बेंगलुरु:
ऐसे समय में जब भारी विरोध के कारण कुडनकुलम परमाणु विद्युत संयंत्र के शुरू होने में दिक्कतें आ रही हैं, कार्यकर्ताओं ने अब तमिलनाडु में एक अन्य परमाणु स्थल की सुरक्षा को लेकर चिंता खड़ी की है।
कार्यकर्ताओं का दावा है कि इस बात के दस्तावेजी सबूत हैं कि चेन्नई के पास कलपक्कम में स्थित मद्रास परमाणु विद्युत केंद्र के पास समुद्र के नीचे ज्वालामुखी मौजूद है। कार्यकर्ताओं ने ज्वालामुखी के सम्भावित खतरों की परमाणु ऊर्जा विभाग से गहन जांच कराने की मांग की है।
मार्च में पहली बार तमिल में प्रकाशित हुई और हाल में 'कलपक्कम न्यूक्लियर रिएक्टर्स एंड सबमैरीन वोल्कैनो' शीर्षक से अंग्रेजी में अनूदित एक पुस्तक में पीपुल्स मूवमेंट फॉर न्यूक्लियर रेडिएशन सेफ्टी केवी पुघझेंदी और आर रमेश ने यह दर्शाते हुए दस्तावेजी सबूत संकलित किए हैं कि चेन्नई के दक्षिण पूर्व में 156 किलोमीटर की दूरी पर और पांडिचेरी के पूर्व में 100 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र के नीचे एक ज्वालामुखी स्थित है।
यह कलपक्कम स्थित परमाणु संयंत्र के लिए खतरा बन सकती है। कलपक्कम में दो परमाणु विद्युत संयंत्रों के अलावा वहां एक फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर और एक ईंधन पुनर्शोधन केंद्र भी है। वहां जल्द ही एक 500 मेगावॉट का प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर भी स्थापित होने वाला है।
लेखकों ने कहा है, "ज्वालामुखी के भड़कने और समुद्र के नीचे भूस्खलन होने से विनाशकारी सुनामी की तरंगे उठ सकती हैं।" लेखकों ने कहा है कि 2004 में जब इस तट पर सुनामी आई थी तो उस समय निर्माणाधीन फास्ट ब्रीडर रिएक्टर स्थल डूब गया था।
किसी ज्वालामुखी से किसी परमाणु संयंत्र को जो खतरा हो सकता है, उसकी पहचान वियना स्थित अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने की है।
एजेंसी की सुरक्षा निर्देशिका 'वोल्कैनिक हजार्ड्स इन साइट इवैलुएशन फॉर न्युक्लियर इंस्टालेशन्स' मई 2011 में जारी हुई थी, जिसमें सदस्य देशों से उन रिएक्टरों की हिफाजत के लिए कहा गया था, जिनके निर्माण के समय ज्वालामुखी के सम्भावित प्रभाव के बारे में विचार नहीं किया गया है।
आईएईए की निर्देशिका में ज्वालामुखियों का एक विश्व मानचित्र भी है, जिसमें देश के पूर्वी तट पर पांडिचेरी से लगे समुद्र के नीचे एक ज्वालामुखी दर्शाया गया है।
पुघाझेंदी और रमेश ने कहा है कि आईएईए की निर्देशिका जारी हुए सालभर से अधिक समय बीत चुके हैं और उसमें चेन्नई से लगे समुद्र के नीचे एक ज्वालामुखी की सम्भावित उपस्थिति के बारे में जिक्र है, लेकिन इसके बावजूद भारतीय परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) इस बारे में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं कर पाया है।
कार्यकर्ताओं का दावा है कि इस बात के दस्तावेजी सबूत हैं कि चेन्नई के पास कलपक्कम में स्थित मद्रास परमाणु विद्युत केंद्र के पास समुद्र के नीचे ज्वालामुखी मौजूद है। कार्यकर्ताओं ने ज्वालामुखी के सम्भावित खतरों की परमाणु ऊर्जा विभाग से गहन जांच कराने की मांग की है।
मार्च में पहली बार तमिल में प्रकाशित हुई और हाल में 'कलपक्कम न्यूक्लियर रिएक्टर्स एंड सबमैरीन वोल्कैनो' शीर्षक से अंग्रेजी में अनूदित एक पुस्तक में पीपुल्स मूवमेंट फॉर न्यूक्लियर रेडिएशन सेफ्टी केवी पुघझेंदी और आर रमेश ने यह दर्शाते हुए दस्तावेजी सबूत संकलित किए हैं कि चेन्नई के दक्षिण पूर्व में 156 किलोमीटर की दूरी पर और पांडिचेरी के पूर्व में 100 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र के नीचे एक ज्वालामुखी स्थित है।
यह कलपक्कम स्थित परमाणु संयंत्र के लिए खतरा बन सकती है। कलपक्कम में दो परमाणु विद्युत संयंत्रों के अलावा वहां एक फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर और एक ईंधन पुनर्शोधन केंद्र भी है। वहां जल्द ही एक 500 मेगावॉट का प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर भी स्थापित होने वाला है।
लेखकों ने कहा है, "ज्वालामुखी के भड़कने और समुद्र के नीचे भूस्खलन होने से विनाशकारी सुनामी की तरंगे उठ सकती हैं।" लेखकों ने कहा है कि 2004 में जब इस तट पर सुनामी आई थी तो उस समय निर्माणाधीन फास्ट ब्रीडर रिएक्टर स्थल डूब गया था।
किसी ज्वालामुखी से किसी परमाणु संयंत्र को जो खतरा हो सकता है, उसकी पहचान वियना स्थित अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने की है।
एजेंसी की सुरक्षा निर्देशिका 'वोल्कैनिक हजार्ड्स इन साइट इवैलुएशन फॉर न्युक्लियर इंस्टालेशन्स' मई 2011 में जारी हुई थी, जिसमें सदस्य देशों से उन रिएक्टरों की हिफाजत के लिए कहा गया था, जिनके निर्माण के समय ज्वालामुखी के सम्भावित प्रभाव के बारे में विचार नहीं किया गया है।
आईएईए की निर्देशिका में ज्वालामुखियों का एक विश्व मानचित्र भी है, जिसमें देश के पूर्वी तट पर पांडिचेरी से लगे समुद्र के नीचे एक ज्वालामुखी दर्शाया गया है।
पुघाझेंदी और रमेश ने कहा है कि आईएईए की निर्देशिका जारी हुए सालभर से अधिक समय बीत चुके हैं और उसमें चेन्नई से लगे समुद्र के नीचे एक ज्वालामुखी की सम्भावित उपस्थिति के बारे में जिक्र है, लेकिन इसके बावजूद भारतीय परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) इस बारे में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं कर पाया है।
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