सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व पर 1995 के फैसले और चुनाव में धर्म के इस्तेमाल के मुद्दे पर विचार करने के लिए मामले को पांच जजों की संविधान पीठ में भेजकर जल्द सुनवाई से इनकार किया है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने वकील सलमान खुर्शीद की उस मांग को ठुकराया जिसमें उन्होंने कहा कि इसकी पांच जजों की संविधान पीठ में भेजकर जल्द सुनवाई हो.
फिलहाल ये मुद्दा तीन जजों की पीठ के पास है. चीफ जस्टिस ने कहा कि आपकी नजर में हर केस अहम है, हमारी में नहीं. कोर्ट की अपनी प्राथमिकताएं हैं और वे आपसे अलग हैं.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 2 जनवरी 2017 को अहम फैसला देते हुए कहा था कि प्रत्याशी या उसके समर्थकों के धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है और ये करप्ट प्रैक्टिस है. सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने एक बार फिर साफ किया था कि वह हिंदुत्व के मामले में दिए गए 1995 के फैसले को दोबारा एग्जामिन नहीं करने जा रहे. इसके बाद 1995 हिंदुत्व जजमेंट को पांच जजों की संविधान पीठ में भेजा गया.
पीठ का कहना था कि पांच जजों ने जो रेफरेंस सात जजों को भेजा उसमें हिंदुत्व नहीं था. सात जजों ने रेफरेंस देकर वापस पांच जजों की बेंच को भेज दिया. यानि हिंदुत्व समेत बाकी मुद्दे उसी पीठ को सुनने थे. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर पांच के बजाए तीन जजों की पीठ बनाई गई है.
गौरतरलब है कि 1995 के दिसंबर में जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने कहा था कि हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों की जीवन शैली की ओर इंगित करता है. हिंदुत्व शब्द को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता.
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