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This Article is From Mar 13, 2021

हाईकोर्ट का ये कैसा फैसला, सुप्रीम कोर्ट के जज बोले- पढ़ने के बाद सिर पर बाम लगाना पड़ा

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जस्टिस एमआर शाह ने कहा, 'मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया. इसमें इतने लंबे-लंबे वाक्य हैं कि कुछ पता ही नहीं चलता कि आखिर शुरू में क्या कहा और अंत में क्या कहा.'

हाईकोर्ट का ये कैसा फैसला, सुप्रीम कोर्ट के जज बोले- पढ़ने के बाद सिर पर बाम लगाना पड़ा
SC के जज फैसला लिखने के ढंग से नाराज दिखे. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

जरा सोचिए कि जब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज ही ये कहें कि हाईकोर्ट (High Court) का फैसला समझ नहीं आया. जज कहें कि फैसला पढ़ने के बाद बाम लगानी पड़ी. जी हां, सुप्रीम कोर्ट में आज अजीब सी स्थिति हो गई, जब कोर्ट के दोनों जज हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को लिखने के ढंग से नाराज दिखे. यहां तक कि दोनों जज हिंदी में बात करने लगे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'ये क्या जजमेंट लिखा है. मैं इसे दस बजकर दस मिनट पर पढ़ने बैठा और 10.55 तक पढ़ता रहा. हे भगवान! वो हालत बताई नहीं जा सकती, कल्पना से परे है.'

इस पर जस्टिस एमआर शाह ने कहा, 'मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया. इसमें इतने लंबे-लंबे वाक्य हैं कि कुछ पता ही नहीं चलता कि आखिर शुरू में क्या कहा और अंत में क्या कहा. पूरे जजमेंट में कौमा ही कौमा हैं. समझ ही नहीं आ रहा कहां वाक्य खत्म है, कहां नहीं. ये फैसला पढ़ते समय कई बार तो मुझे अपने ज्ञान और अपनी समझ पर भी शक होने लगा. मुझे फैसले का आखिरी पैरा पढ़ने के बाद अपने सिर पर टाइगर बाम लगाना पड़ा.'

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने फिर कहा कि फैसला ऐसा सरल लिखा होना चाहिए, जो किसी भी आम आदमी की समझ में आ जाए. जस्टिस कृष्ण अय्यर के फैसले ऐसे ही होते थे, जैसे वो कुछ कह रहे हैं और पढ़ने वाला सब कुछ उतनी ही सरलता से समझ रहा है. शब्दों की कारीगरी थी.

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सेंट्रल गवर्नमेंट इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल (CGIT) के एक मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर पीठ ने कहा कि कि फैसला काफी देर तक पढ़ने के बाद भी कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर कोर्ट कहना क्या चाहता है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के नवंबर 2020 में आए इस 18 पेज के फैसले का कोई निर्णायक पहलू नहीं दिखता. दरअसल ये मामला केंद्र सरकार के एक कर्मचारी की याचिका पर आधारित था, जिसमें हाईकोर्ट ने  CGIT के आदेश पर अपनी मुहर लगाई थी. CGIT ने एक कर्मचारी को कदाचार का दोषी मानते हुए दंडित किया था. दंडित कर्मचारी हाईकोर्ट गया. हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट आया.

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