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This Article is From Apr 11, 2015

चित्तूर एनकाउंटर पर विशेष : लाल चन्दन की तस्करी का सच, अरबपति हैं तस्कर

चित्तूर : तीन दिनों में 35 से 40 हज़ार रुपये का लालच लकड़ी काटने वाले आदिवासी मज़दूरों को तमाम खतरों के बावजूद जंगलों तक पहुंचाता है। आंध्र प्रदेश के जेलों में तक़रीबन 5000 लोग लाल चन्दन की तस्करी के मामलों में बंद हैं।

हाल में चित्तूर के सेशाचलम् के जंगलों में हुए विवादस्पद मुठभेड़ में मारे गए 20 लोगों के अलावा पुलिस ने 450 अंजान लोगों के खिलाफ ये कहते हुए कि ये लोग भी वहां मौजूद थे और भाग निकले, मुक़दमा दर्ज किया है।

दरअसल पिछले तक़रीबन तीन दशकों से लाल चन्दन की लकड़ियों की तस्करी लगातार संगठित तौर पर चल रही है। तमिलनाडु के कुछ ज़िलों में रहने वाले आदिवासियों को जंगल के हालात की बेहतर जानकारी है और इसलिए तस्कर उन्हें ख़ास तौर पर चित्तूर और कडप्‍पा ज़िले के जंगलों तक ले जाते हैं।

तिरुपति में सीपीआई के ज़िला सचिव रामा नायडू ने बताया कि लाल चन्दन के तस्कर इन दिहाड़ी मज़दूरों के परिवार वालों को मौत होने की सूरत में 3 से 5 लाख रुपये देते हैं जबकि पकड़े जाने पर परिवार वालों को 500 रुपये से हज़ार रुपये प्रतिदिन दिया जाता है, जब तक उसकी रिहाई नहीं हो जाती।'

आम तौर पर 8 से 10 लकड़हारों के दल तीन दिन काम करते हैं। इन्हें लाल संदल के पेड़ों को तलाशने, उन्हें काटने और फिर उसकी ऊपरी परत निकालने के बाद जंगल में खड़े ट्रकों या ट्रॉलीज में लादना होता है। इस काम के लिए हर एक मज़दूर को 500 रुपये प्रति किलो के हिसाब से रकम दी जाती है और 8 से 10 लोगों का एक दल तीन दिनों में 750 से 1000 किलो लकड़ी काट लेता है। इस तरह तीन दिनों में हर एक मज़दूर 35 से 40 हज़ार रुपये कमाता है।

फ़िर 1000 किलो यानी एक टन लकड़ी आसपास के समुद्री तटों के जरिए चेन्नई बन्दरगाह तक ठेकेदार पहुंचाते हैं, जहां 1000 किलो लाल चन्दन की लकड़ी की कीमत 40 लाख रुपये तक पहुंच जाती है कयोंकि रास्ते में भी भारी रकम रिश्वत के तौर पर अलग-अलग एजेंसियों को दी जाती है।

तिरुपति से कई बार सांसद रहे डॉ. चिंतामणि के मुताबिक़, 'लाल चन्दन की तस्करी यहां एक कॉटेज उद्योग बन चुका है। तस्करों, राजनेता, पुलिस, वन अधिकारियों के साथ-साथ कस्टम और बंदरगाह के अधिकारी सभी इस गठजोड़ का हिस्सा हैं।'

बंदरगाह पहुंचते ही देसी तस्कर 1000 किलो की खेप विदेशी तस्करों को सौंप देते हैं और तब इसकी क़ीमत वो 1 करोड़ रुपये वसूलते हैं। चूंकि उन्नत किस्म का लाल चन्दन सिर्फ यहीं होता है, ऐसे में ये रकम अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से ज्‍यादा नहीं है।

इस कालाबाज़ारी में अब तक एजेंसियां चीनी तस्करों का दबदबा मानती हैं। और सबसे ज्‍यादा तस्करी चीन और जापान के लिए की जाती है जहां इसका इस्तेमाल परमाणु संयंत्रों, सौंदर्य प्रसाधनों, दवा और वाद्य यंत्रों में ख़ास तौर पर किया जाता है।

इस तस्करी को बढ़ावा देने के आरोप में 2014 में डीएसपी रैंक के 2 अधिकारी तो 2007 में 21 पुलिसकर्मियों को निलंबित किया जा चुका है, जिनमें 3 वरिष्ठ इंस्पेक्टर्स और 2 सब इंस्पेक्टर्स शामिल हैं। हालांकि इन्हीं लकड़हारों ने 2013 में दो सुरक्षाकर्मियों की हत्या पत्थरों और कुल्हाड़ियों से कर दी थी।

इसमें कोई दो राय नहीं कि तस्करी बड़े पैमाने पर संगठित रूप से हो रही है। एक अंदाजे के मुताबिक़ हर महीने तक़रीबन 100 टन लाल संदल की लकड़ियों की तस्करी यहां से होती है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने चुनावों के दौरान वादा किया था कि अगर उनकी सरकार आई तो वो लाल सन्दल यानी रेड सैंडर्स की तस्करी पर पूरी तरह से रोक लगा देंगे।

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