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This Article is From Sep 28, 2018

VIDEO: जहां स्कूल तक पहुंचने के लिए पतीले में बैठकर नदी पार करने को मजबूर हैं छोटे-छोटे बच्चे...

असम के विश्वनाथ जिले के बच्चे हर दिन जान जोखिम में डाल कर स्कूल जाते हैं. दरअसल, यहां बच्चे नदी को तैर कर स्कूल जाने के लिए मजबूर हैं.

VIDEO: जहां स्कूल तक पहुंचने के लिए पतीले में बैठकर नदी पार करने को मजबूर हैं छोटे-छोटे बच्चे...
अमस के विश्वनाथ जिले में नदी तैर कर स्कूल जाते बच्चे
नई दिल्ली: भारत में रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य और शिक्षा को इंसान की बुनियादी जरूरतों में शामिल किया गया है. देश में मूलभूत जरूरतों को पाने के लिए किसी भी इंसान को कितने जद्दोजहद करने पड़ते हैं, यह बयां करने के लिए असम के बिश्वनाथ जिले के बच्चों की रोजमर्रा की जिंदगी को देखा जा सकता है. दरअसल, असम के विश्वनाथ जिले में जान जोखिम पर डाल कर शिक्षा पाने को मजबूर हो रहे बच्चों की जो तस्वीर सामने आई है, वह न सिर्फ हैरान करने वाला है, बल्कि देश की शिक्षा व्यवस्था को भी कटघरे में खड़ा करती है. जिले के बच्चे हर दिन जान जोखिम में डाल कर स्कूल जाते हैं. दरअसल, यहां बच्चे नदी को तैर कर स्कूल जाने के लिए मजबूर हैं. बच्चे अपने-अपने घरों से एलुमिनयिम का बड़ा पतीला साथ लाते हैं और उसमें बैठकर नदी पार कर स्कूल पहुंचते हैं. एल्यूमीनियम के बर्तन में बैठकर नदी पार करने वाले बच्चों की संख्या करीब 40 है, जो प्राइमरी स्कूल में पढ़ते हैं उसमें सिर्फ़ एक ही शिक्षक है. इन बच्चों को नदी पार करवाने में स्कूल के इकलौते शिक्षक पूरी मदद करते हैं.

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सूतिया गांव के बच्चे हर रोज स्कूल जाने के वक्त न सिर्फ किताबों को ढोते हैं, बल्कि अपने साथ एक बड़ा सा बर्तन भी साथ ले जाते हैं. यह बर्तन इतना बड़ा होता है, जिसमें वे अपने बस्ते के साथ बैठकर नदी के इस किनारे से उस किनारे पर पहुंचते हैं. सबसे पहले बच्चे बड़े पतीले में बैठते हैं और अपने हाथों से पानी की धार को काटते हुए इस किनारे से नदी के उस किनारे पर पहुंचते हैं. और फिर उसी पतीले के सहारे नदी पार वापस घर लौट आते हैं. कुल मिलाकर कहा जाए तो घर से स्कूल और स्कूल से घर के लिए यहां के बच्चों के ट्रांसपोर्ट का साधन यही है. 

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सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल हो रहा है उसमें देखा जा सकता है कि कैसे बच्चे न सिर्फ पतीले में बैठकर नदी पार करते हैं बल्कि उनके साथ किताबों से भरा स्कूल बैग भी रहता है. पहले वह नदी के किनारे पतीले को आधे-पानी और जमीन पर रखते हैं, फिर उसमें किताबों के बैग सहित खुद बैठते हैं और हांथों के सहारे नदी में उतरते हैं. फिर हांथ से नदी की पानी को काटते हुए आगे बढ़ते हैं और स्कूल पहुंचते हैं. इन बच्चों में लड़के और लड़कियां दोनों होते हैं. सोचिये किसी को एक दिन इस तरह से नदी पार करनी पड़े तो क्या हालत होगी, मगर इन बच्चों का यह रोज का काम है. 
इस घटना पर प्राइमरी स्कूल के टीचर जे दास कहते हैं कि मुझे हमेशा बच्चों को इस तरह बड़े बर्तन के सहारे नदी पार करते देखकर डर लगता है, यहां कोई पुल नहीं है, इससे पहले ये बच्चे केले के पेड़ से बनी नाव का इस्तेमाल करते थे.

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सोशल मीडिया में बच्चों का वीडिया सामने आने के बाद इस इलाके के बीजेपी विधायक प्रमोज बोर्थकुर ने कहा कि मैं यह देखकर शर्मिदा हूं. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, विधायक ने कहा कि इलाके में पीडब्ल्यूडी की एक भी सड़क नहीं है, मुझे नहीं पता कि सरकार ने इस टापू पर कैसे स्कूल का बनाया है. हम बच्चों के लिए जरूर नाव उपलब्ध कराएंगे और जिलाधिकारी से भी स्कूल को किसी अन्य जगह पर शिफ्ट करने के लिए कहेंगे.

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