जस्टिस ढींगरा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
जेएनयू में अफजल गुरु का समर्थन करने के मामले में उनका साथ देने के लिए विपक्ष के नेताओं पर नाराजगी जताते हुए हाईकोर्ट के पूर्व जज एसएन ढींगरा ने कहा कि अगर यह हमला कामयाब हो गया होता इनमें से कई मारे गए होते।
2002 में संसद पर हुए हमले के मामले को देखने वाले जज ढींगरा ने जेएनयू में अफजल समर्थकों के साथ मंच साझा करने पर नेताओं की आचोलना की है।
जज ढींगरा ने कहा कि जो लोग अफजल का समर्थन कर रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि अगर उस ग्रुप का हमला जिस ग्रुप में अफजल था, कामयाब हो जाता तो आज जबकि सांसद उसकी तरफदारी कर रहे हैं उनमें से 40-50 मारे जा चुके होते, तब बात ही अलग होती।
चूंकि इस हमले में केवल 15 आम आदमी ही मारे गए थे, इसलिए हम अफजल का शहीदी दिवस मनाना चाहते हैं।
उल्लेखनीय है कि जेएनयू में कुछ छात्रों द्वारा अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की सालगिरह मनाने के दौरान भारत विरोधी नारे लगाए गए थे। इस मुद्दे पर संसद में काफी बहस हुई है। संसद में जेएनयू विवाद और रोहित वेमुला आत्महत्या का मामला छाया हुआ है।
जेएनयू स्टूडेंट्स द्वारा अफजल गुरु की फांसी को 'ज्यूडिशियल किलिंग' कहे जाने पर भी जस्टिस ढींगरा ने आपत्ति जताई।
जज ढींगरा ने कहा कि न्यायपालिका को मारने का हक दिया गया है। न्यायपालिका को यह हक ऐसे आदमी को मारने के लिए दिया गया, जो समाज के लिए खतरा बन गया हो। आईपीसी में इस संबंध में प्रावधान है और यह हक देता है और जरूरी बनाता है कि अगर कोई शख्स खतरा बन गया है, तो उसे यह सजा दी जाए। अगर यह जूडिशियल किलिंग है तो जो सजा दी जाती है उसे क्या जीवन बरबाद करने वाली कहा जाएगा।
जेएनयू के छात्रों पर देशद्रोह का आरोप लगाए जाने पर उन्होंने कहा कि यह देश का कानून है, लेकिन पुराना हो चुका है।
अगर आप कानून के हिसाब से देखें तो एक शब्द भी काफी है। अगर शब्दों के साथ किसी एक्शन को जोड़ दिया जाए तो न जेएनयू का छात्र, न हार्दिक और न ही जय प्रकाश नारायण, कोई भी दोषी नहीं है। जेपी ने भी ऐसा ही कहा था और देशद्रोह का आरोप लगा। हम कहते हैं कि कानून पुराना है। हमारे अधिकतर कानून पुराने हैं और ब्रिटिश के जमाने से हैं या बाहर से लिए गए हैं।
2002 में संसद पर हुए हमले के मामले को देखने वाले जज ढींगरा ने जेएनयू में अफजल समर्थकों के साथ मंच साझा करने पर नेताओं की आचोलना की है।
जज ढींगरा ने कहा कि जो लोग अफजल का समर्थन कर रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि अगर उस ग्रुप का हमला जिस ग्रुप में अफजल था, कामयाब हो जाता तो आज जबकि सांसद उसकी तरफदारी कर रहे हैं उनमें से 40-50 मारे जा चुके होते, तब बात ही अलग होती।
चूंकि इस हमले में केवल 15 आम आदमी ही मारे गए थे, इसलिए हम अफजल का शहीदी दिवस मनाना चाहते हैं।
उल्लेखनीय है कि जेएनयू में कुछ छात्रों द्वारा अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की सालगिरह मनाने के दौरान भारत विरोधी नारे लगाए गए थे। इस मुद्दे पर संसद में काफी बहस हुई है। संसद में जेएनयू विवाद और रोहित वेमुला आत्महत्या का मामला छाया हुआ है।
जेएनयू स्टूडेंट्स द्वारा अफजल गुरु की फांसी को 'ज्यूडिशियल किलिंग' कहे जाने पर भी जस्टिस ढींगरा ने आपत्ति जताई।
जज ढींगरा ने कहा कि न्यायपालिका को मारने का हक दिया गया है। न्यायपालिका को यह हक ऐसे आदमी को मारने के लिए दिया गया, जो समाज के लिए खतरा बन गया हो। आईपीसी में इस संबंध में प्रावधान है और यह हक देता है और जरूरी बनाता है कि अगर कोई शख्स खतरा बन गया है, तो उसे यह सजा दी जाए। अगर यह जूडिशियल किलिंग है तो जो सजा दी जाती है उसे क्या जीवन बरबाद करने वाली कहा जाएगा।
जेएनयू के छात्रों पर देशद्रोह का आरोप लगाए जाने पर उन्होंने कहा कि यह देश का कानून है, लेकिन पुराना हो चुका है।
अगर आप कानून के हिसाब से देखें तो एक शब्द भी काफी है। अगर शब्दों के साथ किसी एक्शन को जोड़ दिया जाए तो न जेएनयू का छात्र, न हार्दिक और न ही जय प्रकाश नारायण, कोई भी दोषी नहीं है। जेपी ने भी ऐसा ही कहा था और देशद्रोह का आरोप लगा। हम कहते हैं कि कानून पुराना है। हमारे अधिकतर कानून पुराने हैं और ब्रिटिश के जमाने से हैं या बाहर से लिए गए हैं।
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