...तो सुशील मोदी ही होंगे बिहार में एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार

सुशील कुमार मोदी की फाइल फोटो

पटना:

ये एक ऐसी कड़वी सच्‍चाई है कि बिहार बीजेपी हो या बीजेपी के केंद्रीय नेता, सब अब मानकर चल रहे हैं कि अगर बिहार में मुख्यमंत्री के लिए किसी नेता को पेश करने का फैसला किया गया, तो पार्टी की पसंद सुशील मोदी ही होंगे।

अगर राज्य में पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर भी विधानसभा चुनाव लड़ा गया और बहुमत का आंकड़ा मिल जाता है, तो उस परिस्थिति में भी मुख्यमंत्री सुशील मोदी ही होंगे।

पार्टी के राष्ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह मंगलवार को पटना में कार्यकर्ताओं के एक सम्मलेन को संबोधित करेंगे और माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनवों के लिए चुनावी अभियान का श्रीगणेश करेंगे। इस सम्मलेन में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और बिहार से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल बीजेपी के सभी नेता मौजूद रहेंगे। लेकिन सवाल है कि क्या अमित शाह उस नेता या कहिए सुशील मोदी के नाम की घोषणा मुख्यमंत्री पद के उमीदवार के रूप में करेंगे?

पार्टी के नेताओं की मानें, तो शाह इस बात की घोषणा करें या न करें, लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए सुशील मोदी को फ़िलहाल चुनौती देने वाले सभी नेता अलग-थलग पड़ गए हैं। सुशील मोदी के पक्ष में कई बातें हैं। भले ही बिहार बीजेपी में अगड़ी जाति के कई नेता उनके नाम का विरोध करते हों, लेकिन यह सच है कि केंद्रीय नेतृत्व के लिए मोदी जितना प्रभावी कोई नेता नहीं है, जिसका प्रमाण है कि पार्टी के हर कार्यक्रम में वो सबसे अंतिम में बोलने वाले नेता होते हैं।

पिछले हफ्ते केंद्रीय वित्त मंत्री ने बिहार के लिए पैकेज की चर्चा करने के लिए बिहार से सभी केंद्रीय मंत्रियों के अलावा अन्य कैबिनेट मंत्रियों की बैठक बुलाई, तो सुशील मोदी को पटना से विशेष रूप से बुलाया गया। विधानसभा सत्र के दौरान विधान मंडल दल के नेता के रूप में हर हफ्ते सुशील मोदी न केवल बैठक बुलाते हैं, बल्कि जीतन राम मांझी के साथ पार्टी को कितने दूर तक जाना है, कितनी नजदीकी रखनी है और कितनी दूरी रखनी है, सब मोदी की रणनीति के अनुसार हुआ।

पार्टी में सुशील मोदी के कट्टर विरोधी भी मानते हैं कि पार्टी के लिए जितना समय मोदी देते हैं, उतना उनके विरोधी अन्य नेता मिलकर भी नहीं देते। राज्य में जब भी कोई घटना होती है, अगले दिन मोदी उस जगह या प्रभावित लोगों से मिलने में देरी नहीं करते। चुनावी वर्ष होने के कारण भी पार्टी में किसे शामिल करना है, उस पर जब तक मोदी अपनी सहमति नहीं देते, उनका मिलन समारोह नहीं होता।

हालांकि पार्टी के नेताओं का आकलन है कि मोदी के नाम की घोषणा हो जाने पर लाभ से ज्यादा नुकसान भी हो सकता है। आम लोगों में नीतीश अपने काम की वजह से अभी भी पहली पसंद बने हुए हैं। मोदी के प्रति न केवल अगड़ी जाति के पार्टी के नेता, बल्कि अगड़ी जाति के वोटर भी पार्टी से बिदक सकते हैं। लेकिन फ़िलहाल मोदी के विरोधी और मुख्यमंत्री पद की महत्‍वाकांक्षा रखने वाले सभी नेता भी एकजुट हो जाएं, तो मोदी से मुकाबला करने में वो बीस साबित नहीं हो सकते।

मोदी के साथ सबसे बड़ी बात यह रही है कि वह बिहार में 9 वर्षों तक लालू यादव के समय विपक्ष के नेता रहे और जमकर लालू सरकार से मुकाबला किया। नीतीश मंत्रिमंडल में भी पार्टी ने उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया तो अपने कार्यकाल में विवादों से ज्यादा अपने काम के कारण जाने जाते रहे। पिछले दो वर्षों में जब से नीतीश कुमार से संबंध टूटे, शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो, जब उन्होंने नीतीश सरकार की आलोचना में शब्‍दों की तलवार नहीं चलाई हो।

इन्हीं सब कारणों से पार्टी के पास 'ऊपर मोदी, नीचे मोदी' का नारा लगाने के अलावा बिहार में कोई ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं।


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