प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत लाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का आरटीआई कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है. आरटीआई कार्यकर्ताओं ने कहा कि "कानून से ऊपर कोई नहीं है". हालांकि, आरटीआई कार्यकर्ताओं ने न्यायालय के द्वारा यह कहने पर कि आरटीआई का इस्तेमाल निगरानी के साधन के रूप में नहीं किया जाना चाहिए पर विरोध भी जताया है. कार्यकर्ताओं ने कहा है कि कोर्ट की टिप्पणी अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण और चौंकानेवाली है.आरटीआई कार्यकर्ता लोकेश बत्रा ने कहा, "कानून से ऊपर कोई नहीं है, खासतौर से वे लोग जो सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं".उन्होंने कहा कि इस फैसले से कई संभावनाएं खुली हैं और यहां तक कि विधि निर्माताओं (संसद और विधानसभा सदस्य) और अन्य को भी आरटीआई कानून के दायरे में होना चाहिए.
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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के राज्यसभा सांसद मजीद मेमन ने ट्वीट कर कहा कि न्यायाधीश "दिव्यात्मा" नहीं हैं. वे भी हमारे बीच के इंसान ही हैं. उनमें भी कमियां हो सकती हैं. न्यायाधीशों को आरटीआई के दायरे में लाने का फैसला पारदर्शिता और न्याय प्रणाली में लोगों के भरोसे की दिशा में बहुत बड़ा कदम है. गैर सरकारी संगठन राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (सीएचआरआई) के सूचना पहुंच कार्यक्रम के प्रमुख वेंकटेश नायक ने कहा, "मैं (उच्चतम न्यायालय की) संविधान पीठ द्वारा कानून में स्थापित रुख दोहराये जाने के फैसले का स्वागत करता हूं कि भारत का प्रधान न्यायाधीश सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एक लोक प्राधिकार है."
अपने ऐतिहासिक फैसले में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 2010 में दिए गए फैसले को बरकरार रखा था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में आता है. न्यायालय ने अदालत के सेक्रेटरी जनरल और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी की अपील को खारिज कर दिया.
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पूर्व सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने भी शीर्ष अदालत के इस निर्णय कि सराहना की है. उन्होंने कहा, "शीर्ष अदालत का यह एक बेहतर निर्णय है. मुझे यही निर्णय आने की उम्मीद थी क्योंकि तार्किक रूप से कुछ और नहीं है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह फैसला आने में दस साल लग गए. मुख्य सूचना आयुक्त ने इसे बरकरार रखा था और दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इसे बरकरार रखा था. अब उच्चतम न्यायालय ने भी इसे बरकरार रखा है. सभी लोक सेवक जिन्हें सरकार की तरफ से वेतन दिया जाता है वह लोकसेवा है, उनकी स्थिति क्या है यह मायने नहीं रखता है. आपको अपने काम के लिए जिम्मेदार होने की जरूरत है. मैं प्रधान न्यायाधीश और अदालत को इस निर्णय के लिए बधाई देता हूं."
वहीं आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने भी शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया है उन्होंने कहा, "मैं उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं. यह आरटीआई अधिनियम की जीत है.''एक अन्य कार्यकर्ता अजय दुबे ने शीर्ष अदालत के फैसले को ऐतिहासिक बताया हालांकि, न्यायालय की इस टिप्पणी पर उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया कि आरटीआई अधिनियम को निगरानी के औजार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं