भोपाल:
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में होने जा रहे 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में विद्वतजनों की संख्या कम न रह जाए, यह आयोजकों के लिए चुनौती का विषय बन गया है, यही कारण है कि हर जिले के जिलाधिकारी को 50 से लेकर 500 तक शिक्षकों और प्राचार्यों को भोपाल भेजने का लक्ष्य सौंपा गया है।
राजधानी के लाल परेड मैदान जो अब माखनलाल चतुर्वेदी नगर का रूप ले चुका है, वहां 10 से 12 सितंबर तक विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। इस सम्मेलन में देश और दुनिया के पांच हजार हिंदी विद्वानों के आने का आयोजक दावा कर रहे हैं। यह आयोजन विदेश मंत्रालय का है और सहभागी राज्य सरकार है।
सूत्रों का कहना है कि सम्मेलन के लिए बुलावा तो बड़ी तादाद में हिंदी विद्वानों को भेजा गया है, मगर संख्या अनुमान से कम रह जाने इसकी आशंका भी बनी हुई है, इसलिए हर जिले से विद्यालयों के प्राचार्य और शिक्षकों को बुलाने का फैसला हुआ है। किसी जिले से 50 तो कहीं से 500 प्राचार्यो और शिक्षकों को भोपाल भेजने की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौंपी गई है।
मजे की बात यह है कि सरकार की ओर से विद्वानों को भेजने का जिम्मा जिलाधिकारी को सौंपा गया था, तो उन्होंने यह जिम्मेदारी जिला शिक्षाधिकारियों को सौंप दी। इंदौर के जिला शिक्षाधिकारी का लिखा गया पत्र जो आईएएनएस के हाथ लगा है, उसमें अन्य अधिकारिकारियों से साफ तौर पर कहा गया है कि हिंदी सम्मेलन के लिए 10 सितंबर को जिले से 500 शिक्षक या प्राचार्य को भेजा जाना है, इनके लिए उसी दिन सुबह चार से साढ़े चार बजे के बीच तयशुदा स्थल पर वाहन सुविधा उपलब्ध रहेगी।
टीकमगढ़ जिले के जिला शिक्षाधिकारी बी.एस. देशलेहरा ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए स्वीकारा कि जिलाधिकारी के आदेश पर उन्होंने हिंदी सम्मेलन के लिए 50 शिक्षकों की सूची भेजी गई थी, मगर कार्ड सिर्फ 10 के ही आए हैं।
इस तरह राज्य के सभी 51 जिलों से 50 और उससे अधिक शिक्षकों व प्राचार्यो को सम्मेलन के लिए भोपाल भेजने के निर्देश दिए गए हैं। अगर औसत रूप से 50 शिक्षक भी हर जिले से आए तो यह आंकड़ा ढाई हजार से ऊपर पहुंच जाएगा। वहीं कुल विद्वानों की संख्या पांच बताई जा रही है, इस लिहाज से सम्मेलन में कुल संख्या के आधे शिक्षक और प्राचार्य होंगे।
हिंदी सम्मेलन में शिक्षकों को मिले बुलावे पर साहित्यकार रामप्रकाश त्रिपाठी का कहना है कि शिक्षक सरकारी कर्मचारी होता है, लिहाजा वह किसी भी बात पर असहमति नहीं जता सकता, वहीं विशेषज्ञों को बुलाने पर वे सहमति और असहमति जता सकते हैं। इससे लगता है कि सरकार नहीं चाहती कि उसकी किसी बात पर कोई असहमति जताए, इसीलिए शिक्षकों को बड़ी संख्या में बुलाया जा रहा है।
जाने-माने कवि राजेश जोशी पहले ही यह सवाल उठा चुके हैं कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि यह सम्मेलन किसका है, अगर शिक्षकों का सम्मेलन है तो यह भी स्पष्ट किया जाए।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
राजधानी के लाल परेड मैदान जो अब माखनलाल चतुर्वेदी नगर का रूप ले चुका है, वहां 10 से 12 सितंबर तक विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। इस सम्मेलन में देश और दुनिया के पांच हजार हिंदी विद्वानों के आने का आयोजक दावा कर रहे हैं। यह आयोजन विदेश मंत्रालय का है और सहभागी राज्य सरकार है।
सूत्रों का कहना है कि सम्मेलन के लिए बुलावा तो बड़ी तादाद में हिंदी विद्वानों को भेजा गया है, मगर संख्या अनुमान से कम रह जाने इसकी आशंका भी बनी हुई है, इसलिए हर जिले से विद्यालयों के प्राचार्य और शिक्षकों को बुलाने का फैसला हुआ है। किसी जिले से 50 तो कहीं से 500 प्राचार्यो और शिक्षकों को भोपाल भेजने की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों को सौंपी गई है।
मजे की बात यह है कि सरकार की ओर से विद्वानों को भेजने का जिम्मा जिलाधिकारी को सौंपा गया था, तो उन्होंने यह जिम्मेदारी जिला शिक्षाधिकारियों को सौंप दी। इंदौर के जिला शिक्षाधिकारी का लिखा गया पत्र जो आईएएनएस के हाथ लगा है, उसमें अन्य अधिकारिकारियों से साफ तौर पर कहा गया है कि हिंदी सम्मेलन के लिए 10 सितंबर को जिले से 500 शिक्षक या प्राचार्य को भेजा जाना है, इनके लिए उसी दिन सुबह चार से साढ़े चार बजे के बीच तयशुदा स्थल पर वाहन सुविधा उपलब्ध रहेगी।
टीकमगढ़ जिले के जिला शिक्षाधिकारी बी.एस. देशलेहरा ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए स्वीकारा कि जिलाधिकारी के आदेश पर उन्होंने हिंदी सम्मेलन के लिए 50 शिक्षकों की सूची भेजी गई थी, मगर कार्ड सिर्फ 10 के ही आए हैं।
इस तरह राज्य के सभी 51 जिलों से 50 और उससे अधिक शिक्षकों व प्राचार्यो को सम्मेलन के लिए भोपाल भेजने के निर्देश दिए गए हैं। अगर औसत रूप से 50 शिक्षक भी हर जिले से आए तो यह आंकड़ा ढाई हजार से ऊपर पहुंच जाएगा। वहीं कुल विद्वानों की संख्या पांच बताई जा रही है, इस लिहाज से सम्मेलन में कुल संख्या के आधे शिक्षक और प्राचार्य होंगे।
हिंदी सम्मेलन में शिक्षकों को मिले बुलावे पर साहित्यकार रामप्रकाश त्रिपाठी का कहना है कि शिक्षक सरकारी कर्मचारी होता है, लिहाजा वह किसी भी बात पर असहमति नहीं जता सकता, वहीं विशेषज्ञों को बुलाने पर वे सहमति और असहमति जता सकते हैं। इससे लगता है कि सरकार नहीं चाहती कि उसकी किसी बात पर कोई असहमति जताए, इसीलिए शिक्षकों को बड़ी संख्या में बुलाया जा रहा है।
जाने-माने कवि राजेश जोशी पहले ही यह सवाल उठा चुके हैं कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि यह सम्मेलन किसका है, अगर शिक्षकों का सम्मेलन है तो यह भी स्पष्ट किया जाए।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)