किसी भी कम्प्यूटर प्रणाली को इंटरसेप्ट करने या उनकी निगरानी के लिए 10 केंद्रीय एजेंसियों को अधिकृत करने संबंधी केंद्र सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केंद्र के फैसले की न्यायिक समीक्षा करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब मांगा है. पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा 10 एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटर की निगरानी और डाटा की जांच का अधिकार देने पर मचे बवाल के बीच अब गृह मंत्रालय ने इस पर सफाई दी थी. मंत्रालय का कहना है कि सरकार ने किसी कम्प्यूटर से जानकारी निकालने (इंटरसेप्ट) के लिए किसी भी एजेंसी को ‘पूर्ण शक्ति' नहीं दी है. हर बार पूर्व मंजूरी की जरूरत होगी. एजेंसियों को इस तरह की कार्रवाई के दौरान वर्तमान नियम कानून का कड़ाई से पालन करना होगा. कोई नया नियम-कानून, नई प्रक्रिया, नई एजेंसी, पूर्ण शक्ति या पूर्ण अधिकार जैसा कुछ नहीं है. सब चीजें पुरानी ही हैं. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक ‘वर्तमान नियम शब्दश: वही हैं. यहां तक कि इसमें कॉमा या फुल स्टॉप भी नहीं बदला गया है'.
आपको बता दें कि गृह मंत्रालय की 20 दिसंबर की अधिसूचना में 10 एजेंसियों का नाम लिया गया था. इन सुरक्षा एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटरों पर नजर रखने की इजाजत दी गई थी. कहा गया था कि इन एजेंसियों के पास अधिकार होगा कि ये आपके कंप्यूटर डाटा की जांच कर सके और उस पर नजर रख सकें. 10 एजेंसियों में सीबीआई, आईबी, एनआईए जैसी बड़ी सुरक्षा एजेंसियां भी शामिल हैं. इस अधिसूचना के बाद बवाल मच गया था. विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला और इसे निजता के अधिकार पर हमला बताया था.
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इस अधिसूचना पर कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा था कि सरकार का यह आदेश मौलिक अधिकारों के खिलाफ है. इस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार भी यह निजता आपका मौलिक अधिकार है. निजता के अधिकार पर यह आदेश चोट पहुंचाता है. इससे प्रजातंत्र को भी बड़ा खतरा पैदा हो गया है. वहीं समाजवादी पार्टी के राम गोपाल का कहना था कि सरकार का यह आदेश खतरनाक है. यह सरकार पूरी तरह से तानाशाही के रास्ते पर है.
सिंपल समाचार : गृह मंत्रालय के आदेश पर विवाद
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