सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
जेलों में बंद कैदियों की दुर्दशा के मामले की सुनवाई के दौरान एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने-सामने हैं.
इस मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि भारत तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहा है. ऐसे हालत में न्यायपालिका को हर प्रकार की जनहित याचिका पर सुनवाई की जरूरत नहीं है. भारत एक विकासशील देश है और करीब 60 फीसदी आबादी गरीब है. ऐसे में सरकार जो कुछ कर सकती है वो प्रयास कर रही है.
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सुप्रीम कोर्ट के हर मुद्दे पर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने से खुद को रोकना चाहिए. इस पर जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि हमने भी बहुत सी ऐसी चीज़ें देखी हैं जिससे देश मे तमाम समस्याओं के समाधान के लिए आवंटित बजट का इस्तेमाल तक नहीं किया गया. कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण, पर्यावरण और कचरे की समस्या इतनी विकराल है कि इनको दरकिनार नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि देश में गरीबी का आलम और सरकार के बजट खर्च करने के ये हालत है कि एक ओर तो लोगों के पास पहनने को कपड़ा और शिक्षा का बुनियादी इंतज़ाम तक नहीं है, लेकिन सरकार जनता को वाशिंग मशीन और लैपटॉप बांट रही है. क्या ये बजट का सही इस्तेमाल है?
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश मे कई संस्थान ऐसे हैं जिनकी देखरेख के लिए हमने कमेटी बनाकर काम तेजी से आगे बढ़ाने को कहा पर हुआ कुछ नहीं है. कोर्ट ने मनरेगा, विधवाओं का पुनर्वास और जेलों में बंद महिला कैदियों के बच्चों की दुर्दशा पर सरकार को पहले ही समय रहते काम करना चाहिए था. हमारी मंशा सरकार की आलोचना करने की नहीं है और हम ऐसा करना भी नहीं चाहते. हम अपनी ऐसी छवि नहीं चाहते. कोर्ट ने कहा कि हम अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक के गरिमापूर्ण ढंग से जीने के अधिकार की रक्षा में जुटे हैं. हमने ऐसे कई मामलों में सरकार से अतिरिक्त धन आवंटन के आदेश भी दिए. गंभीर सुनवाई के दौरान कुछ हल्के फुल्के क्षण भी आए जब कोर्ट ने कहा कि सरकार के पास तमाम मुश्किलों का संवैधानिक उपाय 356 है. ऐसा कुछ हमारे पास नहीं. इस पर सरकार ने कहा कि आप 356 को रद्द भी तो करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बाबत रिटायर्ड जज की अगुआई में कमेटी बनाई जाए जिसमे सरकार के दो अफसर भी हों. कमेटी जेलों में सुधार के लिए समय समय पर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को देगी.
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इस मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि भारत तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहा है. ऐसे हालत में न्यायपालिका को हर प्रकार की जनहित याचिका पर सुनवाई की जरूरत नहीं है. भारत एक विकासशील देश है और करीब 60 फीसदी आबादी गरीब है. ऐसे में सरकार जो कुछ कर सकती है वो प्रयास कर रही है.
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