बीजेपी ने संकल्प पत्र तैयार करने के लिए आज दिल्ली के अल्पसंख्यकों की राय ली. इस मौके पर मौजूद मुख्तार अब्बास नकवी और थावरचंद गहलोत को अल्पसंख्यंकों के कुछ तीखे सवालों से भी रुबरु होना पड़ा.
सवाल उठा कि ऐसा लगता है कि बीजेपी को मुसलमानों को वोट की जरूरत नहीं है. बीजेपी हमें अछूत क्यों मानती है? साजिद रशीदी के इस तरह के कड़े सवालों से संकल्प पत्र के लिए सुझाव लेने आए बीजेपी के दो केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और थावरचंद गहलोत को दो चार होना पड़ा. हालांकि गुरुवार को अल्पसंख्यक समाज के बुद्धिजीवी, कला सिनेमा और पत्रकारों को सुझाव देने के लिए बुलाया था लेकिन आतंकवाद से लेकर मुसलमानों पर शक करने का मुद्दा जोरशोर से उठा. इस पर मंत्री जी को सफाई तक देनी पड़ी.
दिल्ली इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष साजिद रशीद ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर निर्दोष बच्चों को उठाया जाता है. फिर सालों केस चलने के बाद वे निर्दोष साबित होते हैं, लेकिन उनकी जिंदगी खराब हो जाती है. उनके पुनर्वास के लिए भी सोचना चाहिए. अल्पसंख्यक मामले के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि बिल्कुल ये सरकार के लिए चिंता का विषय है. हम आपकी बात को जरूर पहुंचाएंगे.
दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस जेडयू खान ने कहा कि हम अगर सरदार की पगड़ी पहन लें तो हम पर शक नहीं होता है लेकिन जैसे ही हम टोपी और पैजामा पहन लेते हैं लोग हम पर शक करने लगते हैं, आखिर ऐसा क्यों है?
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लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी देशभर में अलग-अलग समुदायों और पेशेवरों से राय ले रही है ताकि उनका सुझाव संकल्प पत्र में शामिल किया जाए. अल्पसंख्यकों की राय जानने के लिए दिल्ली के करीब तीन सौ लोगों को बुलाया गया था जिसमें जाने माने निर्माता निर्देशक मुजफ्फर अली से लेकर क्रिश्चियन और पारसी समुदाय से भी तमाम लोग पहुंचे. लेकिन सबकी शिकायत यही थी कि बीजेपी सरकार में उनकी भागीदारी बहुत कम रही.
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मुजफ्फर अली ने कहा कि हम मल्टी कल्चरल देश हैं. साहित्य कला की समिति में सभी कम्युनिटी के लोगों को शामिल किया जाए. कैथोलिक बिशप फादर जोसेफ ने कहा कि शिक्षा से जुड़ी समस्याओं में क्रिश्चियन कम्युनिटी की भागीदारी बढ़ाई जाए.
संकल्प पत्र के लिए बीजेपी की कोशिश है कि देशभर में करीब दो करोड़ लोगों से राय लेकर हर समुदाय की समस्या को शामिल किया जाए लेकिन अल्पसंख्यकों का भरोसा पाने के लिए बीजेपी को और मशक्कत करनी पड़ेगी.
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लोकसभा चुनाव सिर पर है, लिहाजा बीजेपी को अल्पसमख्यकों की भी याद आई है. लेकिन अल्पसंख्यकों का भरोसा सरकार पर कैसे बनेगा जब बीजेपी के ही कई नेताओं ने अल्पसंख्यकों के बारे में सार्वजनिक मंच से कई बार विवादित बयान दिए और उन पर बीजेपी ने चुप्पी भी साधे रखी हो.
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