सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक ऐसे दंपति की शादी को रद्द करने का आदेश दिया जो बीते 22 सालों से अलग रह रहे थे और उनके बीच लगातार मतभेद बने हुए थे. कोर्ट ने कहा, 'यह शादी अस्थिर, भावनात्मक रूप से मृत, निस्तारण से परे और अनियमितता से भरी है.' न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और एमआर शाह की पीठ ने कहा "हमारा विचार है कि प्रतिवादी पत्नी के हितों की रक्षा करते हुए एकमुश्त स्थायी गुजारा भत्ता के माध्यम से उसकी भरपाई करने के लिए, यह अनुच्छेद के तहत शक्तियों का प्रयोग करने और भारत के संविधान के 142 और पार्टियों के बीच शादी को रद्द करने के लिए एक उपयुक्त मामला है.''
पति ने 2012 के आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, जिसमें पत्नी के खिलाफ तलाक के फैसले को पारित करने से इनकार करने के पारिवारिक न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा गया था.
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इस दंपति की शादी 1993 में हुई थी. लेकिन बाद में दोनों में मतभेद हो गए. 1997 तक, अधिकांश समय तक, पत्नी अपने माता-पिता के घर पर रही. पति ने 1999 में हैदराबाद की एक पारिवारिक अदालत के समक्ष तलाक की याचिका दायर की.
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