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This Article is From Jan 22, 2022

उत्तर प्रदेश चुनाव : पश्चिमी यूपी में सपा-आरएलडी गठबंधन में टकराव के हालात

टिकट न मिलने से समाजवादी पार्टी और उसकी गठबंधन में सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के नेता चुनाव मैदान में आमने-सामने

जयंत चौधरी और अखिलेश यादव (फाइल फोटो).

नई दिल्ली:

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के लिए बागी उम्मीदवार सिरदर्द साबित हो रहे हैं. मुजफ्फर नगर, मेरठ, मथुरा और आगरा जैसे जिलों की कुछ सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल (RLD) और समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं के बीच टकराव देखने  को मिल रहा है. पश्चिमी यूपी में गठबंधन में परेशानी देखने को मिल रही है.

अखिलेश यादव के करीबी संजय लाठर RLD के निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं और वे मथुरा के मांट विधानसभा क्षेत्र में दिन रात लोगों से मिल रहे हैं. हालांकि वे सपा के MLC रहे हैं लेकिन मांट विधानसभा में नामांकन RLD के निशान से किया है. इसी के चलते RLD नेता योगेश नौहवार उनके सियासी दुश्मन बन गए हैं. अब संजय लाठर उनको मनाने की बात कह रहे हैं.

संजय लाठर  ने कहा कि ''मैं गठबंधन का प्रत्याशी हूं. योगेश को एबी फार्म मिल गया था लेकिन कल जयंत चौधरी ने दे दिया फार्म अब वे नहीं लड़ पाएंगे.''

लेकिन ये बात जितनी आसान लग रही है उतनी है नहीं. सन 2017 में मांट विधानसभा श्रेत्र से RLD के उम्मीदवार के तौर पर योगेश नौहवार महज 600 वोटों से हार गए थे. इस बार फिर RLD से नामांकन भरा है. अब एक ही सीट पर गठबंधन के दो नेता आमने-सामने हैं.

मांट विधानसभा सीट से प्रत्याशी योगेश नौहवार ने कहा कि ''मुझे जयंत जी ने कहा कि पर्चा वापस ले लो लेकिन मैंने कह दिया मैं चुनाव लड़ूंगा. चार दिन पहले खुद जयंत जी ने मुझे बुलाकर टिकट दिया था. जश्न का माहौल था.''

दरअसल सपा ने 32 सीटें RLD को दी हैं लेकिन 8 जगहों पर सपा के उम्मीदवार RLD के निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि मुजफ्फर नगर और सहारनपुर जैसे जिलों में सपा ने अपनी कई सीटें RLD को दे दी हैं. नाराज नेताओं में आगरा देहात से पूर्व विधायक और RLD के नेता काली चरण सुमन भी हैं. जब टिकट नहीं मिला तो इन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया.

काली चरण सुमन ने कहा कि ''RLD के स्थानीय नेता नहीं चाहते हैं कि कोई अच्छा आदमी रहे RLD में. इसी के चलते आज मैंने बीजेपी ज्वाइन कर लिया.''

यही नहीं मेरठ के सिवालखास और बागपय के छपरौली विधानसभा सीटों पर भी विरोध के स्वर तेज हो गए हैं. देखना है क्या गठबंधन जाट- मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में सफल हो पाता है या नहीं. 

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