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This Article is From Aug 24, 2017

अदालतें तय कर रही हैं समाज की दिशा, पढ़ें- वे 5 फैसले जो लाएंगे बड़ा बदलाव

तीन तलाक के मुद्दे पर भी देश में बहस 40 सालों से चल रही है. इस बार राजनीति भी खूब हुई. लेकिन इसका रास्ता भी कोर्ट से ही निकला. ऐसे ही कई मुद्दे रहे हैं जो समाज में बदलाव लेकर आए और इनके लिए अदालतें ही जरिया बनीं.

अदालतें तय कर रही हैं समाज की दिशा, पढ़ें- वे 5 फैसले जो लाएंगे बड़ा बदलाव
सुप्रीम कोर्ट ( फाइल फोटो )
नई दिल्ली:

राजनीतिक दल समाज में बदलाव की वकालत तो खूब करते हैं लेकिन वास्तविकता तो यह है कि अदालत न होती तो आज भी समाज का एक बड़ा तबका कुरीतियों में जकड़ा रहता. तीन तलाक के मुद्दे पर भी देश में बहस 40 सालों से चल रही है. इस बार राजनीति भी खूब हुई. लेकिन इसका रास्ता भी कोर्ट से ही निकला. ऐसे ही कई मुद्दे रहे हैं जो समाज में बदलाव लेकर आए और इनके लिए रास्ता कोर्ट से ही निकला. इसी तरह गुरुवार को भी 9 जजों की पीठ ने निजता के अधिकार को लेकर एक अहम फैसला किया है. 

 1- निजता का अधिकार : एक बेहद अहम फैसले के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार, यानी राइट टु प्राइवसी को मौलिक अधिकारों, यानी फन्डामेंटल राइट्स का हिस्सा करार दिया है. नौ जजों की संविधान पीठ ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए कहा कि राइट टु प्राइवेसी मौलिक अधिकारों के अंतर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है. राइट टू प्राइवेसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आती है. अब  लोगों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं होगी. हालांकि आधार को योजनाओं से जोड़ने पर सुनवाई आधार बेंच करेगी. इसमें 5 जज होंगे.

2- ट्रिपल तलाक : मुस्लिम महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक बड़ी राहत लेकर आया है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बैंच जिसमें मुख्य न्यायाधीश सहित 5 जज शामिल थे, बहुमत के आधार पर एक झटके में ही ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया इसके साथ ही केंद्र सरकार को इस पर कानून बनाने का आदेश भी दे दिया. मुस्लिम महिलाओं ने ट्रिपल तलाक के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी है जबकि मुस्लिम धर्मगुरु इसके पक्ष में खड़े थे.  

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3- महिलाओं को संपत्ति अधिकार :
9 सितंबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिलाओं को उनके पिता की संपत्ति में अधिकार का फैसला सुनाया. इससे पहले  हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 पिता की संपत्ति में बेटी के अधिकार की बात नहीं थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसमें संशोधन किया और पिता की संपत्ति में बेटे की तरह ही बेटी को भी संपत्ति का अधिकार दे दिया. 

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4- हाजी अली दरगाह पर फैसला : मुंबई की हाजी अली दरगाह के गर्भ गृह में महिलाओं के अंदर जाने का अधिकार भी कोर्ट के ही जरिए आया. दरगाह प्रबंधन का कहना था कि शरिया कानून महिलाओं को अंदर जाने की इजाजत नहीं देता है और महिलाओं को अंदर जाने पर रोक लगा दी.  लेकिन बांबे हाईकोर्ट ने 26 अगस्त 2012 इस पाबंदी को असंवैधानिक करार दे दिया. इस फैसले के विरोध में दरगाह ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी हाईकोर्ट के पक्ष में ही फैसला दिया.

वीडियो :  मुकाम तक पहुंची लड़ाई


5- मूर्ति विसर्जन पर फैसला : मूर्ति विसर्जन की वजह से हर साल नदियां प्रदूषित होती थीं. इसको लेकर प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने कई बार निर्देश भी दिए लेकिन मामला धर्म से जुड़े होने की वजह से कोई भी सरकार कुछ बोलने को तैयार नहीं थी. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी.

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