सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका खत्म की

सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका खत्म की

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाते हुए न्यायिक नियुक्ति आयोग (NAJC) को असंवैधानिक करार दिया। इसी के साथ जजों की नियुक्ति और तबादलों में सरकार भूमिका भी खत्म हो गई है।

पांच-सदस्यीय बेंच ने न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक घोषित किया। इसी के साथ बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच में भेजने की याचिका भी खारिज की। अब कोलेजियम सिस्टम जारी रहेगा।

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नेता जजों की नियुक्ति में शामिल न हों : याचिका
आयोग सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट के न्यायाधीश पद हेतु उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा, जिसके नाम पर दो सदस्यों ने सहमति नहीं जताई हो। आयोग को लेकर विवाद के कारण सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। मामले में याचिकाकर्ता ने आयोग में कानून मंत्री की मौजूदगी पर भी सवाल उठाए हैं। कहा गया है कि भ्रष्ट सरकार भ्रष्ट न्यायपालिका चाहेगी और भ्रष्ट जजों की नियुक्ति करेगी। नेताओं को जजों की नियुक्ति में शामिल नहीं होना चाहिए। नेताओं के हितों का टकराव हमेशा रहता है और यह सिस्टम पूरी न्यायपालिका को दूषित करेगा।

क्या था कोलेजियम सिस्टम
न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण का निर्धारण एक कोलेजियम व्यवस्था के तहत होता रहा है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया वर्ष 1993 से लागू थी। इसके तहत कोलेजियम सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति की अनुशंसा करता था। यह सिफारिश विचार और स्वीकृति के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी जाती थी। इस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद संबंधित नियुक्ति की जाती थी।

इसी प्रकार उच्च न्यायालय के लिए संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कोलेजियम से सलाह मशविरे के बाद प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजते थे। फिर देश के प्रधान न्यायाधीश के पास यह प्रस्ताव जाता था। बाद में इसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास विचार और स्वीकृति के लिए भेजा जाता था। इस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद सम्बंधित नियुक्ति की जाती थी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और तबादले के लिए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एक्ट बनाया था।

इस तरह की गई थी इस आयोग की संरचना
इस आयोग में कुल छह सदस्य रखने की बात थी। भारत के प्रधान न्यायाधीश  (सीजेआई) इसके अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होंगे। केंद्रीय कानून मंत्री को इसका पदेन सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव था। दो प्रबुद्ध नागरिक इसके सदस्य होंगे, जिनका चयन प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सहित तीन सदस्यों वाली समिति करेगी। अगर लोकसभा में नेता विपक्ष नहीं होगा तो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता चयन समिति में होगा।

फैसले से हैरान हैं कानून मंत्री सदानंद गौड़ा
इस बीच कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने इस फैसले पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि ‘लोगों की इच्छा’ को न्यायालय के समक्ष रखा गया था। गौड़ा ने बेंगलुरु में संवाददाताओं से कहा,  मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हैरान हूं। लोगों की इच्छा को न्यायालय में लाया गया था। हम प्रधानमंत्री और वरिष्ठ सहकर्मियों से विचार-विमर्श करेंगे और निर्णय लेंगे। यह पूछे जाने पर कि इस मामले में अब सरकार का आगे क्या कदम होगा, उन्होंने,  राज्यसभा और लोकसभा ने एनजेएसी को पूरी तरह समर्थन दिया था और इसे लोगों का 100 प्रतिशत समर्थन प्राप्त था।

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(इनपुट्स एजेंसी से भी)