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This Article is From Jul 30, 2020

22 साल के इस 3D डिज़ाइनर ने बनाए राफेल पायलटों के सीने पर लगे पैच

असम (Assam) के रहने वाले सौरव बचपन से ही पायलट बनना चाहते थे लेकिन आंखों की कमजोर रोशनी की वजह से उनका यह ख्वाब अधूरा रह गया.

22 साल के इस 3D डिज़ाइनर ने बनाए राफेल पायलटों के सीने पर लगे पैच
सौरव चोर्डिया ने ही यह पैच तैयार किए हैं.
गुवाहाटी:

5 हाईटेक लड़ाकू विमान राफेल (Rafale) भारत पहुंच चुके हैं. बुधवार को इनके अम्बाला पहुंचने पर देशवासियों ने इनका जोरदार स्वागत किया. जब देश में राफेल की आवाज गूंज रही थी, उस समय असम (Assam) के एक छोटे से शहर का लड़का अपना सपना जी रहा था. 22 साल के सौरव चोर्डिया 3डी ग्राफिक डिजाइनर हैं. स्कॉड्रन 17 को 'गोल्डन एरो' (Golden Arrow) भी कहा जाता है. 'गोल्डन एरो' के पायलटों के सीने पर लगे नए पैच सौरव ने ही डिजाइन किए हैं.

सौरव चोर्डिया बचपन से ही पायलट बनना चाहते थे लेकिन आंखों की कमजोर रोशनी की वजह से उनका यह ख्वाब अधूरा रह गया. राफेल के पायलट्स की यूनिफॉर्म पर खुद के बनाए पैच की वजह से सौरव खुद पर गर्व महसूस कर रहे हैं. NDTV से बातचीत में सौरव ने कहा, 'स्कॉड्रन 17 का अपना गौरवमय इतिहास रहा है. इसलिए मुझे उस बात को पैच के डिजाइन में लाना था और इसमें राफेल के आधुनिकीकरण को भी दिखाना था.' सौरव जब 18 साल के थे तभी से उन्होंने यह आर्म पैच बनाना शुरू कर दिया था. तब से उन्होंने दर्जनों डिजाइन तैयार किए.

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सौरव द्वारा बनाए पैच जी-सूट और स्क्वाड्रन 25 पायलटों की यूनिफॉर्म पर भी लगे हैं. इन विंग के पायलट्स ने ही सबसे पहले तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट उड़ाए थे. सौरव कहते हैं, 'जब मैं छोटा था तो मैंने टॉप गन फिल्म में टॉम क्रूज को देखा था. पैच पहने हुए, प्लेन उड़ाते हुए, तो मैं उनसे प्रेरित हो गया था. मेरी आंखें कमजोर थीं तो मैं ऐसा नहीं कर सका लेकिन मैंने एयरक्राफ्ट मॉडल और पैच डिजाइन करने शुरू किए और जल्द ही मेरे काम को नोटिस किया जाने लगा. अधिकारियों ने मुझसे संपर्क किया और फिर मैंने एयरफोर्स के लिए पैच बनाने शुरू किए.'

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बता दें कि सौरव ने राफेल के पायलटों के लिए दो पैच तैयार किए हैं. एक पैच गोलाकार है तो दूसरा एयरक्राफ्ट की तरह दिखने वाला है. गोलाकार पैच पर 'उदयाम अजस्त्रम्' लिखा है. सौरव के भाई सुमित कहते हैं, 'ये एक मेक इन इंडिया मोमेंट है. पैच देश में ही तैयार किए गए हैं. हम लोग खुश हैं कि इन पैच को असम के एक छोटे से शहर से आने वाले लड़के ने तैयार किया है. हमारे माता-पिता ने हमें बहुत सपोर्ट किया.' सौरव ने इन्हें बनाने के लिए कोई पैसे नहीं लिए हैं लेकिन अब वायुसेना उन्हें स्टाइपेंड देने की तैयारी कर रही है ताकि वह खुद को इस परिवार का हिस्सा मान सकें.

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