न्यूयार्क:
भोपाल गैस कांड के पीड़ितों को गुरुवार को उस वक्त करारा झटका लगा जब अमेरिका की एक अदालत ने कहा कि न तो यूनियन कार्बाइड और न ही उसके पूर्व अध्यक्ष वारेन एंडरसन भोपाल में फर्म के पूर्व रासायनिक संयंत्र में पर्यावरण सुधार या पर्यावरण से संबंधित दावों के लिए जिम्मेदार हैं।
मैनहट्टन में अमेरिकी जिला न्यायाधीश जॉन कीना ने उस वाद को खारिज कर दिया जिसमें कंपनी पर दुर्घटना के कारण भोपाल संयंत्र के आस-पास मृदा एवं जल प्रदूषण का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा कि यूनियन कार्बाइड कापरेरेशन (यूसीसी) और एंडरसन सुधार या प्रदूषण से संबंधित दावों के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
अदालत ने कहा कि मूल कंपनी यूसीसी नहीं बल्कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड उन कचरों के पैदा होने और उसके निपटारे के लिए जिम्मेदार है, जिसने पेयजल को प्रदूषित किया है और इसके लिए जवाबदेही राज्य सरकार पर है।
याचिकाकर्ता जानकी बाई साहू और अन्य ने आरोप लगाया था कि भोपाल में संयंत्र स्थल के आस-पास आवासीय इलाके में जहरीला पदार्थ रिसकर जमीनी चट्टानी परत में चला गया है और इसने मृदा और पेयजल को प्रदूषित किया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड द्वारा पैदा हानिकारक कचरे के संपर्क में आने से मृदा और पेयजल प्रदूषित हो गया है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘संक्षिप्त फैसले का रिकॉर्ड निश्चित तौर पर इस बात का संकेत देता है कि यूसीआईएल ने यूसीसी से कचरे का निपटान करने और गैर पर्यावरणीय व्यापारिक मामलों तथा रणनीतिक योजना आदि के बारे में सलाह-मशविरा किया था। हालांकि, सबूत में ऐसा कुछ भी दर्शाने के लिए नहीं है कि याचिकाकर्ता ने जिस बारे में शिकायत की है उस कार्रवाई के लिए यूसीसी की मंजूरी की आवश्यकता है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘इसके अलावा, व्यापक रिकार्ड में इस बात को दर्शाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि यूसीआईएल ने यूसीसी की तरफ से कीटनाशकों का निर्माण किया, यूसीसी की तरफ से अनुबंध किया या अन्य व्यावसायिक लेन-देन किया या अन्य रूप में यूसीसी के नाम पर काम किया।’’ भारतीय इतिहास की सबसे भीषण इस औद्योगिक दुर्घटना में जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के लीक होने से मध्य प्रदेश में हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
लिखित में अपनी राय जाहिर करते हुए न्यायाधीश कीनन ने कहा कि साक्ष्यों को याचिकाकर्ता के हिसाब से देखने पर भी यूसीसी सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है, न तो यूसीआईएल के एजेंट के तौर पर और न ही कॉरपोरेट आवरण हटाकर उसका विश्लेषण करने के बाद।
केएफसी मामले में 1998 में अदालत द्वारा दिए गए एक फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि कानूनी तौर पर सिर्फ यह कहने से कि मूल कंपनी अपनी आनुषंगिक कंपनी के फैसले लेने की प्रक्रिया में शामिल है या थी या उसने अपनी आनुषंगिक कंपनी की वैध नीतियों को नियंत्रित किया, इससे अलग-अलग कॉरपोरेट इकाइयों के बीच दायित्व नहीं स्थानांतरित हो जाएगा। अदालत ने कहा, ‘‘इसके अलावा इस बात को सुझाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि यूसीसी की मंजूरी की शक्ति रणनीतिक योजना और यूसीआईएल ऑपरेशंस के अन्य क्षेत्रों तक थी।’’ अदालत ने कहा कि 1984 में गैस लीक होने की इस घटना के बाद भारत सरकार ने भोपाल संयंत्र को बंद कर दिया। इसमें हजारों लोगों की मौत हुई थी।
1994 में यूसीसी ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी बेच दी। इसके बाद यूसीआईएल ने इसका नाम बदलकर एवरेडी इंडस्ट्रीज इंडिया लिमिटेड (ईआईआईएल) रख दिया। 1998 में अपने भोपाल संयंत्र स्थल का पट्टा खत्म कर दिया और संपत्ति मध्य प्रदेश सरकार को सौंप दी।
अदालत ने कहा, ‘‘प्रत्यक्ष जवाबदेही के सिलसिले में चर्चा के अनुसार विस्तृत त्वरित फैसला रिकॉर्ड दर्शाता है कि यूसीसी की बेहद मामूली भूमिका थी।’’
अदालत ने कहा, ‘‘धोखाधड़ी या अन्याय रोकने के लिए कॉपरेरेट आवरण को उठाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि अगर इस बात के सबूत हैं भी कि यूसीसी का यूसीआईएल पर वर्चस्व था तो भी इस बात के कोई आरोप या सबूत नहीं हैं कि यूसीसी ने याचिकाकर्ता के साथ धोखाधड़ी या उसे नुकसान पहुंचाने की मंशा से ऐसा किया।’’ गौरतलब है कि दिसंबर 1984 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से गैस के रिसाव में तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, स्वतंत्र संगठनों के आकलन के अनुसार पर्यावरण में जहरीले कचरे के दुष्प्रभावों के कारण विगत कई वषरें में हजारों लोगों की मौत हुई है।
फैसले के बाद यूसीसी ने एक वक्तव्य में कहा, ‘‘सार रूप में, अदालत का बुधवार का फैसला न सिर्फ यूसीसी के खिलाफ याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करता है बल्कि इस बात को भी स्पष्ट करता है कि यूसीसी की संयंत्र स्थल के संबंध में कोई जवाबदेही नहीं है और इस बात को स्वीकार करती है कि संयंत्र स्थल के स्वामित्व और जवाबदेही का मामला मध्य प्रदेश सरकार का है।’’
मैनहट्टन में अमेरिकी जिला न्यायाधीश जॉन कीना ने उस वाद को खारिज कर दिया जिसमें कंपनी पर दुर्घटना के कारण भोपाल संयंत्र के आस-पास मृदा एवं जल प्रदूषण का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा कि यूनियन कार्बाइड कापरेरेशन (यूसीसी) और एंडरसन सुधार या प्रदूषण से संबंधित दावों के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
अदालत ने कहा कि मूल कंपनी यूसीसी नहीं बल्कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड उन कचरों के पैदा होने और उसके निपटारे के लिए जिम्मेदार है, जिसने पेयजल को प्रदूषित किया है और इसके लिए जवाबदेही राज्य सरकार पर है।
याचिकाकर्ता जानकी बाई साहू और अन्य ने आरोप लगाया था कि भोपाल में संयंत्र स्थल के आस-पास आवासीय इलाके में जहरीला पदार्थ रिसकर जमीनी चट्टानी परत में चला गया है और इसने मृदा और पेयजल को प्रदूषित किया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड द्वारा पैदा हानिकारक कचरे के संपर्क में आने से मृदा और पेयजल प्रदूषित हो गया है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘संक्षिप्त फैसले का रिकॉर्ड निश्चित तौर पर इस बात का संकेत देता है कि यूसीआईएल ने यूसीसी से कचरे का निपटान करने और गैर पर्यावरणीय व्यापारिक मामलों तथा रणनीतिक योजना आदि के बारे में सलाह-मशविरा किया था। हालांकि, सबूत में ऐसा कुछ भी दर्शाने के लिए नहीं है कि याचिकाकर्ता ने जिस बारे में शिकायत की है उस कार्रवाई के लिए यूसीसी की मंजूरी की आवश्यकता है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘इसके अलावा, व्यापक रिकार्ड में इस बात को दर्शाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि यूसीआईएल ने यूसीसी की तरफ से कीटनाशकों का निर्माण किया, यूसीसी की तरफ से अनुबंध किया या अन्य व्यावसायिक लेन-देन किया या अन्य रूप में यूसीसी के नाम पर काम किया।’’ भारतीय इतिहास की सबसे भीषण इस औद्योगिक दुर्घटना में जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के लीक होने से मध्य प्रदेश में हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
लिखित में अपनी राय जाहिर करते हुए न्यायाधीश कीनन ने कहा कि साक्ष्यों को याचिकाकर्ता के हिसाब से देखने पर भी यूसीसी सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है, न तो यूसीआईएल के एजेंट के तौर पर और न ही कॉरपोरेट आवरण हटाकर उसका विश्लेषण करने के बाद।
केएफसी मामले में 1998 में अदालत द्वारा दिए गए एक फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि कानूनी तौर पर सिर्फ यह कहने से कि मूल कंपनी अपनी आनुषंगिक कंपनी के फैसले लेने की प्रक्रिया में शामिल है या थी या उसने अपनी आनुषंगिक कंपनी की वैध नीतियों को नियंत्रित किया, इससे अलग-अलग कॉरपोरेट इकाइयों के बीच दायित्व नहीं स्थानांतरित हो जाएगा। अदालत ने कहा, ‘‘इसके अलावा इस बात को सुझाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि यूसीसी की मंजूरी की शक्ति रणनीतिक योजना और यूसीआईएल ऑपरेशंस के अन्य क्षेत्रों तक थी।’’ अदालत ने कहा कि 1984 में गैस लीक होने की इस घटना के बाद भारत सरकार ने भोपाल संयंत्र को बंद कर दिया। इसमें हजारों लोगों की मौत हुई थी।
1994 में यूसीसी ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी बेच दी। इसके बाद यूसीआईएल ने इसका नाम बदलकर एवरेडी इंडस्ट्रीज इंडिया लिमिटेड (ईआईआईएल) रख दिया। 1998 में अपने भोपाल संयंत्र स्थल का पट्टा खत्म कर दिया और संपत्ति मध्य प्रदेश सरकार को सौंप दी।
अदालत ने कहा, ‘‘प्रत्यक्ष जवाबदेही के सिलसिले में चर्चा के अनुसार विस्तृत त्वरित फैसला रिकॉर्ड दर्शाता है कि यूसीसी की बेहद मामूली भूमिका थी।’’
अदालत ने कहा, ‘‘धोखाधड़ी या अन्याय रोकने के लिए कॉपरेरेट आवरण को उठाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि अगर इस बात के सबूत हैं भी कि यूसीसी का यूसीआईएल पर वर्चस्व था तो भी इस बात के कोई आरोप या सबूत नहीं हैं कि यूसीसी ने याचिकाकर्ता के साथ धोखाधड़ी या उसे नुकसान पहुंचाने की मंशा से ऐसा किया।’’ गौरतलब है कि दिसंबर 1984 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से गैस के रिसाव में तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, स्वतंत्र संगठनों के आकलन के अनुसार पर्यावरण में जहरीले कचरे के दुष्प्रभावों के कारण विगत कई वषरें में हजारों लोगों की मौत हुई है।
फैसले के बाद यूसीसी ने एक वक्तव्य में कहा, ‘‘सार रूप में, अदालत का बुधवार का फैसला न सिर्फ यूसीसी के खिलाफ याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करता है बल्कि इस बात को भी स्पष्ट करता है कि यूसीसी की संयंत्र स्थल के संबंध में कोई जवाबदेही नहीं है और इस बात को स्वीकार करती है कि संयंत्र स्थल के स्वामित्व और जवाबदेही का मामला मध्य प्रदेश सरकार का है।’’
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