Russia Ukraine Crisis: रूस और यूक्रेन संकट के कारण कई सारे भारतीय छात्रों को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर देश वापस आना पड़ रहा है. स्वदेश लौटे इन छात्रों को अब अपने भविष्य की चिंता हो रही है. भारत लौटे छात्र अब यही सोच रहे हैं कि उनकी पढ़ाई पूरी कैसे होगी और डिग्री कैसे मिलेगी? रिद्धि शर्मा, बुकोविनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी की थर्ड ईयर की एमबीबीएस छात्रा हैं. अपनी जान बचाकर भारत पहुंची रिद्धि शर्मा को अब अपने भविष्य की चिंता है. रिद्धि शर्मा इसी सोच में हैं कि अगर ये युद्ध जल्द खत्म नहीं हुआ और वो वापस यूक्रेन नहीं जा सकी. तो कैसे उनकी पढ़ाई पूरी होगी?
रिद्धि शर्मा का ये डर उनके चाचा के अंदर भी है. रिद्धि शर्मा के चाचा सुमित शर्मा ने NDTV से बात करते हुए कहा कि हम लोग बाहर (दूसरे देशों में) बच्चों को भेजते हैं, क्योंकि पढ़ाई वहां पर सस्ती और अच्छी है. सरकार से गुजारिश है कि यहां भी फीस कम कर दें. वहीं अभिभावकों की चिंता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने ये वादा किया है कि वो यूक्रेन, रूस और बाकी देशों के कॉलेजों की फीस की समीक्षा की जाएगी. राज्य सरकार के मंत्री अमित देशमुख ने कहा कि अगर वही व्यवस्था यहां हो जाए तो अच्छा है. राज्य और केंद्र को मिलकर इसपर काम करना होगा.
आखिर क्यों मेडिकल की पढ़ाई के लिए दूसरे देश जाते हैं बच्चे
रूस, यूक्रेन, चीन सहित कई देशों में मेडिकल की पढ़ाई सस्ते में हो जाती है. यही कारण है कि भारत के छात्र पढ़ाई करने के लिए देश से बाहर जाते हैं. यूक्रेन में 20 से लेकर 30 लाख रुपये के अंदर मेडिकल की पढ़ाई पूरी की जा सकती है. वहीं भारत में इसका खर्चा 1 करोड़ रुपये तक आता है.
इसके अलावा भारत के कॉलेजों में दाखिला लेने के लिए NEET में अच्छे अंक हासिल करने होते हैं. जबकि यूक्रेन के कॉलेजों में सिर्फ NEET को पास करने पर ही दाखिला मिल जाता है. भारत में मेडिकल के लिए कुल 85, 000 हजार सीटें मौजूद हैं. जबकि हर साल 15 लाख से ज्यादा छात्र दाखिले के लिए आवेदन करते हैं. ऐसे में दाखिला न मिलने पर छात्र दूसरे देशों में जाकर पढ़ाई करते हैं.
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