मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और नमाज अदा करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार

मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और सबके साथ नमाज़ अदा करने की आज़ादी के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. सुप्रीम कोर्ट मामले में सुनवाई के लिए तैयार हो गया है.

मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और नमाज अदा करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार

सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है.

खास बातें

  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस
  • कहा- सबरीमाला मामले की वजह से सुन रहे हैं याचिका
  • महाराष्ट्र के दंपत्ति ने दाखिल की है याचिका
नई दिल्ली :

मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और सबके साथ नमाज़ अदा करने की आज़ादी के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. सुप्रीम कोर्ट मामले में सुनवाई के लिए तैयार हो गया है और परीक्षण करेगा कि क्या महिलाओं को मस्जिद में सबके साथ नमाज पढ़ने की इजाजत दी जा सकती है या नहीं. कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, सेंट्रल वक्फ काउंसिल और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को नोटिस भी जारी किया है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि राज्य का अधिकार देने का कर्तव्य है लेकिन क्या कोई व्यक्ति (नॉन स्टेट एक्टर) संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दूसरे व्यक्ति से समानता का अधिकार मांग सकता है?  मस्जिद या चर्च क्या स्टेट (राज्य) हैं और इस मामले में स्टेट कहां शामिल है? कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले को सबरीमला की वजह से सुन रहे हैं. 

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दूसरी तरफ, याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि मस्जिदों को सरकार द्वारा ग्रांट व लाभ दिए जाते हैं. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि हाजी अली दरगाह में क्या महिलाएं को प्रवेश दिया जा रहा है, लेकिन मक्का में क्या व्यवस्था है और दुनियाभर की मस्जिदों में क्या व्यवस्था है ? आपको बता दें कि महाराष्ट्र के दंपति यास्मीन जुबेर अहमद पीरज़ादा और जुबेर अहमद पीरज़ादा की याचिका मे सबरीमला की तर्ज पर सबको लैंगिक आधार पर भी बराबरी का अधिकार देने की मांग की गई है. याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14,15,21, 15 और 29 का भी हवाला दिया गया है.  

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याचिका में इस्लाम के मूल आधार यानी कुरान और हज़रत मुहम्मद साहब के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने कभी मर्द औरत में फर्क नही रखा. बात सिर्फ अक़ीदे यानी श्रद्धा और ईमान की की है. कुरान और हज़रत ने कभी औरतों के मस्जिद में दाखिल होकर नमाज़ अदा करने की कभी खिलाफत नहीं की, लेकिन कुरान को आधार बनाकर इस्लाम की व्याख्या करने वालों ने औरतों से भेदभाव शुरू कर दिया. याचिका में कहा गया है कि मौजूदा दौर में कुछ मस्जिदों में जहां औरतों को नमाज़ अदा करने की छूट है भी ,वहां उनके आने जाने के दरवाज़े ही नहीं नमाज़ अदा करने की जगह भी अलग होती है.  

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