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This Article is From Sep 04, 2015

महाराष्ट्र सरकार का फरमान : नेताओं की आलोचना पर चलेगा देशद्रोह का मुकदमा

महाराष्ट्र सरकार का फरमान : नेताओं की आलोचना पर चलेगा देशद्रोह का मुकदमा
महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस की फाइल फोटो
मुंबई: महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार के हालिया फरमान से बवाल पैदा हो गया है। महाराष्ट्र के गृह विभाग ने कहा है कि, किसी भी जनप्रतिनिधी खिलाफ़ दिए बयान या लेख से अगर हिंसा भड़कती है तो ऐसा करनेवाले के खिलाफ IPC की धारा 124A के तहत कार्रवाई होगी। कार्रवाई में आरोपी के खिलाफ देशद्रोह का मुक़दमा चलेगा। भाषण और सोशल मिडिया पर की गई टिपण्णी इस कार्रवाई के दायरे में होगी।

जानकार कह रहे हैं कि फरमान ग़लतियों से भरा है। कानूनविद माजिद मेमन ने कहा है कि इस फरमान की मजबूती कानून की कसौटी पर खरी उतरनी अभी बाकी है। इस बीच पूर्व महाअधिवक्ता बी.ए. देसाई ने तो इस सरकारी आदेश को ग़लत बताते हुए जल्द से जल्द वापस लेने की गुजारिश सरकार से की है।

इस से पहले की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के खिलाफ देशद्रोह की धाराओं का प्रयोग किया था। सरकार का दावा था कि, असीम के कार्टून से राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ का अपमान हो रहा है। इस कार्रवाई के खिलाफ़ आंदोलन हुआ। जिसके बाद सरकार को अपनी कार्रवाई रद्द करनी पड़ी।

इसी को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। जिस के बाद कोर्ट ने देशद्रोह की धारा किन घटनाओं में लग सकती हैं वह तय करने के आदेश दिए। जिस का नतीजा है यह फरमान। इस फरमान में जानप्रतिनिधियों की आलोचना से बनता असंतोष कार्रवाई के पात्र माना गया है। सरकारी फरमान के दायरे में ज़िला परिषद के अध्यक्ष से सांसद तक की गई आलोचना कार्रवाई के लिए पात्र मानी गई है। बयान या लेख के अलावा आपत्तिजनक हावभाव को भी आलोचना माना गया है।

महाराष्ट्र में विपक्ष पूछ रहा है कि क्या इस फरमान के चलते सरकार के खिलाफ आंदोलन करने का उनका हक़ छीन जाएगा? और क्या इसे जनता में असंतोष भड़काना माना जाएगा? महाराष्ट्र विधान परिषद में नेता विपक्ष धनंजय मुंडे ने कहा है कि सरकार इस फरमान को लागू करने से पहले सर्वदलीय नेताओं से बात कराती तो ठीक होता।

इतने बवाल के बाद सरकार मामले में बीच बचाव करने के लिए आगे आई हैं। राज्य के गृह सचिव ने के.पी. बख्शी ने संवाददातों से बात करते हुए कहा है कि, सरकार किसी के बयानबाज़ी, लेखन, या बहस पर रोक लगाने नहीं जा रही।

मौजूदा सरकारी आदेश नहीं सर्कुलर है जिसे कम्पलसरी न माना जाए। हाईकोर्ट ने दी हुई सूचनाओं को बस इस सर्कुलर में जोड़ा गया है। सरकार मानती है कि, देशद्रोह की धाराएं लगाने से पहले मामले का अभ्यास जरुरी है। इस बीच एनसीपी ने राज्य सरकार से इस फरमान को वापस लेने की मांग की है।
 

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