
Ayyappa Temple: दुनिया के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक अयप्पा मंदिर में ड्रेस कोड को लेकर नया विवाद शुरू हुआ है. सदियों से चली आ रही प्रथा को कुछ लोगों ने तोड़ दिया. हालांकि, मंदिर प्रबंधन की सूझबूझ से मामला शांति से निपट गया. विवाद जानने से पहले अयप्पा मंदिर के बारे में जान लीजिए. क्यों है ये खास...
अयप्पा मंदिर केरल राज्य के पतनमतिट्टा जिले में है. ये पेरियार टाइगर अभयारण्य के भीतर सबरीमलय पहाड़ पर है. यह मंदिर भगवान अयप्पन को समर्पित है. मंदिर के निर्माण की तिथि पर मतभेद हैं, लेकिन यह माना जाता है कि यह कई शताब्दियों पुराना है. मंदिर की वास्तुकला केरल वास्तु शैली में बनाई गई है, और इसमें भगवान अयप्पन की मूर्ति के अलावा अन्य देवताओं की मूर्तियां भी हैं. अयप्पा और सबरीमाला मंदिर दोनों एक ही मंदिर परिसर में स्थित हैं, लेकिन इनमें कुछ अंतर हैं:
अयप्पा मंदिर:
- भगवान अयप्पन को समर्पित है.
- मंदिर का मुख्य गर्भगृह भगवान अयप्पन की मूर्ति को समर्पित है.
- यह मंदिर पुरुषों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां वे भगवान अयप्पन की पूजा करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं.
सबरीमाला मंदिर:
- यह मंदिर भगवान अयप्पन के अलावा अन्य देवताओं को भी समर्पित है.
- मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर और स्मारक हैं, जो विभिन्न देवताओं को समर्पित हैं.
- सबरीमाला मंदिर एक विशाल मंदिर परिसर है, जो कई एकड़ में फैला हुआ है और इसमें कई मंदिर हैं.
अयप्पा मंदिर की कहानी
अयप्पा मंदिर की कहानी बहुत प्रसिद्ध है और यह भगवान अयप्पा की कथा से जुड़ी हुई है. भगवान अयप्पा को भगवान शिव और भगवान विष्णु के पुत्र के रूप में पूजा जाता है. केरल के राजा राजशेखर को वो पंबा नदी के पास शिशु रूप में मिले थे. राजा राजशेखर ने अयप्पा भगवान से पूछकर ही मंदिर के निर्माण के लिए ये स्थान चुना था, जो आज सबरीमाला के नाम से जाना जाता है. मंदिर के निर्माण के बाद, राजा ने भगवान अयप्पा की मूर्ति स्थापित की और उनकी पूजा शुरू की. तब से, सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक बन गया है और हर साल लाखों भक्त यहां आते हैं और भगवान अयप्पा की पूजा करते हैं. यह मंदिर पुरुषों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहां वे भगवान अयप्पा की पूजा करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं. पहले महिलाओं को 10 से 50 वर्ष की आयु के बीच मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन यह नियम अब बदल गया है और महिलाएं भी मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं.
अयप्पा मंदिर में बगैर कपड़े पहने या नंगे पैर जाने की परंपरा एक विशेष महत्व रखती है. यह परंपरा भगवान अयप्पा की कथा से जुड़ी हुई है और इसके पीछे कई कारण हैं:
- आध्यात्मिक शुद्धि: भगवान अयप्पा की कथा के अनुसार, वे एक ऐसे स्थान पर रहते थे, जहां कोई भी वस्त्र नहीं पहनता था. इसलिए, भक्तों को भी बगैर कपड़े पहने या नंगे पैर जाने की परंपरा का पालन करना होता है, जो आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है.
- समानता का प्रतीक: अयप्पा मंदिर में बगैर कपड़े पहने जाने से यह संदेश दिया जाता है कि सभी लोग समान हैं और किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए.
- व्यक्तिगत इच्छाओं का त्याग: भगवान अयप्पा की कथा में कहा गया है कि उन्होंने अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं का त्याग किया था. इसलिए, भक्तों को भी अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं का त्याग करने की प्रेरणा मिलती है और वे बगैर कपड़े पहने या नंगे पैर जाने की परंपरा का पालन करते हैं.
- प्राकृतिक जीवन की ओर बढ़ना: अयप्पा मंदिर में बगैर कपड़े पहने जाने से यह संदेश दिया जाता है कि हमें प्राकृतिक जीवन की ओर बढ़ना चाहिए और आधुनिक जीवन की सुविधाओं का त्याग करना चाहिए.
विरोध किस बात का
केरल के पथनमथिट्टा स्थित भगवान अयप्पा मंदिर में कुछ पुरुष श्रद्धालुओं ने लंबे समय से चली आ रही प्रथा का विरोध जताते हुए बिना कमीज उतारे रविवार को मंदिर में प्रवेश किया. श्रद्धालुओं ने मंदिर में प्रवेश करने से पहले पुरुष श्रद्धालुओं के लिए कमीज उतारना अनिवार्य होने की प्रथा का विरोध जताने के लिए यह कदम उठाया. इस मामले की सामने आईं तस्वीरों में एसएनडीपी संयुक्त समारा समिति के सदस्य त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) द्वारा प्रबंधित पेरुनाडु में मंदिर के सामने कतार में खड़े और अपनी कमीज उतारे बिना प्रार्थना करते हुए नजर आ रहे हैं.
प्रदर्शनकारियों का विरोध बिना किसी घटना के खत्म हो गया क्योंकि न तो पुलिस और न ही मंदिर प्रबंधन ने कोई आपत्ति जताई. प्रदर्शनकारियों ने बाद में मांग की कि पुरुष श्रद्धालुओं के ऊपरी वस्त्र उतारने की प्रथा को स्थायी रूप से समाप्त कर दिया जाना चाहिए. पुलिस के एक अधिकारी ने बताया, ‘‘विरोध शांतिपूर्ण था. मंदिर प्रबंधन ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि अगर कोई बिना कमीज उतारे मंदिर में प्रवेश करता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, हालांकि भक्त पारंपरिक रूप से इस प्रथा का पालन करते हैं.
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