सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर की तरफ से केस लड़ने वाले वकील साई दीपक.
नई दिल्ली:
सबरीमाला मंदिर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है. अब सभी उम्र की महिलाओं के लिए मंदिर का दरवाजा खुल गया है. इस केस में मंदिर की तरफ से ऐसे वकील ने केस लड़ा, जो कि वकील से पहले इंजीनियर थे. बात हो रही है सबरीमाला मंदिर के वकील जे साई दीपक की. 32 वर्षीय इस युवा ने सबरीमाला मंदिर प्रबंधन के फैसले को सही ठहराने के लिए कई तर्क दिए. मगर सुप्रीम कोर्ट ने दलीलें नहीं मानीं.साई दीपक के प्रोफाइल की बात करें तो 2002-2006 के बीच अन्ना यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया. इसके बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी(आइआइटी) खड़गपुर से 2006-09 के बीच विधि में स्नातक की पढ़ाई की. फिर बाद 2009 से वकालत शुरू किए. 2016 में दीपक ने लॉ चेंबर्स की स्थापना की. लॉ फर्म्स से जुड़कर और स्वतंत्र रूप से दीपक दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं. दीपक Tata Sons v. Greenpeace के चर्चित केस से भी जुड़े रहे.
Sabarimala Temple: जानिए आखिर क्यों सबरीमाला मंदिर में औरतों के प्रवेश पर है मनाही
भगवान की तरफ से दीं थीं दलीलें
सबरीमाला मुद्दे पर पिछली 26 जुलाई को जब मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ सुनवाई कर रही थी, उस वक्त मंदिर का पक्ष रख रहे वकील दीपक ने भगवान की तरफ से दलीलें पेश की थीं. उन्होंने कहा था अब तक केस में भगवान के अधिकारों की किसी ने चर्चा ही नही की. दीपक को बहस के लिए 15 मिनट का वक्त मिला था. दीपक के मुताबिक उनके तर्कों से प्रभावित हुई पीठ ने 90 मिनट तक बोलने का मौका दिया था. सुनवाई के दौरान वकील दीपक ने भगवान के अधिकारों के लिए दलील कोर्ट में दलील पेश कर अपने तर्कों से सबको हैरान कर दिया था. उन्होंने कहा था कि सबरीमाला के भगवान अयप्पा को संविधान के अनुच्छेद 21, 25 और 26 के तहत 'नैष्ठिक ब्रह्मचारी' बने रहने का भी अधिकार है. इस नाते मंदिर में महिलाओं के दाखिल होने पर प्रतिबंद जारी रखना चाहिए.मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उस वक्त पीठ में शामिल जज भी दीपक के तर्कों से प्रभावित हुए थे. जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा था कि वह मंदिर के वकील के तर्कों को शिक्षाप्रद पाते हैं. दीपक के तर्कों को सुनकर अदालत ने लंच के बाद भी बोलने का मौका दिया था. 15 मिनट की जगह दीपक 90 मिनट तक बोलने की अनुमति हासिल करने में सफल रहे.
यह दीगर है कि संविधान पीठ ने इस मसले को संवैधानिक दृष्टि के तहत ही देखने का फैसला लिया. पांच जजों की पीठ में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा वकील दीपक के तर्कों से सहमत दिखीं. उन्होंने कहा- याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई शिकायतें सही नहीं हैं... समानता का अधिकार धार्मिक आज़ादी के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकता.. जजों की निजी राय गैरज़रूरी है... संवैधानिक नैतिकता को आस्थाओं के निर्वाह की इजाज़त देनी चाहिए. वहीं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पूजा का अधिकार सभी श्रद्धालुओं को है. उन्होंने कहा कि सबरीमाला की पंरपरा को धर्रम का अभिन्न हिस्सा नहीं माना जा सकता.
क्या आया है फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple Case) में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी है. कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाया. बहुमत से दिए इस फैसले में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे बैन को हटा दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिये गये. फिलहाल 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ दिनों तक सुनवाई करने के उपरांत 1 अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य ने इस प्रथा को चुनौती दी है. उन्होंने यह कहते हुए कि यह प्रथा लैंगिक आधार पर भेदभाव करती है, इसे खत्म करने की मांग की थी. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना था कि यह संवैधानिक समानता के अधिकार में भेदभाव है. एसोसिएशन ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश के लिए 41 दिन से ब्रहचर्य की शर्त नहीं लगाई जा सकती क्योंकि महिलाओं के लिए यह असंभव है. बता दें कि माहवारी को आधार मंदिर प्रबंधन ने माहवारी के आधार पर महिलाओं के प्रवेश पर 50 वर्ष से अधिक समय से रोक लगा रखी थी. जिसके विरोध में पांच महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस मामले में एक बार केरल सरकार ने प्रतिबंध का विरोध किया था, जबकि बाद में राज्य सरकार अपनी बात से पलट गई थी.
वीडियो-सभी महिलाओं के लिए खुला सबरीमाला मंदिर का दरवाजा
Sabarimala Temple: जानिए आखिर क्यों सबरीमाला मंदिर में औरतों के प्रवेश पर है मनाही
भगवान की तरफ से दीं थीं दलीलें
सबरीमाला मुद्दे पर पिछली 26 जुलाई को जब मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ सुनवाई कर रही थी, उस वक्त मंदिर का पक्ष रख रहे वकील दीपक ने भगवान की तरफ से दलीलें पेश की थीं. उन्होंने कहा था अब तक केस में भगवान के अधिकारों की किसी ने चर्चा ही नही की. दीपक को बहस के लिए 15 मिनट का वक्त मिला था. दीपक के मुताबिक उनके तर्कों से प्रभावित हुई पीठ ने 90 मिनट तक बोलने का मौका दिया था. सुनवाई के दौरान वकील दीपक ने भगवान के अधिकारों के लिए दलील कोर्ट में दलील पेश कर अपने तर्कों से सबको हैरान कर दिया था. उन्होंने कहा था कि सबरीमाला के भगवान अयप्पा को संविधान के अनुच्छेद 21, 25 और 26 के तहत 'नैष्ठिक ब्रह्मचारी' बने रहने का भी अधिकार है. इस नाते मंदिर में महिलाओं के दाखिल होने पर प्रतिबंद जारी रखना चाहिए.मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उस वक्त पीठ में शामिल जज भी दीपक के तर्कों से प्रभावित हुए थे. जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा था कि वह मंदिर के वकील के तर्कों को शिक्षाप्रद पाते हैं. दीपक के तर्कों को सुनकर अदालत ने लंच के बाद भी बोलने का मौका दिया था. 15 मिनट की जगह दीपक 90 मिनट तक बोलने की अनुमति हासिल करने में सफल रहे.
यह दीगर है कि संविधान पीठ ने इस मसले को संवैधानिक दृष्टि के तहत ही देखने का फैसला लिया. पांच जजों की पीठ में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा वकील दीपक के तर्कों से सहमत दिखीं. उन्होंने कहा- याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई शिकायतें सही नहीं हैं... समानता का अधिकार धार्मिक आज़ादी के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकता.. जजों की निजी राय गैरज़रूरी है... संवैधानिक नैतिकता को आस्थाओं के निर्वाह की इजाज़त देनी चाहिए. वहीं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पूजा का अधिकार सभी श्रद्धालुओं को है. उन्होंने कहा कि सबरीमाला की पंरपरा को धर्रम का अभिन्न हिस्सा नहीं माना जा सकता.
क्या आया है फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple Case) में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी है. कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाया. बहुमत से दिए इस फैसले में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे बैन को हटा दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिये गये. फिलहाल 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ दिनों तक सुनवाई करने के उपरांत 1 अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य ने इस प्रथा को चुनौती दी है. उन्होंने यह कहते हुए कि यह प्रथा लैंगिक आधार पर भेदभाव करती है, इसे खत्म करने की मांग की थी. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना था कि यह संवैधानिक समानता के अधिकार में भेदभाव है. एसोसिएशन ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश के लिए 41 दिन से ब्रहचर्य की शर्त नहीं लगाई जा सकती क्योंकि महिलाओं के लिए यह असंभव है. बता दें कि माहवारी को आधार मंदिर प्रबंधन ने माहवारी के आधार पर महिलाओं के प्रवेश पर 50 वर्ष से अधिक समय से रोक लगा रखी थी. जिसके विरोध में पांच महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस मामले में एक बार केरल सरकार ने प्रतिबंध का विरोध किया था, जबकि बाद में राज्य सरकार अपनी बात से पलट गई थी.
वीडियो-सभी महिलाओं के लिए खुला सबरीमाला मंदिर का दरवाजा
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं