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This Article is From Aug 14, 2012

जामिया में बीए के टॉपर को नहीं मिला एमए में प्रवेश

नई दिल्ली: दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी ने अपने ही एक टॉपर को एमए में दाखिला देने से मना कर दिया है। इस छात्र की ग़लती बस इतनी है कि इसने जामिया में छात्र संघ को बहाल करने की मांग की है और इसके लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है।

एमए में दाखिले के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया का चक्कर काटता हमीदुर्रहमान बीए पॉलिटिकल साइंट का टॉपर रहा है। इसको जामिया दाखिला देने को तैयार नहीं क्योंकि उसने स्टुडेंट यूनियन की बहाली के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाख़िल कर रखी है।

हमीदुर्रहमान के वकील सिताब अली चौधरी का कहना है कि पीआईएल के कारण जामिया ने इसे दाख़िला नहीं दिया। पर्सियन स्टडी समेत छह विषयों के लिए इसने इंटरव्यू दिया लेकिन किसी में भी दाखिला नहीं मिला।

जामिया से निकाला गया छात्र हमीदुर्ररहमान का कहना है कि उसे हास्टल से निकाला गया। कॉलेज से निकाला गया, यूनिवर्सिटी से निकाला गया।

जामिया मिलिया में 2006 से स्टुडेंड यूनियन चुनाव पर पाबंदी है। हमीदुर्रहमान को लगता है कि इससे छात्रों के साफ नाइंसाफी हो रही है। हमीदुर्ररहमान का कहना है कि सप्रेशन हो रहा है कोई यह नहीं पूछ सकता कि वज़ीफा क्यों नहीं मिला, ग्रांट का पैसा कहां गया, विदेश सहायता कहां गई।

हमीदुर्ररहमान के इसी तेवर के चलते उसके कैरेक्टर सर्टिफिकेट में मुकद्दमेबाज़ और बहसबाज़ का ठप्पा लगा दिया गया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद कैरेक्टर सर्टिफिकेट तो ठीक कर दिया गया। लेकिन दाख़िला नहीं दिया।

हमीदुर्रहमान के वकील सिताब अली चौधरी कहते हैं कि कोर्ट में पेश हलफ़नामा में वाइस चांसलर नजीब जंग ने अपने कानूनी अधिकार का हवाला देते हुए दाख़िले से मना कर दिया।

जामिया प्रशासन का कहना है कि मामला कोर्ट में है इसलिए हम कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। वैसे जामिया प्रशासन बेशक हमीद को धक्के खिला रहा हो लेकिन हमीद के पीआईएल के बाद जामिया को कोर्ट में हलफनामा देकर ये भरोसा देना पड़ा है कि प्रयोग के तौर पर स्टुडेंट यूनियन चुनाव कराए जा सकते हैं।

एक ऐसे समय में जब तमाम राजनीतिक दलों के साथ साथ ख़ुद राहुल गांधी भी युवाओं को सक्रिय राजनीति में आने का न्योता देते घूम रहे हैं। हमीद की लड़ाई अलग अहमियत रखती है। हालांकि हमीद की मंशा स्टुडेंट यूनियन के रूप में बस एक ऐसा प्लेटफॉर्म देना है जिसके ज़रिए जामिया के छात्र अपने हक़ को आवाज़ दे सकें। लेकिन जब ये प्लेटफॉर्म बन जाएगा तो ज़ाहिर है इससे देश को कई युवा नेतृत्व भी मिल सकता है।

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