देशभर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए आयोजित नीट (राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा) में पिछले साल (2018-19 सत्र) पहली बार अभ्यर्थियों से काउंसिलिंग के लिए पंजीकरण शुल्क लिया गया. अकेले पीजी की काउंसिलिंग के लिए 1,14,198 अभ्यर्थियों ने पंजीकरण किया और इसके जरिये सरकार के खाते में 6.72 करोड़ (6,72,19,000) रुपये आए, लेकिन इस पंजीकरण शुल्क का निर्धारण किस आधार पर किया गया, इसका कुछ अता-पता ही नहीं हैं. यह खुलासा एक RTI से हुआ है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले साल काउंसिलिंग प्रक्रिया पर कुल 2.66 करोड़ (2,66,34,468 ) रुपये खर्च हुए, इसके एवज में सरकार को अकेले पीजी की पंजीकरण फीस से ही 4 करोड़ से अधिक (4,05,84,532) का फायदा हुआ, लेकिन पंजीकरण शुल्क के रुप में प्रत्येक अभ्यर्थी से लिए गए 1000 रुपये का निर्धारण किस आधार पर किया गया, इसकी कोई जानकारी ही नहीं है.
पैसे कहां होंगे खर्च, यह भी पता नहीं
आपको बता दें कि पिछली बार नीट की काउंसिलिंग में भाग लेने के लिए पंजीकरण शुल्क लेने का निर्णय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की चिकित्सा परामर्श समिति की सहमति से लिया गया. 2018 से पहले पंजीकरण के लिए अभ्यर्थियों से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक 2018 में पंजीकरण शुल्क के रूप में सरकार के खाते में आए पैसों को कहां और कैसे खर्च करना है, फिलहाल इसकी कोई जानकारी नहीं है. न ही इस बारे में कोई दिशा-निर्देश तय किया गया है.
पंजीकरण शुल्क को लेकर मचा था घमासान
नीट की काउंसिलिंग के लिए पिछली बार जब पंजीकरण शुल्क रखने का निर्णय लिया गया, तभी इसका विरोध हुआ. अभ्यर्थियों के साथ-साथ तमाम विशेषज्ञों ने भी इस फैसले पर नाराजगी जताई थी, हालांकि तमाम विरोध के बावजूद छात्रों से पंजीकरण शुल्क के रूप में एक हजार रुपये लिये गए. अब आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार के खाते में अकेले पीजी काउंसिलिंग के पंजीकरण से 6.72 करोड़ से ज्यादा आए. जबकि यूजी का ब्योरा ही नहीं दिया गया है. आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ कहते हैं कि अगर यूजी की जानकारी मिलती तो यह आंकड़ा और बढ़ सकता है. वह कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि पंजीकरण शुल्क के रूप में वसूली गई ज्यादा धनराशि को या तो कैंडिडेट को वापस लौटा दें या कम से कम अगले तीन वर्षों तक पीजी काउंसिलिंग की रजिस्ट्रेशन फीस न लें.
VIDEO: कोचिंग के लिए ज्यादा पैसा क्यों चुका रही है सरकार?
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