
सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के मामले में वकील प्रशांत भूषण को दोषी पाया गया है. अब सजा के बिंदु पर बहस 20 अगस्त को होगी. इधर उनके वकील ने राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्रशांत भूषण शुक्रवार को दोषी करार दिए गए फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे. राजीव धवन ने कहा भूषण ने पूर्व CJI पर बयान दिया था, वो अवमानना कैसे हो गया? धवन ने दलील दी कि स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले प्रशांत भूषण को दोषी तय करने वाले अपने फैसले के एक हिस्से में तो कोर्ट ने विवादास्पद ट्वीट्स को अवमानना बताया है लेकिन दूसरे हिस्से में उसे अवमानना नहीं माना है. ऐसे में भूषण कोर्ट के सामने पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे ताकि स्थिति साफ हो. इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए. वहीं साल 2009 के एक अवमानना मामले में भी प्रशांत भूषण खिलाफ सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किए हैं. जिसमें पहला सवाल है कि यदि न्यायिक भ्रष्टाचार 'पर बयान सार्वजनिक किए जाते हैं, तो वे किन परिस्थितियों में किए जा सकते हैं. दूसरा वर्तमान और सेवानिवृत जजों पर सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार के ऐसे बयान दिए जाने पर अपनाए जाने वाली प्रक्रिया क्या हो?
कोर्ट की अवमानना मामले में प्रशांत भूषण दोषी करार, सजा पर सुनवाई 20 अगस्त को
अब इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में अगले हफ्ते सुनवाई होगी. तरूण तेजपाल की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले को बंद कर देना चाहिए. पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने सुझाव दिया कि अदालत जब शारीरिक रूप से सुनवाई शुरू करे तभी मामले की सुनवाई की जानी चाहिए. दस अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के स्पष्टीकरण को मंजूर करने से इनकार किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो अवमानना मामले में आगे सुनवाई करेगा कि क्या ये बयान अवमानना हैं या नहीं. वहीं 2009 में भूषण के खिलाफ दर्ज अवमानना के मुकदमे का ज़िक्र करते हुए धवन ने कहा कि उस समय इनका ये कथन कोर्ट की अवमानना कैसे हो सकता है जिसमे भूषण ने कहा था कि हाल ही में रिटायर हुए जजों में से 16 भ्रष्ट हैं. उन्होंने सेवारत जजों के बारे में तो कुछ कहा ही नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री एक याचिका को लेकर सवालों के घेरे में
प्रशांत भूषण ने 2009 अवमानना केस में SC में लिखित जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना अवमानना के समान नहीं है और इस कार्रवाई के लिए जजों पर लगाए गए आरोपों की जांच जरूरी है. प्रशांत भूषण ने दावा किया है कि जनहित में भ्रष्टाचार का आरोप लगाने की किसी भी क़वायद को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में रखा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना था कि मामले में वह स्पष्टीकरण को मंजूर करे या अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई आगे बढ़े.
आपको बता दें कि प्रशांत भूषण के खिलाफ यह केस तहलका को दिए गए इंटरव्यू को लेकर है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि भारत के 16 मुख्य न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे. प्रशांत भूषण ने इस मामले में कोर्ट में अपना स्पष्टीकरण दिया है जबकि तहलका के संपादक तरुण तेजपाल ने माफी मांगी है. साल 2009 में एक इंटरव्यू में वकील भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के 8 पूर्व चीफ़ जस्टिस को भ्रष्ट कहा था. पिछली सुनवाई में भूषण ने 2009 में दिए अपने बयान पर खेद जताया था लेकिन बिना शर्त माफ़ी नहीं मांगी थी. भूषण ने कहा कि तब मेरे कहने का तात्पर्य भ्रष्टाचार कहना नहीं था बल्कि सही तरीक़े से कर्तव्य न निभाने की बात थी.
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