अपनी भारत यात्राओं में मुझे सात दफा तमिलनाडु जाने का मौका मिला. दो चुनाव कवर किए. कई दूसरी खबरें. हम उत्तर भारत में रहकर कभी दक्षिण भारत का डीएनए नहीं समझ सकते,जो बिल्कुल ही अलग है. यह आज से नहीं है. अचानक बिल्कुल नहीं. पंडित नेहरू जितने समय प्रधानमंत्री रहे, लगभग उतने ही समय कांग्रेस के दिग्गज नेता के. कामराज पहले मुख्यमंत्री वहां थे. नौ साल में उन्होंने नौ बड़े बांध बनवाए. करीब 14 हजार प्राइमरी स्कूल खोले. बच्चों को इनमें लाने के लिए देश में पहली बार मिड डे मील की स्कीम उनके ही दिमाग की उपज थी. अपने जीते-जी कामराज ऐतिहासिक रूप से सर्वाधिक समृद्ध अपने राज्य को एक रफ्तार देकर गए.
द्रविड़ मुनेत्र पार्टियों में सिनेमा की पृष्ठभूमि के लोग आए. करुणानिधि तमिल फिल्मों के प्रभावी पटकथा लेखक रहे हैं. एमजी रामचंद्रन लोकप्रिय अदाकार. एक ने डीएमके बनाई. दूसरे ने एआईएडीएमके. हम दूसरी पर बात करते हैं, जिसकी कमान एमजीआर के बाद जयललिता ने थामी. ये वो लोग थे, जो सिर्फ दौलत या शोहरत के लिए सियासत में नहीं आए.
एआईएडीएमके में जयललिता को एमजीआर के उत्तराधिकार की मुहर जनता ने लगाई और उनकी पत्नी जानकी को घर की चारदीवारी में छोड़ दिया. जयललिता ने अपने हर कार्यकाल में कुछ नया किया. नया और असरदार. खासतौर से महिलाओं के लिए. उनकी आमदनी या सुरक्षा के नजरिए से. तीसरे कार्यकाल में वे अम्मा उनावगम यानी अम्मा कैंटीन लेकर आईं.
यह भी पढ़ें : अलविदा अम्मा : मरीना बीच पर जयललिता को राजकीय सम्मान के साथ दी गई 'अंतिम विदाई'
क्या हैं जे जयललिता के दाह संस्कार की जगह दफनाए जाने की खास वजहें...
मैंने उनके इस प्रोजेक्ट को करीब से चार दिन तक चेन्नई में देखा, जहां के 200 वार्डों में इसे प्रभावी ढंग से लागू किया गया था. सुबह एक रुपये में इडली और दोपहर भी भरपूर भोजन. स्वादिष्ट, पौष्टिक. इस पूरे काम की कमान महिलाओं के हाथों में सौंपी गई. मैंने देखा कि संपन्न लोग भी कारें साइड में लगाकर यहां भोजन करते हैं. पंजाब मूल के एक अफसर विक्रम कपूर को उन्होंने इस स्कीम का जिम्मा सौंपा था, जिन्होंने तेज समय सीमा में इसके क्रियान्वयन की हर बारीकी मुझे बताई. वे कॉर्पोरेट कंपनी की तरह इस टारगेट को पूरा करने में लगे थे. यह जल्द ही दस दूसरे शहरों में लागू हो रही थी.
अम्मा की पैनी नजर ऐसी स्कीमों के क्रियान्वयन पर होती थी. मजाल है कोई अफसर बेईमानी या लेटलतीफी कर जाए. हर कोई जानता था कि अम्मा के रहते सब ठीक होगा. तमिल लोग आय से अधिक संपत्ति के केस को मुलायम सिंह यादव के खानदान या मायावती से अलग मानते हैं. ये पेशेवर राजनीतिक हैं, जो फटेहाली की हालत में राजनीतिक व्यवस्था पर लदे और अरबों की दौलत कमाई. जयललिता राजनीति में आने के पहले ही राजसी रहन-सहन में थीं. लोगों को भरोसा था कि अम्मा के आगे-पीछे कोई नहीं, वे एक रुपये का भ्रष्टाचार नहीं कर सकतीं.
जनता के पैसे की निर्मम बरबादी कर अपनी नकली महानता गढ़ने वाले हमारे बकवासी, बेईमान, बदशक्ल बदमाश और बेअक्ल नेताओं की तरह राजनीति इनके लिए एकमात्र ऐसी दुकान नहीं थी, जिसमें कैसे भी आकर इन्हें पद भी चाहिए था, प्रतिष्ठा भी, पैसा भी और अगली पीढ़ी का इंतजाम भी. एमजीआर, जयललिता अपने फन में माहिर लोग थे. बड़े नामवाले. तमिलनाडु की भावुक जनता ने इन्हें देव का दरजा यूं ही नहीं दिया.
सिनेमा का असर वहां इस हद तक है कि जब दिवाली के दिन उत्तर भारत के लोग पूजा की तैयारियों में व्यस्त रहते हैं, पूरा तमिलनाडु उस दिन सिनेमाघरों में दिवाली मनाता है. हर कोई अपने दोस्तों, परिजनों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ फिल्म देखने जाता है. बड़े बजट की बड़े सितारों की सबसे खास फिल्में दिवाली के दिन रिलीज होती हैं. मंदिरों में जितनी भीड़ रहती है, सिनेमाघरों में उससे कम नहीं होती.
एमजीआर के बाद एआईएडीएमके जयललिता की ही सल्तनत थी. वे भी एक साम्राज्ञी की ही तरह रहीं. न नेताओं को कोई समस्या थी, न पब्लिक को. करुणानिधि भी फिल्म की पृष्ठभूमि से आए थे मगर इनका कारोबार उत्तर प्रदेश के मुलायमसिंह यादव जैसा रहा. अपने खानदान के हर अंडे-बच्चे को खुलकर खेलने का मौका दिया. उनके सीएम रहते आप चेन्नई से छपने वाला कोई भी अखबार उठाते तो उसमें क्या दिखाई देता-फ्रंट पेज पर करुणानिधि खुद, सिटी के पन्नों पर स्टालिन कहीं न कहीं, स्टेट के पेज पर मारन फैमिली का कोई सदस्य या मदुरई से उनके दूसरे बेटे अलागिरी, सिनेमा के पेज पर मारन फैमिली की फिल्म निर्माण कंपनी की कोई नई रिलीज, सन या कालिगनार टीवी चैनलों की नई पेशकशें, बिजनेस के पेज पर इनकी ही किसी की रियल इस्टेट कंपनी के नए प्रोजेक्ट की खबर या विज्ञापन. जयललिता के आभामंडल में ऐसा कुछ नहीं था. इसीलिए वे सबकी अम्मा थीं.
जयललिता बेहद जिद्दी थीं. करुणानिधि ने 12 सौ करोड़ रुपये की लागत से नई विधानसभा बनवाई. यह देश की पहली ग्रीन टेक्नॉलॉजी से बनी असेंबली की इमारत थी. जयललिता ने इसमें कभी कदम नहीं रखे. विपक्ष के नेता के रूप में भी कभी नहीं आईं और अगली दफा जब सीएम बनीं तो इसे मल्टी सुपरस्पेशिलिटी हॉस्पिटल बना दिया. अपनी बेइज्जती का बदला वे इसके पहले रातों-रात करुणानिधि को गिरफ्तार करवाकर ले चुकी थीं.
(फेसबुक पर तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के बारे में काफी कुछ लिखा गया है.लेकिन हिंदी में संजीदगी, रिसर्च के साथ टिप्पणियां कम ही देखने को मिलीं. ऐसी ही एक पोस्ट दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहर तिवारी की वॉल पर मिली. जिसे उनकी अनुमति के बाद प्रकाशित किया जा रहा है)
द्रविड़ मुनेत्र पार्टियों में सिनेमा की पृष्ठभूमि के लोग आए. करुणानिधि तमिल फिल्मों के प्रभावी पटकथा लेखक रहे हैं. एमजी रामचंद्रन लोकप्रिय अदाकार. एक ने डीएमके बनाई. दूसरे ने एआईएडीएमके. हम दूसरी पर बात करते हैं, जिसकी कमान एमजीआर के बाद जयललिता ने थामी. ये वो लोग थे, जो सिर्फ दौलत या शोहरत के लिए सियासत में नहीं आए.
एआईएडीएमके में जयललिता को एमजीआर के उत्तराधिकार की मुहर जनता ने लगाई और उनकी पत्नी जानकी को घर की चारदीवारी में छोड़ दिया. जयललिता ने अपने हर कार्यकाल में कुछ नया किया. नया और असरदार. खासतौर से महिलाओं के लिए. उनकी आमदनी या सुरक्षा के नजरिए से. तीसरे कार्यकाल में वे अम्मा उनावगम यानी अम्मा कैंटीन लेकर आईं.
यह भी पढ़ें : अलविदा अम्मा : मरीना बीच पर जयललिता को राजकीय सम्मान के साथ दी गई 'अंतिम विदाई'
क्या हैं जे जयललिता के दाह संस्कार की जगह दफनाए जाने की खास वजहें...
मैंने उनके इस प्रोजेक्ट को करीब से चार दिन तक चेन्नई में देखा, जहां के 200 वार्डों में इसे प्रभावी ढंग से लागू किया गया था. सुबह एक रुपये में इडली और दोपहर भी भरपूर भोजन. स्वादिष्ट, पौष्टिक. इस पूरे काम की कमान महिलाओं के हाथों में सौंपी गई. मैंने देखा कि संपन्न लोग भी कारें साइड में लगाकर यहां भोजन करते हैं. पंजाब मूल के एक अफसर विक्रम कपूर को उन्होंने इस स्कीम का जिम्मा सौंपा था, जिन्होंने तेज समय सीमा में इसके क्रियान्वयन की हर बारीकी मुझे बताई. वे कॉर्पोरेट कंपनी की तरह इस टारगेट को पूरा करने में लगे थे. यह जल्द ही दस दूसरे शहरों में लागू हो रही थी.
अम्मा की पैनी नजर ऐसी स्कीमों के क्रियान्वयन पर होती थी. मजाल है कोई अफसर बेईमानी या लेटलतीफी कर जाए. हर कोई जानता था कि अम्मा के रहते सब ठीक होगा. तमिल लोग आय से अधिक संपत्ति के केस को मुलायम सिंह यादव के खानदान या मायावती से अलग मानते हैं. ये पेशेवर राजनीतिक हैं, जो फटेहाली की हालत में राजनीतिक व्यवस्था पर लदे और अरबों की दौलत कमाई. जयललिता राजनीति में आने के पहले ही राजसी रहन-सहन में थीं. लोगों को भरोसा था कि अम्मा के आगे-पीछे कोई नहीं, वे एक रुपये का भ्रष्टाचार नहीं कर सकतीं.
जनता के पैसे की निर्मम बरबादी कर अपनी नकली महानता गढ़ने वाले हमारे बकवासी, बेईमान, बदशक्ल बदमाश और बेअक्ल नेताओं की तरह राजनीति इनके लिए एकमात्र ऐसी दुकान नहीं थी, जिसमें कैसे भी आकर इन्हें पद भी चाहिए था, प्रतिष्ठा भी, पैसा भी और अगली पीढ़ी का इंतजाम भी. एमजीआर, जयललिता अपने फन में माहिर लोग थे. बड़े नामवाले. तमिलनाडु की भावुक जनता ने इन्हें देव का दरजा यूं ही नहीं दिया.
सिनेमा का असर वहां इस हद तक है कि जब दिवाली के दिन उत्तर भारत के लोग पूजा की तैयारियों में व्यस्त रहते हैं, पूरा तमिलनाडु उस दिन सिनेमाघरों में दिवाली मनाता है. हर कोई अपने दोस्तों, परिजनों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ फिल्म देखने जाता है. बड़े बजट की बड़े सितारों की सबसे खास फिल्में दिवाली के दिन रिलीज होती हैं. मंदिरों में जितनी भीड़ रहती है, सिनेमाघरों में उससे कम नहीं होती.
एमजीआर के बाद एआईएडीएमके जयललिता की ही सल्तनत थी. वे भी एक साम्राज्ञी की ही तरह रहीं. न नेताओं को कोई समस्या थी, न पब्लिक को. करुणानिधि भी फिल्म की पृष्ठभूमि से आए थे मगर इनका कारोबार उत्तर प्रदेश के मुलायमसिंह यादव जैसा रहा. अपने खानदान के हर अंडे-बच्चे को खुलकर खेलने का मौका दिया. उनके सीएम रहते आप चेन्नई से छपने वाला कोई भी अखबार उठाते तो उसमें क्या दिखाई देता-फ्रंट पेज पर करुणानिधि खुद, सिटी के पन्नों पर स्टालिन कहीं न कहीं, स्टेट के पेज पर मारन फैमिली का कोई सदस्य या मदुरई से उनके दूसरे बेटे अलागिरी, सिनेमा के पेज पर मारन फैमिली की फिल्म निर्माण कंपनी की कोई नई रिलीज, सन या कालिगनार टीवी चैनलों की नई पेशकशें, बिजनेस के पेज पर इनकी ही किसी की रियल इस्टेट कंपनी के नए प्रोजेक्ट की खबर या विज्ञापन. जयललिता के आभामंडल में ऐसा कुछ नहीं था. इसीलिए वे सबकी अम्मा थीं.
जयललिता बेहद जिद्दी थीं. करुणानिधि ने 12 सौ करोड़ रुपये की लागत से नई विधानसभा बनवाई. यह देश की पहली ग्रीन टेक्नॉलॉजी से बनी असेंबली की इमारत थी. जयललिता ने इसमें कभी कदम नहीं रखे. विपक्ष के नेता के रूप में भी कभी नहीं आईं और अगली दफा जब सीएम बनीं तो इसे मल्टी सुपरस्पेशिलिटी हॉस्पिटल बना दिया. अपनी बेइज्जती का बदला वे इसके पहले रातों-रात करुणानिधि को गिरफ्तार करवाकर ले चुकी थीं.
(फेसबुक पर तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के बारे में काफी कुछ लिखा गया है.लेकिन हिंदी में संजीदगी, रिसर्च के साथ टिप्पणियां कम ही देखने को मिलीं. ऐसी ही एक पोस्ट दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहर तिवारी की वॉल पर मिली. जिसे उनकी अनुमति के बाद प्रकाशित किया जा रहा है)
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