उत्तर प्रदेश में गरीबों के लिए आसान नहीं शिक्षा का अधिकार

उत्तर प्रदेश में गरीबों के लिए आसान नहीं शिक्षा का अधिकार

लखनऊ:

उत्तरप्रदेश के निजी स्कूलों में आरटीई एक्ट के तहत पिछले चार सालों में 24 लाख गरीब बच्चों को एडमिशन मिलना था लेकिन मिला सिर्फ 108 बच्चों को। प्रदेश में 50 हजार निजी स्कूल हैं। गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज लखनऊ का सिटी मांटेसरी स्कूल इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक में गया लेकिन कोर्ट के आदश पर आज उसे गरीब बच्चों को एडमिशन देना पड़ा।  

सफाई कर्मचारी राजेश वाल्मीकि की दो बेटियों का दाखिला सिटी मांटेसरी स्कूल में हुआ है। राजेश बेटियों को ऊंचाइयों पर पहुंचता देखना चाहते हैं। वह कहते हैं कि उनकी बेटियां पढ़ रही हैं। इससे अच्छा लग रहा है। वह कहते हैं कि वे जो काम कर रहे हैं वह उनके बच्चे न करें।

एक्ट के तहत निजी स्कूलों को पहले दर्जे में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को प्रवेश देना है। आरोप है कि यूपी सरकार ने निज स्कूलों के हक में अपने नियम जोड़ दिए हैं। इसके तहत गरीब बच्चे प्राइवेट स्कूलों में तभी दाखिला ले सकते हैं जब उनके पड़ोस में सरकारी स्कूल न हो और हो तो पहले दर्जे में सारी सीटें भर चुकी हों।

समीना बानो बीटेक और एमबीए करके अमेरिका में बड़ी नौकरी कर रही थीं।  वह यहां नाइंसाफी देखकर गरीबों की लड़ाई लड़ने के लिए भारत आ गईं। तीन साल तक इस कोटे में यूपी में कोई एडमिशन नहीं हुआ। समीना और उनके दोस्तों ने लड़कर 4600 बच्चों का दाखिला कराया है।

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आरटीई (शिक्षा का अधिकार ) एक्टिविस्ट समीना बानो का कहना है कि जो 3-4 प्रतिशत ऊंचे दर्जे के निजी स्कूल हैं, एक्ट को लागू करने में वह बड़ी रुकावट बने हुए हैं। इन्होंने पिछले चार साल में इसे लागू नहीं होने दिया। समीना और उनके साथियों ने प्रेस करके गुजारा करने वाली ममता कन्नौजिया के बेटे आदित्य का दाखिला डीपीएस में कराया है।