सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरखंड के तीन जिलों देहरादून, उधम सिंह नगर और हरिद्वार में पिछले 35 साल से हर शनिवार को निचली अदालत में होने वाली वकीलों की हड़ताल को शुक्रवार को अवैध करार दिया. कोर्ट ने इसे अवमानना जैसा बताया. शीर्ष न्यायालय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य बार काउंसिल ऑफ इंडिया को इस तरह की वकीलों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है.
उत्तराखंड के तीन जिलों में पिछले 35 वर्षों से अधिक समय से काम कर रहे वकील आमतौर पर पड़ोसी देशों में होने वाली घटनाओं को लेकर हड़ताल पर चले जाते थे. जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पहुंचा तो अदालत ने कहा, यह कोई मजाक है क्या.
सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में यह मामला तब आया आया, जब वह उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर में पिछले 35 साल से वकीलों द्वारा शनिवार को अदालत के कामों की हड़ताल या बहिष्कार करने को "अवैध" ठहराया गया था.
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हाईकोर्ट ने 25 सितंबर, 2019 के अपने फैसले में विधि आयोग की 266वीं रिपोर्ट का उल्लेख किया था, जिसमें वकीलों द्वारा हड़तालों के कारण कार्य दिवसों के नुकसान के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया था. कोर्ट ने कहा था कि वकीलों का यह रवैया अदालतों के कामकाज को प्रभावित करता है और मुकदमों का पहाड़ खड़ा करने में योगदान देता है.
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न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा, "यह देश में हर जगह हो रहा है. स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना शुरू करने के लिए यह एक उचित मामला है. बार एसोसिएशन कैसे कह सकता है कि वे हड़ताल जारी रखेंगे?"
पीठ ने कहा, "हालात खराब हो गए हैं." हाईकोर्ट का आदेश पूरी तरह से उचित है." हम इस तरह की चीजों की अनुमति नहीं दे सकते. हर कोई हड़ताल पर जा रहा है. आज, देश के हर हिस्से में हड़ताल चल रही है. हमें अब बहुत कठोर होना चाहिए. आप कैसे कह सकते हैं कि हर शनिवार को हड़ताल रहेगी?" पीठ ने कहा आप एक मजाक कर रहे हैं. अधिवक्ता के परिवार के सदस्य की मृत्यु हो जाती है और पूरे वकील हड़ताल पर चले जाते हैं. यह क्या है?
वीडियो: वकीलों की हड़ताल से आम लोग परेशान
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