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This Article is From Dec 01, 2016

भारत-चीन युद्ध के दौर में देशभक्ति के जज्बे के लिए टॉकीजों में बजता था राष्ट्रगान

भारत-चीन युद्ध के दौर में देशभक्ति के जज्बे के लिए टॉकीजों में बजता था राष्ट्रगान
वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब 'राजनीतिनामा मध्यप्रदेश'.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय गान, यानी 'जन गण मन' को सिनेमाघरों में बजाना अनिवार्य कर दिया है. यह फैसला कल आया. हालांकि सिनेमाघरों में फिल्म प्रदर्शन से पहले राष्ट्रगान बजाने की परंपरा पूर्व में भी रही है. मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब 'राजनीतिनामा मध्यप्रदेश' में इसका उल्लेख है. साठ के दशक में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने द्वारका प्रसाद मिश्र की सलाह पर सिनेमाघरों में देश की जनता में देशभक्ति का जज्बा जगाने के लिए राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य किया था.

द्वारका प्रसाद मिश्र मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. इससे पहले वे सागर विश्वविद्यालय के कुलपति थे. 'राजनीतिनामा मध्यप्रदेश' में दीपक तिवारी ने लिखा है कि अप्रैल 1962 में सागर विश्वविद्यालय में कुलपति का कार्यकाल पूरा होने पर द्वारका प्रसाद मिश्र जबलपुर में जाकर बस गए थे. वे कांग्रेस के नेताओं के संपर्क में थे और पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी उनकी नजदीकी थी. उन्हीं दिनों में भारत-चीन युद्ध हुआ. तब इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में चीन हमले के विरुद्ध केंद्रीय नागरिक परिषद बनाई गई. द्वारका प्रसाद मिश्र को जनसंपर्क समिति का अध्यक्ष बनाया गया. मिश्र की सलाह पर सिनेमाघरों में फिल्म प्रदर्शन से पहले राष्ट्रगान बजाने का चलन शुरू किया गया था.

दीपक तिवारी ने एनडीटीवी को बताया कि चीन का हमला देश पर बड़ी विपत्ति का समय था. उन दिनों में आम जन में देश के प्रति समर्पण का भाव जागृत करने की जरूरत थी. केंद्रीय नागरिक परिषद इसी उद्देश्य से बनाई गई थी. सिनेमाघर वह स्थान है जहां आम लोग नियमित रूप से एकत्रित होते हैं. द्वारका प्रसाद मिश्र को जनसमूह को देशभक्ति का संदेश देने के लिए सिनेमाघर सबसे उपयुक्त लगे और उन्होंने इन स्थानों पर राष्ट्रगान बजाने की सलाह सरकार को दी.        

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश में बुधवार को कहा कि देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रीय गान ज़रूर बजेगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय गान बजते समय सिनेमाहॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा, तथा सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रीय गान के सम्मान में खड़ा होना होगा.
 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय गान राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, ध्यान रखा जाए कि किसी भी व्यावसायिक हित में राष्ट्रीय गान का इस्तेमाल नहीं किया जाए. किसी भी तरह की गतिविधि में ड्रामा क्रिएट करने के लिए भी राष्ट्रीय गान का इस्तेमाल नहीं होगा तथा राष्ट्रीय गान को वैरायटी सॉन्ग के तौर पर भी नहीं गाया जाएगा.

आखिर क्यों इस शख्स ने सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान पर खड़े होने की याचिका दर्ज की...

इस मामले में श्याम नारायण चौकसे की याचिका में कहा गया था कि किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए राष्ट्रीय गान के चलन पर रोक लगाई जानी चाहिए, और एंटरटेनमेंट शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रीय गान को इस्तेमाल न किया जाए. याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर राष्ट्रीय गान को अंत तक गाया जाना चाहिए, और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए. याचिका में कोर्ट से यह आदेश देने का आग्रह भी किया गया था कि राष्ट्रीय गान को ऐसे लोगों के बीच न गाया जाए, जो इसे नहीं समझते. इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय गान की धुन बदलकर किसी ओर तरीके से गाने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए.

याचिका में कहा गया है कि इस तरह के मामलों में राष्ट्रीय गान नियमों का उल्लंघन है और यह वर्ष 1971 के कानून के खिलाफ है. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अक्टूबर में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.

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