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This Article is From Sep 13, 2019

SC शरिया कानून के मुताबिक विवाह के अधिकार पर अमल करने वाली याचिका पर सुनवाई को तैयार

सुप्रीम कोर्ट शरिया यानी मुस्लिम कानून के मुताबिक लड़की को यौवनास्था शुरू होते ही विवाह के अधिकार पर अमल करने वाली याचिका का परीक्षण करने को तैयार हो गया है. 

SC शरिया कानून के मुताबिक विवाह के अधिकार पर अमल करने वाली याचिका पर सुनवाई को तैयार
प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट शरिया यानी मुस्लिम कानून के मुताबिक लड़की को यौवनास्था शुरू होते ही विवाह के अधिकार पर अमल करने वाली याचिका का परीक्षण करने को तैयार हो गया है. मुस्लिम कानून में 16 साल की उम्र में लड़की को शादी के लायक माना जाता है, लिहाज़ा उसे विवाह का अधिकार है. दरअसल, उत्तर प्रदेश की एक लड़की ने इसी आधार पर शादी की तय संवैधानिक उम्र 18 साल होने से पहले किए गए अपने विवाह को वैध घोषित करने की गुहार कोर्ट से लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है, जिसमें एक नाबालिग मुस्लिम लड़की ने कहा है कि उसने मुस्लिम कानून के हिसाब से निकाह किया है. वह प्यूबर्टी (रजस्वला होने) की उम्र पा चुकी है और अपनी वैवाहिक जिंदगी जीने को आजाद है. बता दें कि लड़की ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हाईकोर्ट ने लड़की की शादी को शून्य करार देते हुए उसे शेल्टर होम में भेजने का आदेश दिया था. 

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सुप्रीम कोर्ट में दायर SLP याचिका में कहा गया है कि वह शादीशुदा है. ऐसे में उसे दांपत्य जीवन बसर करने की इजाजत दी जाए. दरअसल यह मामला यूपी के अयोध्या का है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना,  जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने इस मामले में दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान इसे विस्तार से सुनने के लिए सहमति देते हुए यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.दरअसल शादी के वक्त लड़की की उम्र 16 साल बताए जाने के बाद अयोध्या की निचली अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि लड़की चूंकि नाबालिग है ऐसे में उसे शेल्टर होम भेजा जाए. लड़की ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी. फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता लड़की नाबालिग है और वह अपने माता पिता के साथ नहीं रहना चाहती, लिहाजा उसे शेल्टर होम में भेजने का आदेश सही है. इस आदेश के साथ ही हाईकोर्ट ने शादी को शून्य करार दे दिया. 

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इस युवती की याचिका में दलील है कि इस्लामिक कानून के तहत कोई भी लड़की अमूमन 15 साल की आयु यानी रजस्वला होने पर वह अपनी जिंदगी के बारे में निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र है. यानी वो अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने में सक्षम है. इस लड़की ने अपने वकील दुष्यंत पाराशर के ज़रिए दायर याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट इस तथ्य को मानने में विफल रहा है कि उसका निकाह मुस्लिम कानून के अनुसार हुआ है. याचिका में लड़की ने अपने जीने, धार्मिक मान्यताओं का पालन करने और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा के लिए दलील दी है कि वह एक युवक से प्रेम करती है और इस साल जून में मुस्लिम कानून के अनुसार उनका निकाह हो चुका है. 

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कथित निकाह के बाद लड़की के पिता ने लड़के के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कराया था. लड़की के पिता ने पुलिस को दर्ज कराई गई शिकायत में कहा कि एक युवक ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसकी बेटी का अपहरण कर लिया है. हालांकि, लड़की ने मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए गए अपने बयान में कहा है कि उसने उस व्यक्ति से अपनी मर्जी से शादी की है. वह उसके ही साथ रहना चाहती है. यूपी के बहराइच की एक अदालत ने 24 जून को अपने फैसले में कहा था कि भारतीय कानून के मुताबिक लड़की की उम्र शादी के लायक नहीं हुई है. कोर्ट ने लड़की को 18 साल की उम्र पूरी करने तक बाल कल्याण कमिटी, बहराइच के पास भेज दिया था. 

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इस पर लड़की के पति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के सामने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की तो बेंच ने लड़की के पति की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि जूवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रॉटेक्शन) एक्ट के तहत लड़की को नाबालिग ही माना जाएगा. लिहाज़ा यह शादी अमान्य है. हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले से सहमति जताते हुए लड़की को वूमन शेल्टर होम भेज दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट इस विवाद को नए नज़रिए से सुनेगा. यानी मुस्लिम आबादी के लिए देश का कानून और इस्लामिक कानून में से कौन सा कब, कहां और कैसे लागू होगा ये भी साफ होगा.

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