
सुप्रीम कोर्ट( फाइल फोटो)
- 120 साल पुराना है कावेरी जल विवाद
- सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला
- कर्नाटक में कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं
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सभी राज्यों का आधार है कि उनके हिस्से में कम आवंटन दिया गया. अंतिम सुनवाई 11 जुलाई को शुरू हुई और बहस दो महीने तक चली थी. कर्नाटक ने तर्क दिया कि 1894 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के साथ जल साझाकरण समझौता किया गया था और इसलिए 1956 में नए राज्य की स्थापना के बाद इन करारों को बाध्य नहीं किया जा सकता. कर्नाटक ने आगे तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडु को पानी के हिस्से को आवंटित करने में इन समझौतों की वैधता को मान्यता दी है, जो गलत है. राज्य चाहता है कि अदालत कर्नाटक को तमिलनाडु को केवल 132 टीएमसी फीट पानी छोड़ने की अनुमति दे.
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वहीं, तमिलनाडु ने इन तर्कों का खंडन किया और कहा कि कर्नाटक ने कभी भी दो समझौतों को लागू नहीं किया और हर बार राज्य को अपने अधिकार के पानी के दावे के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगानी पड़ती है. ट्रिब्यूनल ने ग़लती से कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट पानी आवंटित किया था, जिसे कम कर 55 टीएमसी किया जाना चाहिए और तमिलनाडु को और अधिक जल दिया जाना चाहिए. केंद्र ने कावेरी प्रबंधन बोर्ड की स्थापना और ट्रिब्यूनल फैसले को लागू करने के लिए एक योजना तैयार करने के लिए अपनी कार्रवाई को उचित ठहराया.
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केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा कि कई स्पष्टीकरण याचिकाएं ट्रिब्यूनल के सामने लंबित हैं और इसलिए ये उन पर अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहा है.
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