आधार की संवैधानिकता पर फिर विचार से विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में एक खुली अदालत की सुनवाई और इस आधार पर मौखिक रूप से प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी कि संविधान की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे वर्तमान मामले में उत्पन्न हुए हैं.

आधार की संवैधानिकता पर फिर विचार से विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने आधार (Aadhaar) की संवैधानिकता पर फिर से विचार करने का फैसला किया है. आधार (Aadhaar) पर सितंबर 2018 के फैसले पर पांच जजों की संविधान पीठ मंगलवार को विचार करेगी. आधार पर फैसले को लेकर दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट फैसला करेगा. बेंच मे CJI एस ए बोबडे, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एल नागेश्वर राव शामिल हैं. याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में एक खुली अदालत की सुनवाई और इस आधार पर मौखिक रूप से प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी कि संविधान की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे वर्तमान मामले में उत्पन्न हुए हैं. मामले में पुनर्विचार के लिए वरिष्ठ वकील श्याम दीवान द्वारा लिखित नोट में बताया गया है कि एक फैसले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 13 नवंबर, 2019 को रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड के मामले में आधार पर फैसले की शुद्धता पर संदेह व्यक्त किया गया है.

अदालत ने  संविधान के अनुच्छेद 110 की व्याख्या से संबंधित मुद्दे को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया. उन्होंने 14 नवंबर, 2019 को पारित सबरीमला पुनर्विचार फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें पांच न्यायाधीशों की पीठ ने खुली अदालत में सुनवाई की अनुमति दी थी. और फिर संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 की व्याख्या के संबंध में निर्धारित कानून के साथ असंगतता पाए जाने पर, अदालत ने इस मामले को कानून पर एक आधिकारिक घोषणा के लिए नौ न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ को संदर्भित किया था. उन्होंने 11 मई, 2020 को सबरीमाला मामले में एक बार फिर से नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के एक फैसले पर भरोसा किया है जहां शीर्ष अदालत ने संदर्भ की स्थिरता को देखते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पास कानून की स्थिति को सही करने के लिए व्यापक और गैर-निहित अधिकार हैं.

26 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने आधार नंबर की अनिवार्यता और इससे निजता के उल्लंघन पर अहम फ़ैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच में से चार जजों ने बहुमत से कहा था कि आधार नंबर संवैधानिक रूप से वैध है. हालांकि पांच जजों वाली बेंच ने आधार पर सर्वसम्मति से फ़ैसला नहीं सुनाया था. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने आधार नंबर को पूरी तरह से असंवैधानिक करार दिया था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि आधार को मनी बिल की तरह पास करना संविधान से धोखा है. इस बेंच में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे.

आधार कहां ज़रूरी, कहां नहीं
- बैंक अकाउंट और मोबाइल नंबर को आधार से जोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है. 
- सीबीएसई, यूजीसी, निफ्ट और कॉलेज आधार नंबर की मांग नहीं कर सकते हैं. 
- स्कूल में दाखिले के लिए आधार नंबर की मांग नहीं की जा सकती है.
- किसी भी बच्चे को आधार के बिना सरकारी योजनाओं का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
- बाक़ी पहचान पत्र को दरकिनार नहीं किया जा सकता है.
- निजी कंपनियां आधार नंबर की मांग नहीं कर सकती हैं.
- पैन कार्ड से आधार को जोड़ना ज़रूरी है

सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड पर 27 याचिकाओं पर रिकॉर्ड 38 दिनों तक सुनवाई चली थी. इसमें एक याचिकाकर्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुटुस्वामी भी शामिल थे. याचिका में आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी. सभी याचिकाकर्ताओं का कहना था कि आधार से निजता का उल्लंघन हो रहा है. 12 नंबर वाला ये पहचान कार्ड सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए सरकार ने अनिवार्य कर दिया था.

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