नई दिल्ली: दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन पर लगा 25 हजार का हर्जाना माफ करने से इनकार कर दिया है. सतेंद्र जैन की और से कोर्ट में कहा गया कि हलफनामे के लिए 24 घंटे का ही वक्त मिला था, क्योंकि शनिवार 12 बजे तक ही हलफनामा दाखिल हो सकता है. कोर्ट ने कहा कि यह आपकी दलील है तो हमारे पास और भी सवाल हैं.
- क्या स्वास्थ्य मंत्री दिल्ली के लिए जिम्मेदार नहीं?
- कोर्ट भूतकाल नहीं जानना चाहता
- ये नहीं सुनना चाहते कि अफसरों ने मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया, सुनते नहीं
- दिल्ली सरकार बताए कि भविष्य में इस मुद्दे को लेकर उसकी क्या योजनाएं हैं, क्या तैयारियां हैं
- दिल्ली सरकार ये बताए कि क्या इन बीमारियों के लिए दिल्ली में अस्पतालों में बेड बढ़ाए गए हैं?
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार 5 कदम बताए कि भविष्य में उसकी क्या योजनाएं हैं
इस मामले पर दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया- उसने दिल्ली भर के लिए 300 फॉगिंग मशीन कांट्रेक्ट पर ली हैं
- मोहल्ला क्लिनिकों की संख्या हजार से ज्यादा करने की तैयारी है
- चिकनगुनिया और डेंगू को लेकर लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाया है
- अस्पतालों में ऐसे मरीजों के लिए बेड आरक्षित किए हैं
- केंद्र सरकार और निगमों की मदद से सफाई अभियान चलाया जा रहा है
दिल्ली सरकार ने कोर्ट को यह भी बताया कि 26 सितंबर को जो वकील सुप्रीम कोर्ट में मौजूद थे वे उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त किए गए थे. वकीलों ने नोटिस के बारे में दिल्ली सरकार को नहीं बताया था. 30 सितंबर को नोटिस के जवाब में कोई अफसर हलफनामा दाखिल करने को तैयार नहीं था, तो स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन ने जिम्मेदारी लेते हुए हलफनामा दाखिल किया. दिल्ली में सफाई आदि का जिम्मा निगम का है, जो दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन कोर्ट को यह बताना था कि ऐसे कौन से अधिकारी हैं, जो उनकी बात नहीं सुनते.
(सुप्रीम कोर्ट में सतेंद्र जैन का हलफनामा- मेरी नहीं, एलजी की सुनते हैं स्वास्थ्य सचिव) वहीं दिल्ली सरकार के हेल्थ सेक्रेट्री ने अपना हलफनामा दाखिल किया.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सवाल उठाए कि क्या दिल्ली के विधायकों को दिए जाने वाले फंड को साफ-सफाई के काम में नहीं लगाया जा सकता. जो पैसा आप नगर निगम को बजट के रूप में देते हो उन पैसों से कितना काम हुआ. सफाई हुई या नहीं. ये जानने जरूरत क्यों नहीं होती?
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर आपने किसी नगर निगम को किसी महीने में 100 करोड़ रुपये दिए और अगले महीने आपको कहीं कूड़ा दिखता है तो क्या आपकी जिम्मेदारी नहीं बनती कि आप पूछें उन पैसों का क्या हुआ? आप बस यह कहकर बैठ जाते हैं कि निगम पर हमारा अधिकार नहीं है. जबकि केस के एमिकस ने कोर्ट में बताया कि दिल्ली सरकार और निगम को मतभेद भूलकर काम करना चाहिए.
एमिकस ने यह भी कहा कि फॉगिंग में कैमिकल इस्तेमाल होते हैं. उन पर विचार किया जाना चाहिए. फॉगिंग में जो कैमिकल इस्तेमाल होता है वह बच्चों और बजुर्गों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है. इस पर WHO की रिपोर्ट भी है.
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के लोगों के भले के लिए कदम उठाने जरूरी हैं. आपस में मिल बैठकर दिल्ली के लिए काम करें. उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बुधवार को बैठक हो. बैठक में मुख्यमंत्री के साथ स्वास्थ्य मंत्री और केंद्र की ओर से हैल्थ सेक्रेट्री हों. बैठक में सारे निगमों के कमिश्नर, रेलवे जीएम, मेट्रो चेयरमैन, डीडीए के वाइसचेयरमैन, NDMC के चेयरमैन भी शामिल हों.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें नहीं पता कि दिल्ली सरकार सही है या गलत, लेकिन वे यह कह रहे हैं कि उनके अधिकार में कुछ नहीं है. ऐसे में सही तरीका है कि सब मिल बैठकर समस्या का हल निकालें. मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को होगी.
इससे पूर्व इस मामले को लेकर कोर्ट ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि बताएं ऐसे कौन-से अधिकारी हैं, जो उनकी बात नहीं सुनते. वहीं दिल्ली सरकार के हेल्थ सेक्रेट्री ने अपना हलफनामा दाखिल किया.सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन की तरफ से हलफनामा दाखिल न करने पर कोर्ट ने 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि जब लोग मर रहे हों तो आपको 24 घंटे का वक्त क्यों चाहिए. ये आपकी मंशा थी कि आपने मामले को हल्के में लिया और शनिवार को हलफनामा दाखिल नहीं किया. आपको पूरी रात जागकर हलफनामा तैयार कर दाखिल करना चाहिए था. हमने आपको हलफनामा दाखिल करने के लिए वक्त दिया था कि आप अधिकारियों के नाम बता सकें, जो आपकी बात नहीं मान रहे.