प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
क्या आपको अंदाज़ा है कि इस देश में सबसे ज़्यादा लोगों की अचानक मौत कैसे होती है? वे आतंकवाद से, नक्सलवाद से, बाढ़ से, तूफ़ान से, या फिर किसी और आपदा से नहीं मारे जाते हैं। वे बस सड़क पर चलते हुए मारे जाते हैं, हर साल क़रीब डेढ़ लाख लोग। और इनमें आधे से ज़्यादा 35 के नीचे के।
जोधपुर में एक शख़्स एक हेड कांस्टेबल को अपनी गाड़ी पर घसीटता करीब आधा किलोमीटर खींच ले गया। भारत में ऐसे हादसे जैसे हर वक़्त होते रहते हैं। हो सकता है, जब आप ये रिपोर्ट पढ़ रहे हों तब भी कोई भारतीय कहीं इसी तरह हादसे में मारा जा रहा हो। सड़क पार करते-करते इस देश में हर मिनट कोई न कोई हादसा होता है और हर चौथे मिनट कोई न कोई मारा जाता है। सरकार के अपने आंकड़ों के मुताबिक हमने अपने देश की सड़कों को सबसे बड़ा कातिल बना रखा है।
किसी भी युद्ध में, हिंसा में इतने लोग नहीं मारे गए जितना सड़क हादसों में मारे गए हैं। बीते साल पर नज़र डालें तो देश में पांच लाख से ज़्यादा सड़क हादसे हुए और इनमें 1,46,133 लोग मारे गए। 2014 के मुकाबले 2.5 फीसदी हादसे बढ़े हैं और 4.6% मौतें बढ़ी हैं। यानी सड़कों की सुरक्षा के सारे सरकारी दावे बेमानी हैं।
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि भारत में सड़क हादसों में हर रोज औसतन 400 लोगों की मौत होती है और इसका प्रमुख कारण ‘‘दोषपूर्ण इंजीनियरिंग’’ है। गडकरी ने यह भी माना कि दो साल के ‘‘समर्पित काम और ईमानदार प्रयासों’’ के बावजूद ज्यादा कुछ नहीं बदला है।
साल 2015 में भारत में हुए सड़क हादसों पर रिपोर्ट जारी करते हुए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री गडकरी ने कहा कि वह उन निष्कर्षों से काफी ‘‘दुखी’’ हैं जिनमें दिखाया गया कि हर घंटे होने वाली 57 भिड़ंत में 17 मौतें हो जाती हैं और जिनकी मौत होती है उनमें 54 फीसदी से भी ज्यादा 15 से 34 साल तक की उम्र के होते हैं।
तो लगभग हर साल एक छोटा-मोटा कस्बा हम हादसों में गंवा देते हैं। हर रोज़ करीब 400 लोग मारे जाते हैं। ये वो अदृश्य त्रासदी है जिस पर किसी की नज़र ही नहीं जाती।
सड़क परिवाहन मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट से साफ है कि सड़क सुरक्षा को लेकर सरकार ने अब तक जो पहल किये हैं वो नाकाफी साबित हुए हैं। इस मुश्किल चुनौती से निपटने के लिए सरकार को अब नए सिरे से बड़े स्तर पर पहल करनी होगी।
जोधपुर में एक शख़्स एक हेड कांस्टेबल को अपनी गाड़ी पर घसीटता करीब आधा किलोमीटर खींच ले गया। भारत में ऐसे हादसे जैसे हर वक़्त होते रहते हैं। हो सकता है, जब आप ये रिपोर्ट पढ़ रहे हों तब भी कोई भारतीय कहीं इसी तरह हादसे में मारा जा रहा हो। सड़क पार करते-करते इस देश में हर मिनट कोई न कोई हादसा होता है और हर चौथे मिनट कोई न कोई मारा जाता है। सरकार के अपने आंकड़ों के मुताबिक हमने अपने देश की सड़कों को सबसे बड़ा कातिल बना रखा है।
किसी भी युद्ध में, हिंसा में इतने लोग नहीं मारे गए जितना सड़क हादसों में मारे गए हैं। बीते साल पर नज़र डालें तो देश में पांच लाख से ज़्यादा सड़क हादसे हुए और इनमें 1,46,133 लोग मारे गए। 2014 के मुकाबले 2.5 फीसदी हादसे बढ़े हैं और 4.6% मौतें बढ़ी हैं। यानी सड़कों की सुरक्षा के सारे सरकारी दावे बेमानी हैं।
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि भारत में सड़क हादसों में हर रोज औसतन 400 लोगों की मौत होती है और इसका प्रमुख कारण ‘‘दोषपूर्ण इंजीनियरिंग’’ है। गडकरी ने यह भी माना कि दो साल के ‘‘समर्पित काम और ईमानदार प्रयासों’’ के बावजूद ज्यादा कुछ नहीं बदला है।
साल 2015 में भारत में हुए सड़क हादसों पर रिपोर्ट जारी करते हुए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री गडकरी ने कहा कि वह उन निष्कर्षों से काफी ‘‘दुखी’’ हैं जिनमें दिखाया गया कि हर घंटे होने वाली 57 भिड़ंत में 17 मौतें हो जाती हैं और जिनकी मौत होती है उनमें 54 फीसदी से भी ज्यादा 15 से 34 साल तक की उम्र के होते हैं।
तो लगभग हर साल एक छोटा-मोटा कस्बा हम हादसों में गंवा देते हैं। हर रोज़ करीब 400 लोग मारे जाते हैं। ये वो अदृश्य त्रासदी है जिस पर किसी की नज़र ही नहीं जाती।
सड़क परिवाहन मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट से साफ है कि सड़क सुरक्षा को लेकर सरकार ने अब तक जो पहल किये हैं वो नाकाफी साबित हुए हैं। इस मुश्किल चुनौती से निपटने के लिए सरकार को अब नए सिरे से बड़े स्तर पर पहल करनी होगी।
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