नागरिकता संशोधन कानून पर विरोध प्रदर्शन के दौरान जो हिंसा हुई, उसमें शामिल असामाजिक तत्वों और अपराधियों की पहचान फेस रिकग्नीशन यानी चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर के जरिए की जा रही है. दिल्ली पुलिस ने हाल ही में इस तकनीक का प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में भी किया था. नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दिल्ली के जामिया नगर, सीलमपुर और दरियागंज में वे कौन लोग थे जिन्होंने हिंसा की, गाड़ियां जलाईं और करोड़ों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया? क्या इसमें अपराधी और असामाजिक तत्व भी शामिल थे? इस सवाल का जवाब खोजने के लिए दिल्ली पुलिस फेस रिकग्नीशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने जा रही है.
दरअसल फेस रिकग्नीशन सॉफ्टवेयर दो तरह से काम करता है. पहला लाइव फीड से और दूसरा रिकॉर्ड हुए वीडियो से. दिल्ली पुलिस ने डेढ़ लाख हिस्ट्रीशीटरों का डाटा तैयार किया है. 2000 आतंकियों का डाटा भी तैयार है. यह डाटा फेस रिकग्नीशन सॉफ्टवेयर में फीड है. पुलिस जब किसी कार्यक्रम में सीसीटीवी कैमरों से लाइव रिकॉर्डिंग करवाती है तब भीड़ में मौजूद चेहरों का मिलान सॉफ्टवेयर में मौजूद चेहरों से किया जाता है. फोटो का मिलान होते ही अलार्म बजता है और संदिग्ध को मौके पर ही पकड़ लिया जाता है.
इसी तरह हाल ही में हुई हिंसा और विरोध प्रदर्शन के वीडियो इस सॉफ्टवेयर में डाले जा रहे हैं. यह सॉफ्टवेयर बता देगा कि इन विरोध प्रदर्शनों में कितने अपराधी और असामाजिक तत्व शामिल थे.
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पुलिस ने इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश पर 2018 में गायब बच्चों को खोजने के लिए शुरू किया था. पुलिस के चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर में अभी दो लाख से ज्यादा लोगों का डाटा फीड है. इसे नौ लाख तक किया जा सकता है. इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग दो बार स्वतंत्रता दिवस और एक बार गणतंत्र दिवस में किया गया.
हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी की रैली में भी भीड़ में संदिग्ध लोगों की पहचान के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल हुआ. अब हाल ही में हुई हिंसा में अपराधियों और असमाजिक तत्वों की पहचान भी इसी के जरिए की जा रही है.
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