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This Article is From Oct 06, 2017

SC ने केंद्र सरकार से पूछा- मौत की सजा देने के लिए क्या फांसी के अलावा और भी हो सकता है कोई विकल्प

कोर्ट ने इस मामले में तीन हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका  दाखिल कर कहा गया है कि फांसी की जगह मौत की सज़ा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाना चाहिए.

SC ने केंद्र सरकार से पूछा- मौत की सजा देने के लिए क्या फांसी के अलावा और भी हो सकता है कोई विकल्प
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या फांसी के अलावा भी मौत की सजा देने का कोई और तरीका हो सकता है जिसमें शख्स को कम दर्द हो. कोर्ट ने इस मामले में तीन हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका  दाखिल कर कहा गया है कि फांसी की जगह मौत की सज़ा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाना चाहिए. फांसी को मौत का सबसे दर्दनाक और बर्बर तरीका बताते हुए जहर का इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, गैस चैंबर या बिजली के झटके देने जैसी सजा देने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते है जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल कुछ मिनट में.

मौत की सजा के लिए फांसी की जगह दूसरा विकल्प? पढ़ें क्या है पूरा मामला

वकील ऋषि मल्होत्रा द्वारा दाखिल याचिका में ज्ञान कौर बनाम पंजाब (1996) में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया है जिसमें जीवन जीने के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है यानी जब भी कोई व्यक्ति मरे तो मरने की प्रक्रिया भी सम्मानजनक होनी चाहिए. वहीं दूसरे मामले दीना बनाम भारत संघ (1983) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि मौत की सजा का तरीका ऐसा होना चाहिए जो जल्दी से मौत हो जाए और ये तरीका आसान भी होना चाहिए ताकि ये कैदी की मार्मिकता को और ना बढ़ाए.  कोर्ट ने कहा था कि ये तरीका ऐसा होना चाहिए जिसमें जल्द मौत हो जाए और इसमें अंग-भंग ना हो.




याचिका में कहा गया है कि फांसी पर लटकाए रखने का प्रावधान करने वाली सीआरपीसी की धारा 354 (5) को को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत असंवैधानिक करार दिया जाए और ज्ञान कौर जजमेंट के विपरीत माना जाए. सम्मानजनक तरीके से मौत के जरिए मरने के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाए. वर्तमान तथ्यों व हालात को देखते हुए जो आदेश जारी करना कोर्ट उचित समझे.
 

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