अभियान सीमित है। दूसरा सी-130जे विमान ने और ईंधन धारसू पहुंचाया।
आईटीबीपी ने माउंट एवरेस्ट पर फतह करने वाले अपने सदस्यों की टीम भेजी है। आईटीबीपी के प्रमुख अजय चड्ढा ने आईएएनएस को बताया, "हमारे पास एक विशेष दल है जिसने माउंट एवरेस्ट फतह किया था। उनके पास विशेष उपकरण हैं। वे राहत अभियान में जुटे हैं।"
आईटीबीपी के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि चीन सीमा पर कर्तव्य निभाने के बाद जो कर्मी आराम कर रहे थे उन्हें भी अभियान में उतारा गया है। उन्होंने कहा, "उत्तराखंड में पदस्थ कर्मी वहां की चट्टानी बनावट से भलिभांति परिचित हैं।"
अधिकारी ने कहा, "भोजन के अभाव में कमजोर हो गए तीर्थयात्रियों को हमारे कर्मियों ने अपनी अपनी परवाह न कर पीठ पर ढोया है।"
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