यह ख़बर 29 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

रवीश रंजन की रिपोर्ट : दिल्ली विश्वविद्यालय की परीक्षा मजाक बनी!

नई दिल्ली:

गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में बीकॉम ऑनर्स के पांचवें सेमेस्टर की परीक्षा चल रही थी। फाइनेंशियल मैनेजमेंट का प्रश्नपत्र देखकर परीक्षा दे रहे करीब दस हज़ार छात्र हैरान थे। ये वही प्रश्नपत्र था जो छह महीना पहले इसी साल मई में स्कूल ऑफ ओपेन लर्निंग यानि एसओएल के बीकॉम की परीक्षा में आया था।

जो प्रश्नपत्र मिला हू-ब-हू वही पेपर दस साल की हल की गई कुंजी में भी छपा था। प्रश्नपत्र में सवालों के नंबर तक नहीं बदले गए थे। यह उस विश्वविद्यालय की परीक्षा का हाल था जहां 90 फीसदी से कम नंबर पाने वालों का बड़ी मुश्किल से एडमीशन हो पाता है।

यह उस विश्वविद्यालय की परीक्षा का हाल है, जहां देशभर के टॉपर एडमीशन लेने के लिए महीनेभर तक अपने अभिभावकों के साथ चक्कर लगाते हैं।

हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय ने अब इस मामले की जांच तीन सदस्यों की एक कमेटी से करवाने का निर्णय लिया है। यह कमेटी दो हफ्तों में अपनी रिपोर्ट देगी।

जानकार कहते हैं कि विश्वविद्यालय अपनी गर्दन बचाने के लिए इस तरह की कमेटी बनाता है। जिसके नतीजे कभी कोई नहीं जान पाता है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि आंठवी क्लास की परीक्षा में भी ऐसी शर्मनाक गलती नहीं होती है, जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय ने किया है।

परीक्षा प्रश्नपत्र को तीन शिक्षकों की एक कमेटी बनाती है। लेकिन फाइनेंशियल मैनेजमेंट का प्रश्नपत्र बनाने वाले शिक्षक कहते हैं कि गुरुवार को जो प्रश्नपत्र आया है वो उन्होंने बनाया ही नहीं है। तो क्या पुराने सेट का प्रश्नपत्र इस साल की परीक्षा में लगा दिया गया।

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की अध्यक्ष नंदिता नारायन कहती हैं कि जब से यूनिवर्सिटी ने सेमेस्टर सिस्टम लागू किया है
तब से साल में दो बार परीक्षा करवानी पड़ती है और बहुत सारी गलतियां लगातार हो रही है। कभी हाथ से लिखा पेपर बांटना पड़ता है, तो कभी प्रश्नपत्र के प्रश्न ही गलत छप जाते हैं।

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पहले चार साल के स्नातक कोर्स में दिल्ली विश्वविद्यालय की खूब फजीहत हुई। अब इस तरह की गलतियां बेधड़क हो रही हैं और विश्वविद्यालय की फजीहत में भी लगातार इजाफा हो रहा है।