त्रिपुरा में हाल ही में हुई हिंसा की SIT जांच की मांग की याचिका त्रिपुरा सरकार के हलफनामे पर याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाया है. प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्य सरकार के हलफनामे में कही बातें अनुचित हैं. राज्य सरकार पूछ रही है कि याचिकाकर्ता ने पश्चिम बंगाल में हिंसा पर सवाल क्यों नहीं उठाया. ये मीडिया करती है, अब त्रिपुरा सरकार भी “वाट अबाउटरी” कर रही है. त्रिपुरा सरकार ने इस मामले में हलफनामा दाखिल किया है. हम अपना जवाबी हलफनामा तीन दिनों में दाखिल करेंगे.''
सुप्रीम कोर्ट ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने को मंजूरी देते हुए सुनवाई को टाल दिया और अब 31 जनवरी को मामले की अगली सुनवाई होगी.
इससे पहले त्रिपुरा सरकार ने याचिका को भारी जुर्माने के साथ खारिज करने की मांग की. त्रिपुरा सरकार ने बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा पर याचिकाकर्ता की चुप्पी पर सवाल उठाया है. त्रिपुरा सरकार ने अपने हलफनामे में जनहित याचिका पर पलटवार किया जिसमें अक्टूबर 2021 की त्रिपुरा सांप्रदायिक हिंसा पर स्वतंत्र जांच की मांग की गई है. त्रिपुरा की बीजेपी सरकार ने पूर्व नियोजित और नियोजित मीडिया रिपोर्टों के आधार पर जनहित याचिका दायर करने की प्रवृत्ति पर भी सवाल उठाए हैं. त्रिपुरा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में याचिकाकर्ता पर "चुनिंदा जनहित", "चुनिंदा आक्रोश" का आरोप लगाया. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अदालत ने बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा के खिलाफ याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था और इसे वापस हाईकोर्ट भेज दिया था.
याचिकाकर्ता ने "पब्लिकली स्प्रिटिड" होने का दावा किया और त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में कुछ उदाहरणों का मुद्दा उठाया. लेकिन बंगाल में चुनाव पूर्व और चुनाव के बाद की हिंसा की बहुत गंभीर और व्यापक घटनाओं पर चुप रहे. याचिकाकर्ताओं की तथाकथित "पब्लिक स्प्रिट” कुछ महीने पहले बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा में नहीं आई. अचानक त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में कुछ उदाहरणों के कारण वो जाग गई. एक सच्चा और नेकदिल जन-उत्साही नागरिक अपने जनहित में चयनात्मक नहीं होगा. एक राज्य के संबंध में इस माननीय न्यायालय के समक्ष जल्दबाजी करने और दूसरे के संबंध में चुप रहने के बारे में नहीं होगा. SC को पेशेवर रूप से पब्लिकली स्प्रिटिड नागरिकों और सद्भावना वाले वादियों के बीच एक रेखा खींचनी चाहिए.
त्रिपुरा सरकार ने रिपोर्ट को "घटनाओं का एकतरफा अतिरंजित और विकृत बयान" कहा है. त्रिपुरा सरकार का कहना है कि पहले से दर्ज मामले जिनमें त्रिपुरा हिंसा के दोषियों के खिलाफ गिरफ्तारी हुई है, पाकिस्तान के ISI के साथ संबंधों की भी जांच की जा रही है.
28 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और त्रिपुरा सरकार को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा था. याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने कहा था कि इस मामले में राज्य सरकार की ओर से कदम उठाए नहीं जा रहे हैं. याचिकाकर्ता वकील एहतेशाम हाशमी ने याचिका दाखिल कर त्रिपुरा में मुस्लिमों पर हमले की SIT स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच की मांग की है. हाशमी त्रिपुरा हिंसा के लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी में थे जिन पर पुलिस ने यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया था. याचिका में सुप्रीम कोर्च के हेट स्पीच व मॉब लिंचिंग को लेकर दिए फैसले के मुताबिक सुरक्षा उपाय करने के आदेश देने की मांग भी की है.
याचिका में ये भी कहा गया है पुलिस और राज्य के अधिकारियों ने हिंसा को रोकने की कोशिश करने के बजाय दावा किया कि त्रिपुरा में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव नहीं है और किसी भी मस्जिद को आग लगाने की खबरों का खंडन किया है. हालांकि बाद में पुलिस सुरक्षा कई मस्जिदों तक बढ़ा दी गई थी. धारा 144 के तहत आदेश जारी किए गए थे; और हिंसा के पीड़ितों के लिए मुआवजे की भी घोषणा की गई. घटनाओं की गंभीरता और भयावहता के बावजूद, सरकार द्वारा उपद्रवियों और दंगाइयों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. उन लोगों की सरकार द्वारा कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है जो मस्जिदों को अपवित्र करने या दुकानों में तोड़फोड़ करने और मुस्लिम समुदाय को लक्षित करने वाली हेट स्पीच दे रहे थे. ये भी कहा गया है कि दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए 102 लोगों के खिलाफ UAPA के तहत FIR दर्ज की गई है.
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