नई दिल्ली:
गुजरात में दलित उत्पीड़न के विरोध में जो हंगामा चल रहा है, उसने याद दिलाया है कि पूरे देश में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा लगातार बढ़ रही है। जबकि उनके नाम पर राजनीति भी कम होने का नाम नहीं ले रही। अरविंद केजरीवाल हों या राहुल गांधी या फिर संसद में दलितों के हक की बात करने वाले गृह मंत्री, क्या इन सबको अंदाज़ा है कि भारत में दलितों के ख़िलाफ़ अपराध काफी तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं?
गृह मंत्रालय के ही आंकड़े बताते हैं कि 2014 में देश भर में दलितों के उत्पीड़न के 47,000 मामले दर्ज हुए जबकि 2015 में 54,000 के क़रीब मामले दर्ज हुए। यानी एक साल में 7000 घटनाएं बढ़ीं।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी एल पूनिया बताते हैं कि सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी गुजरात में ही देखी गई। पूनिया ने NDTV से कहा, "गृह मंत्रालय से मिले आंकड़ों के मुताबिक 2014 में गुजरात में 1100 अत्याचार के मामले रजिस्टर किये गये थे, जो 2015 में बढ़कर 6655 हो गये।''
पिछले कुछ दिनों से गुजरात में दिखा हंगामा दरअसल इसी तकलीफ की तस्दीक करता है। राष्ट्रीय अनुसूति जाति आयोग को सबसे ज़्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, लेकिन दोषियों को सज़ा दिलाना मुश्किल हो रहा है। सबसे खराब स्थिति गुजरात की है जहां दोष सिद्धि की दर 3 फीसदी से कम दर्ज की गई है। पूनिया कहते हैं, "गृह मंत्रालय के मुताबिक गुजरात में दोष सिद्धि की दर 2.9 फीसदी है जबकि देश में दलित के खिलाफ होने वाले अत्याचार से जुड़े मामलों में दोष सिद्धि की दर 22 फीसदी रिकॉर्ड की गयी है।"
हालांकि गुजरात से बीजेपी सांसद किरीट सोलंकी का कहना है कि राज्य सरकार गंभीरता से इन मामलों में कार्रवाई कर रही है। पिछले साल ही अनुसूचित जाति और जनजातियों के खिलाफ अपराध की घटनाओं से निपटने के लिए कानून को और सख्त बनाया गया, लेकिन इसके बावजूद इसके अत्याचार कम नहीं हो रहे।
गृह मंत्रालय के ही आंकड़े बताते हैं कि 2014 में देश भर में दलितों के उत्पीड़न के 47,000 मामले दर्ज हुए जबकि 2015 में 54,000 के क़रीब मामले दर्ज हुए। यानी एक साल में 7000 घटनाएं बढ़ीं।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी एल पूनिया बताते हैं कि सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी गुजरात में ही देखी गई। पूनिया ने NDTV से कहा, "गृह मंत्रालय से मिले आंकड़ों के मुताबिक 2014 में गुजरात में 1100 अत्याचार के मामले रजिस्टर किये गये थे, जो 2015 में बढ़कर 6655 हो गये।''
पिछले कुछ दिनों से गुजरात में दिखा हंगामा दरअसल इसी तकलीफ की तस्दीक करता है। राष्ट्रीय अनुसूति जाति आयोग को सबसे ज़्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, लेकिन दोषियों को सज़ा दिलाना मुश्किल हो रहा है। सबसे खराब स्थिति गुजरात की है जहां दोष सिद्धि की दर 3 फीसदी से कम दर्ज की गई है। पूनिया कहते हैं, "गृह मंत्रालय के मुताबिक गुजरात में दोष सिद्धि की दर 2.9 फीसदी है जबकि देश में दलित के खिलाफ होने वाले अत्याचार से जुड़े मामलों में दोष सिद्धि की दर 22 फीसदी रिकॉर्ड की गयी है।"
हालांकि गुजरात से बीजेपी सांसद किरीट सोलंकी का कहना है कि राज्य सरकार गंभीरता से इन मामलों में कार्रवाई कर रही है। पिछले साल ही अनुसूचित जाति और जनजातियों के खिलाफ अपराध की घटनाओं से निपटने के लिए कानून को और सख्त बनाया गया, लेकिन इसके बावजूद इसके अत्याचार कम नहीं हो रहे।
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