महिलाओं से रेप के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है. चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने देश भर में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध की घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लिया है और केंद्र सरकार और सभी राज्यों को नोटिस जारी कर कहा है कि मौजूदा कानून सिस्टम और पुलिस कार्रवाई के तरीकों को सख्त और जवाबदेह करने और मेडिकल सुविधाओं को और बेहतर व सुनिश्चित करने की जरूरत है.
राज्यों को जारी नोटिस में चीफ जस्टिस ने कहा है कि 2017 में देशभर में 3,2559 रेप केस सामने आए जो कि बेहद चिंताजनक हैं. चीफ जस्टिस ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों से मौजूदा कानूनी कार्रवाई के तरीकों के बारे में स्टेट्स रिपोर्ट मांगी है और पूछा है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में क्या पुलिस कार्रवाई हुई है. इसके अलावा अभियोजन कैसे काम कर रहा है, फॉरेंसिक एजेंसी कितनी है और उनके पास क्या क्या साधन, तकनीक और स्टाफ है, मुकदमा समय पर दर्ज न करने या मुकदमा ना दर्ज करने वाले कितने पुलिसवालों के खिलाफ क्या क्या कार्रवाई हुई. रेप पी़डिता के चिकित्सा और उसकी मेडिकल जांच का तरीका और साधन क्या हैं.
क्या सभी अस्पतालों में रेप पीडिता और आरोपी की मेडिकल जांच के लिए तय मानकों वाली मेडिकल किट है.कोर्ट ने यह भी पूछा है कि क्या सभी निजी और सरकारी अस्पताल रेप पीड़िता को फ्री ईलाज देते हैं या नहीं. अदालतों में रेप केस की सुनवाई सिर्फ महिला जज करें, इसका क्या आंकड़ा है. विशेष अदालतें कितनी हैं. साथ ही यह सुनिश्चत करने के लिए क्या किया जा रहा है कि ट्रायल जल्द और तय समय में हो, वकीलों की केस में उपस्थिति सुनिश्चित रहे.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भी इस काम में सहयोग देने का निर्देश दिया है. मामले में अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी. CJI बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने बेहद गंभीर टिप्पणी भी की. कहा कि न्याय में देरी जनता के मन में अशांति, गुस्सा और अधीरता पैदा करती है. निर्भया केस ने पूरे देश को झकझोर दिया था. कानून में भी बदलाव हुआ, लेकिन निर्भया केस आज तक अंतिम पडाव पर नहीं पहुंच पाया है. ये अकेला ऐसा केस नहीं है. एजेंसिया लोगों के गुस्से को देखकर तेजी से काम करती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से निर्भया फंड का ब्यौरा भी मांगा है.
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