लेफ़्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एचएस पनाग का कहना है कि सेना पर सवाल करते रहिए. इसका चुनावी राजनीति में इस्तेमाल मत कीजिए. सवाल करते रहने से सेना का ज्यादा भला होता है. रवीश कुमार से हुई एचएस पनाग की बातचीत में उन्होंने यही संदेश दिया.
रवीश : अब इस पूरे प्रकरण पर हम बात करने जा रहे हैं लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग साहब से. आप सेना की रणनीति पर लिखते हैं, बोलते हैं. हम लोग खासकर हिंदी अखबारों की दुनिया में हिंदी पाठकों की दुनिया में सेना की रणनीति की जब भी बात आती है तो भावुकता की बात आ जाती है. हम गौरव से भर जाते हैं और मिलिट्री को लेकर जो एक रणनीतिक समझ बननी चाहिए वह हिस्सा गौण हो जाता है, पीछे चला जाता है. पहले मैं आपसे यही जानना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री का बयान है वह यह कह रहे हैं कि जहां तक आप मुझे बताइए हमारे देश में सामान्य मानव की सुरक्षा, क्या जिस देश के हजारों सेना के जवान बलि चढ़ गए, शहीद हो गए, उनके विषय में हम आगे क्या करेंगे. क्या यह चुनाव मुद्दा नहीं होगा. किसान मरे तो चुनाव का मुद्दा लेकिन जवान मरे तो चुनाव का मुद्दा नहीं, यह कैसे हो सकता है? हमारे देश की सेना मजबूत हो. देश की रक्षा के लिए हम 40 साल से आतंकवाद को भुगत रहे हैं. अगर इसको छिपाएंगे, देश की जनता के सामने हमारा क्या व्यू है? लेकर नहीं जाएंगे, क्या लॉजिक है? यह है इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
एचएस पनाग : देखिए सेना जो है कॉन्स्टिट्यूशन के तहत काम करती है और जो इलेक्टेड गवर्नमेंट है वह सेना को आदेश देती है. गवर्नमेंट जो है सेना को डायरेक्शन देगी, सेना उसके ऊपर... के मुताबिक काम करेगी. जहां तक सेना का अपने आप काम करने का सवाल है जो उसकी सिर्फ हद है, वह है एग्जीक्यूशन. जब काम को एग्जीक्यूट करते हैं तो उसमें उनको फ्रीडम मिलनी चाहिए. बाकी आदेश और आदेश में लिमिटेशंस होते हैं कि आप क्या कर सकते हैं, क्या नहीं कर सकते. यह पॉलिटिकल ऑर्डर होता है और यह पॉलिटिकल ऑर्डर सरकार को देना चाहिए. एक बात तो पहले मैं यह कहूंगा कि जब हम कहते हैं, सरकार कहती है कि हमने सेना को पूरी छूट दे दी है, तो यह बात एक तरीके से गलत है. गलत इसलिए है कि आपको सेना को छूट नहीं देनी है, छूट उनको एग्जीक्यूशन में देनी है. जहां-जहां पर वह असली काम करती है आपने उनको दिशा दिखानी है, आपने उनको डायरेक्शन देने हैं. तो पहली बात तो यह है कि सेना जो भी काम करती है, उसमें सरकार की भी उतनी ही जिम्मेदारी है और सेना की भी उतनी ही जिम्मेदारी है एग्जीक्यूशन में और उनके आदेश में. अब रहा सवाल कि जब जवान की कैजुअल्टी होती है, अगर आप नेशनल सिक्योरिटी के मिशन फौज को देंगे, चाहे वह एक्सटर्नल सिक्योरिटी के लिए है, चाहे वह इंटरनल सिक्योरिटी के लिए है, अब लड़ाई एकतरफा तो होती नहीं है. अगर टेरेरिस्ट हैं तो वह आपके ऊपर भी हमला करेंगे तो कैजुअलिटी आपकी भी होंगी. और अगर दूसरे देश के साथ आपकी कन्फ्रंटेशन है तो कैजुअलिटी उसके अंदर भी होंगी और यह दोनों काम सरकार के आदेश पर होते हैं. इंटरनल सिक्योरिटी में सेना की डिप्लायमेंट सरकार के आदेश पर है और एक्सटर्नल सिक्योरिटी में जब दूसरे मुल्क पर हमला करते हैं अपने देश की रक्षा करते हैं वह भी सरकार के आदेश पर है. तो मेरे को यह बात समझ में नहीं आती कि सेना के जवानों की जब हम बात कर रहे हैं उनके सैक्रिफाइज की, उनके शहीद होने की, तो यह मुद्दा किस तरह से ऊपर आ रहा है यह तो एक सरकार के आदेश पर है. अगर सरकार के पास कोई प्रॉब्लम नहीं है तो सेना नहीं लड़ाई में जाएगी अगर हमारे इंटरनल सिक्योरिटी प्रॉब्लम हैं तो सेना नहीं लड़ाई में जाएगी. सरकार के हुक्म पर सेना जाती है तो इसलिए उसमें कैजुअलिटी तो होंगी. लड़ाई दोनों तरफा होती है. तो मेरे बात यह समझ में नहीं आई कि हम इसको क्यों मुद्दा बना रहे हैं.
रवीश : कई देशों में हमने देखा है कि जैसे अमेरिका में सैनिक मरते हैं तो बड़ा हंगामा हो जाता है. सरकार की नीतियों, सरकार और उसके फैसलों की, जैसे हमने इराक वार में देखा कि काफी उस पर सवाल उठाए गए कि हमारे इतने सैनिक मारे गए हैं. भारत में हम यह सवाल क्यों नहीं कर सकते. जैसा कि आप कह रहे हैं कि सेना को जो आदेश दिया जाता है वह एक राजनीतिक फैसला होता है, क्या उसे राजनीतिक फैसले में कोई कमी थी, वक्त चुनने में कोई कमी थी जिसकी वजह से हमारे जवानों की शहादत इतनी ज्यादा हो रही है?
एचएस पनाग : देखिए अमेरिका जो है उसमें दो बातें साफ नजर आती हैं, एक उनका अपना सिक्योरिटी फोर्सज के साथ बहुत प्रेम है और यह सिर्फ अमेरिका में ही नहीं मेरे ख्याल से पूरी दुनिया में होता है क्योंकि वह आपको सिक्योरिटी प्रोवाइड करते हैं तो सभी देशों में जो आम जनता है उनकी उनके प्रति श्रद्धा होती है. वह सिक्योरिटी प्रोवाइड करती है. और अमेरिका के अंदर क्या है कि जब फ़ौज जाती है तो पूरा देश एकजुट होकर खड़ा हो जाता है. एक बार पॉलिटिकल फैसला हो गया, पूरा देश उसकी बैकिंग करता है. जब अमेरिका वियतनाम में गया था, तो पहले पूरी बैकिंग थी और उसके बाद जब इराक में गए थे 90 में और फिर दोबारा जब 2003 में गए तो उसमें भी सेना को पूरी बैकिंग थी, पब्लिक की सरकार को भी और सेना को. लेकिन उसके बाद जब वह सरकार की नीतियों को देखते हैं या सेना की कार्यवाही को देखते हैं, फिर वह उनकी प्रेस भी और उनकी पब्लिक भी इस बात के ऊपर सवाल उठाती है. और अगर वह यह समझते हैं कि यह नीतियां गलत हो रही हैं गलत चल रही हैं और उसकी वजह से कैजुअलिटी हो रही है, क्या सेना को पूरा अधिकरण नहीं हुआ है और उनको जो साजो सामान मिलना चाहिए नहीं मिला है, तो उसके ऊपर वह सरकार की आलोचना करते हैं. मैं कहूंगा कि वियतनाम युद्ध इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, क्योंकि वह कम्युनलिज्म के खिलाफ लड़ रहे थे. सब लोग वहां पर गए पब्लिक ने पूरी सपोर्ट की लेकिन जब बाद में उस लड़ाई का कोई नतीजा ही नहीं था जब यह बात साफ हो गया है कि जो पब्लिक है वियतनाम की, नॉर्थ वियतनाम की वह अमेरिकन फौज को नहीं चाहती है. और अमेरिकन फोर्स ने भी अपने लिए एक मुद्दा बना लिया कि हम यहां से जीतकर ही लौटेंगे, हम हारकर नहीं लौटेंगे और हम जीत रहे हैं हमारे को और सपोर्ट दी जाए तो हम जीत जाएंगे. तो जब यह बात जाहिर हो गई 5- 6 साल में.. तो 70 के शुरू में पूरी पब्लिक सेना के खिलाफ हो गई थी और इस हद तक कि लोगों ने प्रोटेस्ट किया वेटरन ने प्रोटेस्ट किया.
रवीश : क्या इससे अमेरिका टूट गया? भारत में बताया जाता है कि भारत ध्वस्त हो जाएगा, इस तरह से बोला जाता है.
एचएस पनाग : बिल्कुल.. और इस हद तक आलोचना हुई कि प्रेसिडेंट क्लिंटन को खुद उन्होंने खुद ड्राफ्ट को डोज किया. उन्होंने ड्राफ्ट जिसमें अनिवार्य था सेना में जाना, वह नहीं गए और बहुत लोगों ने प्रोटेस्ट किया. मोहम्मद अली खुद जेल चले गए इस बात को लेकर. तो बहुत बड़े बड़े प्रोटेस्ट हुए और उसके बाद अमेरिकी सेना का रिफॉर्म शुरू हुआ और इस बात में समय लगा. लेकिन 1986 में यह गोल्ड वॉटर और निकोलस एक्ट बनाया गया जिसके तहत सेना में जो कमियां नजर आईं वियतनाम युद्ध में वह एक्ट पास किया गया.
रवीश : वह एक सवाल करने से ही बना?
एचएस पनाग : वह एक सवाल करने से ही बना. अगर सवाल नहीं उठेंगे तो सेना का और सेना में कैसे इंप्रूवमेंट आएगी. हम अपनी सेना को चाहते हैं कि वह 100% कामयाब बने. हम उनको ओलंपिक में गोल्ड मेडल लेना चाहते हैं, सिर्फ हिस्सा लेने के लिए नहीं भेज रहे हैं.
रवीश : पर क्या पुलवामा के बाद या जब भी कोई इस तरह की घटना हुई है, सेना से सही सवाल पूछा गया है? या सरकार सरकार से सही सवाल पूछे गए हैं?
एचएस पनाग: मेरे ख्याल से सरकार से सही सवाल नहीं पूछे गए हैं.
रवीश : तो क्या होता है आपके हिसाब से?
एचएस पनाग : हम सब लोग भावुक हो जाते हैं. भावुक होकर हम लोग अगर अच्छा काम हुआ है तो उनकी हम बहुत ज्यादा तारीफ करते रहते हैं. अगर कोई कमजोरी हुई है तो हम लोग कहते हैं कि हमें सेना के साथ खड़े होना चाहिए. तो असली सवाल हम लोग नहीं उठाते हैं, खास तौर पर आजकल के माहौल में जब सेना को राष्ट्रवाद का हिस्सा बना दिया गया है. हमारी जो डेली पब्लिक लाइफ है उसके हर पहलू में सेना को जोड़ दिया गया है तो खास तौर पर सवाल उठाया जाता है. कहते हैं कि यह एंटी नेशनल है, यह देशद्रोही है. अब आप यह पुलवामा का जो हमारी लेटेस्ट कन्फ्रंटेशन हुई है उसी को लीजिए, पाकिस्तानी टेरेरिस्ट अटैक किया, यह कोई पहला टेरेरिस्ट अटैक नहीं है लेकिन बड़ा टेरेरिस्ट अटैक था. इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए, 40 जवान एक साथ मारे गए, बड़ा टेरेरिस्ट अटैक था. पिछले सात-आठ सालों में सबसे बड़ा टेरेरिस्ट अटैक कह दीजिए आप. लाजमी था कि हमें कुछ करना है, मतलब इसका जवाब देना है. एक बात होती है कि सिर्फ इसका जवाब देना चाहिए, दूसरा है कि आप एक लॉन्ग टर्म स्ट्रेटजी के तहत काम कीजिए क्योंकि उससे पहले 2016 में जब उरी में हमला हुआ था उस टाइम पर भी हमने पाकिस्तान के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक की थी, जो कि जमीन से की थी. इसके दो साल के बाद बाद पुलवामा हुआ, तो फिर क्या हुआ कि उस टाइम एक हादसा हुआ, एक इवेंट हुआ, हमने उसके ऊपर कार्रवाई कर दी. जब पुलवामा अटैक हुआ 14 फरवरी को तो हमने अगली कार्रवाई शुरू की. बीच में क्या किया हमने. जो लगातार हमारी स्ट्रेटजी होनी चाहिए उस स्तर की प्लानिंग होनी चाहिए. अगर हमने पाकिस्तान को कंपल करना है तो उसके लिए हमें लगातार कार्रवाई करनी पड़ेगी.
रवीश : सरकार तो कहती रहती थी कि वह जब भी ऐसा करेगा हम उसको छोड़ेंगे नहीं, तब भी बीच-बीच में अटैक तो चलता ही रहता है.
एचएस पनाग : जब ऐसा करेगा तो क्या पाकिस्तान हटेगा या नहीं हटेगा. एक मुद्दा तो इस बात का है तो हमने लगातार कोई तफ्तीश नहीं बनाई. उसके कन्फ्रंटेशन का लेवल ऊपर नहीं उठाया. लेकिन पुलवामा के बाद यकीनन एक पड़ा स्टेप लिया गया, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए, और एयरफोर्स के जरिए लिया गया. हमने इंटरनेशनल बॉर्डर पार करके उसके टेरेरिस्ट ठिकाने के ऊपर एयर स्ट्राइक किया. वहां कितने आदमी मारे गए या कितना नुकसान हुआ, एयरफोर्स ने बता दिया है कि उनकी कैजुअल्टी बता नहीं सकते और जो उनके टारगेट थे उनके ऊपर बम सही पहुंचे हैं. मैं समझूंगा कि सबसे जरूरी बात यह थी कि हमने यह जाहिर किया पाकिस्तान को और दुनिया को अगर हमारे ऊपर पाकिस्तान अपना प्रॉक्सी वार को बंद नहीं करेगा, टेररिज्म को जेएंडके के अंदर बंद नहीं करेगा, तो हमारे पास क्षमता है हम जहां भी चाहें टेरेरिस्ट से जुड़े टारगेट हैं, उनके ऊपर हमला कर सकते हैं.
रवीश : दो साल पहले उरी के समय भी...
एचएस पनाग : उरी एक छोटा हमला, एक टैक्टिकल लेवल पर था. इस बार एयर फोर्स का इस्तेमाल किया गया. एयर फोर्स के बाद सिर्फ दो ही लेवल और हैं एक है कि आप आपस में मिसाइल एक्सचेंज करेंगे और उसके बाद एक लिमिटेड वॉर यानी फुल प्लेज युद्ध शुरू हो जाता है. इसलिए यह लेवल थोड़ा ऊंचा था और इस बार हम इंटरनेशनल बॉर्डर के पार गए तो एक स्टेटमेंट थी जिसमें हम यकीनन कामयाब रहे. मैं कहूंगा कि जहां तक मिलिट्री का सवाल है उसमें भी पूरी कामयाबी थी.
रवीश : और इसी को कोई सरकार राजनीतिक चुनाव में बताए?
एचएस पनाग : नहीं मैं इसमें एक बात पहले साफ कर देना चाहता हूं, फिर आप के मुद्दे पर आता हूं, एक तो मिलिट्री की कामयाबी पूरी थी और साथ में मैं कहूंगा कि फिजिकल डिसीजन, वह भी पूरी तरीके से कामयाब था क्योंकि दुनिया को महसूस हो गया कि ऐसा हुआ है. लेकिन उसके बाद अगले दिन क्या हुआ, अगले दिन अब हमने जब यह कार्यवाही की है तो यकीनन हमें पाकिस्तान की क्षमता का पता होना चाहिए था कि वह जवाबी कार्रवाई करेगा. और मैंने एक लेख लिखा था. मैंने यह 26 तारीख को लिखा था जो कि दोपहर के वक्त प्रिंट हुआ 'द प्रिंट' में. मैंने यह कहा कि पाकिस्तान यकीनन जवाबी हमला करेगा और हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए. अगले दिन पाकिस्तान ने जवाबी हमला किया.
रवीश : उसे भी पब्लिक को दिखाना था?
एचएस पनाग : उसे पब्लिक को दिखाना है, उसने भी एक प्रोफेशनल सेना खड़ी की हुई है, प्रोफेशनल हेयर फॉर सेवेन के पास इतने सालों से, और उसको भी यह जाहिर करना था कि मेरे पास भी जवाब देने की काबिलियत है. अगर वह नहीं करता तो उसकी शिकस्त हो गई, वह तो बैठे-बैठे हार गया. जब उन्होंने जवाबी हमला किया और उस हमले का रिजल्ट देखिए उन्होंने कुछ टारगेट के ऊपर हमला किया जो मिलिट्री टारगेट थे. और खैर हमला वह कामयाब नहीं हुआ. चाहे वह पाकिस्तान का एक सिर्फ दिखावा था. असली कार्रवाई वह चाहते थे कि हमारी एयर फोर्स आए और और उनको एरियल एंबुश करें. तो जब यह एरियल कन्फ्रंटेशन हुई जिसमें मैं कहूंगा कि पूरी टेक्नोलॉजी हमारे पास थी. पूरी टेक्नोलॉजी पाकिस्तान के पास थी. उसका इस्तेमाल हुआ ए ए वैक्स जहाज उड़ रहे थे, इलेक्ट्रॉनिक वॉच फेयर के प्लेटफॉर्म लगे हुए थे. एक-दूसरे के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को न्यूट्रलाइज किया जा रहा था. मैं कहूंगा कि अच्छी खासी काबिलियत है टेक्नोलॉजी की. इसमें क्या हुआ उनका एक जहाज f16 नीचे चला गया. इसके बारे में मुझे कोई शक नहीं है, क्योंकि ऐसे वीडियो आ चुके हैं जिसमें तीन पैराशूट उतर रहे हैं. जो पाकिस्तान के प्रवक्ता का बयान है, गफूर का, उसमें उसने खुद कहा है कि तीन पायलट आए हैं, एक पकड़ा गया है, एक पकड़ा जाना है. ऐसी बातें हुईं. यह बात साफ है कि एक जहाज उनका भी गिरा है. हमारा जहाज गिर गया और हमारा एक पायलट पकड़ा गया. तो दूसरे दिन आप अगर नेट रिजल्ट देखेंगे कि पहले दिन हमने डेमॉन्सट्रेशन कर दी और मामला साफ कर दिया कि हम ऐसा करेंगे, हमारे पास काबिलियत है. दूसरे दिन पाकिस्तान ने जवाबी हमले की काबिलियत को दर्शा दिया. जो एरियल एंबुश हुआ, एरियल लड़ाई हुई, उसमें मामला बराबर रहा. हमारा एक जहाज गिर गया, एक विमान उनका गिर गया. हालांकि हम कह सकते हैं कि हमारा पुराना जहाज था, उनका नया जहाज था. यह बात तो अलग है लेकिन इसका रिजल्ट हुआ कि एक स्टलमेट है कि मिलिट्री का पलड़ा बराबर है. इसमें कोई क्लियर कट जीत नहीं है, न हमारी, न उनकी. लेकिन डिप्लोमेसी के तौर पर वाकई हमारी जीत हुई. अब पूरे देश पाकिस्तान के ऊपर दबाव ज्यादा डालना चाहेंगे क्योंकि वह लगातार ऐसा कर रहा है.
रवीश : इसी को प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि हम छुपाए क्यों? हम अपना व्यू लेकर जनता के बीच जाएं नहीं जाएं तो इसका क्या होगा?
एचएस पनाग : नहीं जाना चाहिए. उस बात पर मैं आता हूं. असली बात ये थी कि जो हमारे पास मिलिट्री टेक्नोलॉजिकल एज होनी चाहिए, बढ़त होनी चाहिए, पाकिस्तान के ऊपर, वह है नहीं. अगर आप किसी दूसरे दिन की, 27 तारीख की लड़ाई को, एक और नजरिए से देखें कि पाकिस्तान हमला करने आता है. हमारे पास S400 जहाज, जो भी आर्डर किए हैं, आने वाले हैं. S400 ग्राउंड टू मिसाइल सिस्टम है, जिसकी 400 किलोमीटर तक मार है. आज तक उसकी 100% कैपेबिलिटी है मार करने की. उसकी हिट प्रोबेबिलिटी जो है, वह डिप्लॉयड होते हैं. इससे पहले कि एयर फ़ोर्स को हम लाते, बीच में पाकिस्तान के हमला करने के लिए जो जहाज आए थे उसमें से दो जहाज़ नीचे गिर जाते हैं. क्योंकि अब आपके पास टेक्नोलॉजीकली बढ़त हासिल थी.
रवीश : ठीक है.
एचएस पनाग : और यह जहाज पाकिस्तान के अंदर भी मार कर सकते हैं. तो यह बढ़त आपके पास नहीं थी. इसलिए मामला एंड में बराबर रह गया. अगर यह बढ़त आपके पास होती तो फिर इसका नतीजा कुछ और होता.
रवीश : आप कह रहे हैं कि तब वह असली जीत होती?
एचएस पनाग : और यह बढ़त देने का किसके ऊपर है दारोमदार? यह है सरकार के ऊपर क्योंकि सरकार ने बजट देनी है और उस बजट से सरकार ने एंश्योर करना है की सेना प्लानिंग करती है। सेना तभी करेगी जब उसको -
रवीश : सरकार कहती है कि उसने इतने सारे सुधार किए हैं.
एचएस पनाग : सुधार किए हैं लेकिन अभी हाल ही में हमारे जो पूर्व वाइस चीफ हैं जनरल चौहान, उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को ही ज्वाइन किया है. मैं कहूंगा आप उनके पिछले साल के बयान को पढ़िए जो कि उन्होंने हमारी पार्लियामेंट कमेटी फॉर डिफेंस के सामने दिया है.
रवीश : क्या कहा है उन्होंने?
एचएस पनाग : उसमें उस टाइम जनरल खंडूरी उसके चेयरमैन थे. वह कमेटी के चेयरमैन थे. उन्होंने कहा था कि यह बात पिछले साल की है, जो 2018 में बजट आया था. लेकिन क्योंकि यह मुद्दा ताजा है इसलिए उसके बारे में मैं जिक्र करता हूं. उन्होंने कहा था कि जो कैपिटल बजट है, जो कि आधुनिकीकरण के लिए बजट दिया गया है, वह सिर्फ इतना है कि हम पिछले वाले हमारे पेंडिंग पैसे, जो देने हैं दूसरे देशों को, सिर्फ उन्हीं को पूरा करेगा. और नए सिरे से कोई भी प्रोजेक्ट हम नहीं कर सकते. जितने भी हमारे मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट हैं, वह सिर्फ एक जगह पर खड़े हुए हैं. उनमें कोई भी प्रोग्रेस नहीं हो सकती. यह खुद वाइस चीफ ने बयान दिया है. यह पूरा हमारी पार्लियामेंट स्टैंडिंग कमिटी फॉर डिफेंस की रिपोर्ट में शामिल है. पिछले साल की रिपोर्ट में है.
रवीश : क्या आप इस राय के हक में हैं कि वायु सेना अध्यक्ष और सेना अध्यक्ष को रिटायरमेंट के बाद चुनाव लड़ना चाहिए, या राज्य मंत्री बनना चाहिए?
एचएस पनाग : देखिए रवीश जी ऐसा है कि इसमें दो बातें आती हैं. आप अमेरिका का उदाहरण लीजिए. आइजनहावर दूसरे महायुद्ध के दौरान सुप्रीम कमांडर थे. उन्होंने पूरी सेना का नेतृत्व किया यूरोप में और जर्मनी को हराया. 1945 में लड़ाई खत्म हो गई और आठ साल के बाद वे देश के राष्ट्रपति बन गए. वे आठ साल राष्ट्रपति रहे, बड़ी कामयाबी के साथ. रिपब्लिकन पार्टी के थे. अगर आप अमेरिकी इतिहास में देखेंगे तो बहुत सारे ऐसे प्रेसिडेंट रहे हैं जो या तो पहले खुद सेना में रह चुके हैं, या सेना के ऊंचे ओहदों पर या सेना का हिस्सा रह चुके हैं. तो अगर सरकार चाहती है कि सेना का जो एक्सपीरियंस है, उसका फायदा उठाया जाए, तो यकीनन फायदा उठा सकते हैं. सभी रिटायरमेंट के बाद नॉरमल बन जाते हैं. उनका भी उतना ही अधिकार है पॉलिटिक्स में आने का जितना कि दूसरों का. लेकिन एक बात आती है क्योंकि आप अभी रिटायर हुए हैं, अभी आपका सिलेक्शन उसी गवर्नमेंट ने किया है, अगर आप रिटायरमेंट के थोड़े दिनों बाद उसी गवर्नमेंट को, उसी पॉलीटिकल पार्टी को ज्वाइन कर लेते हैं, तो थोड़ी सी यह बात मुझे ठीक दिखाई नहीं देती. इसका मतलब है कि जब आपकी प्रमोशन हुई थी, तो शायद आप के पीछे पॉलिटिक्स का हाथ था. और खास तौर पर अगर वह प्रमोशन आउट ऑफ टर्न हुई हो, तो यह तो हमारे देश पर निर्भर है. अगर हम चाहते हैं कि दो साल का अंतराल रखा जाए, उसके बाद सेना के अफसर आएं तो ठीक है. मैं उससे सहमत हूं. लेकिन मेरा इसमें प्रिंसिपली कोई ऑबजेक्शन नहीं है.
रवीश : मेरा सवाल है कि क्या वाकई सेना का राजनीतिकरण हो रहा है चुनाव में, और इसके क्या खतरे आपको नजर आते हैं?
एचएस पनाग : रवीश जी देखिए ऐसा है, इसमें मेरी थोड़ी दूसरी लोगों से अलग राय है, अलग व्यूज़ हैं. एक तो जब हम कहते हैं कि पॉलिटिसाइज़ेशन या राजनीतिकरण जिसे कहते हैं, उसका जो सही मायना है वह यह है कि सेना जो है उसका एक आइडियोलॉजी की तरफ झुकाव हो गया है, और वह एक पर्टिकुलर आइडियोलॉजी को सपोर्ट करती है. सेना का कुछ हिस्सा या सेना की हैरार्कि एक आइडियोलॉजी को सपोर्ट करती है और वो देश की राजनीति में एक प्लेयर बन गई है. उसमें जो फैसले लेने हैं, वह उसमें हिस्सा ले रही है. यह है पॉलिटिसाइज़ेशन. अब जैसे PLA है, यह एक पॉलिटिसाइज़्ड आर्मी है, पीपल्ज़ लिबरेशन आर्मी, चाइना, पाकिस्तान की आर्मी अब एक पॉलिटिसाइज़ड आर्मी हैं, क्योंकि पाकिस्तान के हर पॉलीटिकल पहलू पर वह हावी है, और सेना को कहे बिना कुछ नहीं हो सकता. तो यह हालात अभी तक हमारे देश में नहीं हैं, लेकिन क्योंकि जो पॉलीटिकल पार्टीज़ हैं वह चाहती हैं कि - क्योंकि लोग सेना को पसंद करते हैं सेना में श्रद्धा करते हैं - इस मुद्दे को एक्सप्लॉयट किया जाए. तो मैं कहूंगा कि इस वक्त जो चल रहा है वह पॉलीटिकल एक्सप्लोइटेशन चल रहा है सेना का. सेना का राजनीतिकरण हो रहा है. लेकिन यह अगर पॉलीटिकल पार्टीज़ सेना को एक्सप्लॉइट करती हैं, आज सिर्फ़ एक पार्टी कर रही है बयान से, या उन्होंने कुछ अच्छा किया सेना को क्रिटिसाइज़ मत कीजिए. कल एक दूसरी पार्टी आ जाती है, वह कहती है एक लड़ाई ही क्यों न शुरू करवा दी जाए सेना के साथ? क्योंकि सेना का कोई क्रिटिसिज्म नहीं होगा और सेना और सरकार के बीच में कोई अंतर नहीं है, उसका हम फायदा उठाएंगे. यह एक पर्टिकुलर पार्टी है, दूसरी कोई कुछ और कर सकती है. और जब यह ऐसा माहौल, अगर यह चलता रहा इस पार्टी के साथ या किसी दूसरी पार्टी के साथ, तो सेना कहेगी कि मेरे कंधों पर सवार होकर यह सब लोग अपने पॉलीटिकल बैटल्स जीत रहे हैं, तो फिर क्यों न हम हिस्सा लें?
रवीश : जैसे बाहुबली लोग बाद में एमएलए बन गए, एमपी बन गए?
एचएस पनाग : और यह बात है कि तब जाकर पूरी तरह से राजनीतिकरण होता है, पॉलिटिसाइज़ेशन होता है. और हमारे यहां पर, मैं कहूंगा कि एक्स्प्लॉइटेशन बहुत गलत तरीके से हो रहा है. और हमने एक बड़ा कदम ले लिया है पॉलिटिसाइज़ेशन की तरफ. अब पूरी पॉलिटिसाइज़ेशन होने में कितना समय लगेगा? 5 साल, 10 साल, यह सवाल है?
रवीश : लेकिन मैं लौट कर आता हूं प्रधानमंत्री के बयान पर. वह कह रहे हैं कि हम अपना व्यू जनता के बीच जाकर बता रहे हैं कि हमारे देश की सेना मज़बूत हो और जवान मरे तो यह चुनाव का मुद्दा क्यों नहीं हो?
एचएस पनाग : बिल्कुल मज़बूत होनी चाहिए. आज आपने पहले कहा कि एयर चीफ ने कहा है कि राफ़ेल होते तो बात ही कुछ और होती. यह प्रधानमंत्री जी ने भी एक बयान में कहा था कि अगर आज हमारे पास राफ़ेल होते, तो बात कुछ और होती. तो मैं कहूंगा वही बात जो मैंने पहले ज़िक्र किया. जो आपके पास मिलिट्री टेक्नोलॉजिकल बढ़त होनी चाहिए, फिर पिछले 5 साल में आपने किस हद तक उसको आगे किया? क्यों नहीं आप इस बात का हिसाब देते? कि जब हमने लिया तो उस वक्त इस हद पर हम थे अब हम इसको आगे करना चाहते हैं. आप कहते हैं कि हम करेंगे इनको होना चाहिए. कब होगा?? तो यह ज़िम्मेवारी सरकार की है. सरकार ने पैसे देने हैं. और उसके साथ हमने उनको डेवलप करना है, उनको हमने खरीदना है, तो मेरे हिसाब से तो यह पब्लिक से क्या हिसाब मांग रहे हैं हम? आपकी डिफेंस कमिटी फॉर पार्लियामेंट कह रही है आपका कैपिटल बजट है इनएडेक्वेट है. आपका जो कैपिटल बजट है वह पिछले सालों से कम होता जा रहा है. जबकि आयडियली लोग कहते हैं कि 3% जीडीपी का हमें लगाना चाहिए सेना के बजट में. हमारा इस वक्त तकरीबन, पेंशन को छोड़कर, 1.6 या 1.7 चल रहा है. तो अगर आप उसको 3 कर देंगे, 3% ऑफ़ जीडीपी, तो आपके पास और क्षमता होगी. लेकिन आपने ऐसा नहीं किया है. इन फैक्ट पिछले 5 साल में सेना का बजट जो है, पहले 10 सालों से कम होता जा रहा है. लेकिन इसकी जिम्मेदारी में इस सरकार के ऊपर नहीं डालता केवल. मैं कहूंगा कि पिछले 20 साल से सेना का आधुनिकरण नहीं हुआ है, मॉडर्नाइजेशन नहीं हुआ है. उसकी तरफ कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया है. जो हमारे पास आज सेना है, यह सेना हमारी, 1980-85 से जो रिफॉर्म शुरू हुए थे जो ‘90 के बीच जाकर कंप्लीट हुए, अगले 8-10 साल में. यह जर्नल कृष्णा राव और जनरल सुंदरजी के तहत रिफॉर्म हुए और उस टाइम पर जो है, जीडीपी उसमें 3% से कम सेना के लिए नहीं था. तो उसके बाद जब यह 2001 में दिसंबर में पराक्रम जब शुरू हुआ, मैं कहूंगा उस वक्त जो हमारी क्षमता थी, वह पाकिस्तान से बहुत आगे थी. काफी हद तक आगे थी लेकिन पिछले 18-19 साल में हमने इसके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं की. इसमें 5 साल बीजेपी के रहे बीच में, 10 साल कांग्रेस के, 10 साल की दोनों सरकारें बराबर की हिस्सेदार हैं.
रवीश : सिर्फ़ यही नहीं, एक और है कि बीच में 2014 की राजनीतिक शुरुआत शहीद हेमराज से होती है जब कहा जाता है कि एक सर के बदले 10 सर लाएंगे. फिर बाद में जेएनयू का मसला आता है कि आप टैंक रख दीजिए. एक वाइस चांसलर ने कहा. हमने एक हिसाब लगाया था कि देश में 36000 कॉलेज है और प्रत्येक कॉलेज में एक टैंक हो. तब हमें टैंक की कीमत मालूम नहीं थी पर हमने 5-6 करोड़ के हिसाब से हिसाब लगाया था कितना बजट तो सिर्फ देशभक्ति को जगाने में लग जाएगा. तो क्या यह बार-बार इसको उठाना, इससे राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति आती है क्या?
एचएस पनाग : बिल्कुल ऐसा कुछ नहीं है. देखिए मैंने खुद 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था. मैं कहूंगा कि 1971 के युद्ध खासतौर पर जो ईस्टर्न सेक्टर था बांग्लादेश में, जो भारत की जो जीत हुई थी. अगर आप भारत का इतिहास देखें, तो पिछले 700 - 800 साल में हमने ऐसी कोई इतनी बड़ी जीत हासिल नहीं की थी, जैसे कि बांग्लादेश में हासिल की है. लेकिन मैं बताऊं कि सेना के तौर पर, मैं कप्तान था उस वक्त 23 साल की मेरी उम्र थी. जब हम वापिस आए, हमने कभी ऐसा नहीं सोचा कि ड्यूटी थी, एक काम था, हो गया. उसमें हिस्सा लिया, बहुत अच्छा हुआ. मेरी पलटन के तकरीबन 46 जवान शहीद हुए थे और तकरीबन 170 जवान ज़ख्मी हुए. तो हमारा ध्यान उनकी तरफ था कि कैसे इनकी देखभाल करें, इनकी जो विडो हैं, उनको विज़िट किया गया. हम उन बातों पर ध्यान दे रहे थे और हम अपनी अगली ट्रेनिंग में लग गए. इसके बाद अगले मिशन के लिए तैयार रहना है.
रवीश : तो उसके आसपास चुनाव में इस तरह से नहीं होता था?
एचएस पनाग : आप खुद देख लीजिए 71 की सबसे बड़ी जीत थी और 74 तक आते-आते देश में जेपी मूवमेंट शुरू हो गया और और 75 में इमरजेंसी लग गई. किस हद तक उसका फायदा मिला मिसेज़ गांधी को ये आप उसका अंदाजा लगा सकते हैं.
रवीश : एक आखरी सवाल. क्या अब भी आप लोगों से कहेंगे? कई लोग सहमत नहीं होते हैं कि सेना पर सवाल नहीं करना चाहिए, और उन्हें लगता है कि ऐसा करते हुए वो भारतीय सेना का ज्यादा भला कर रहे हैं और उसके साथ खड़े हैं.
एचएस पनाग : रवीश जी मैं यह कहूंगा कि अगर हमारा मीडिया और पब्लिक सेना पर सही सवाल उठाती 1958 और 62 के बीच में, तो 62 की जो शर्मनाक हार हुई है हमारी, वह नहीं होती. दो बातें उस टाइम पर सामने आईं, एक यह कि जिस पॉलिटिसाइज़ेशन का ज़िक्र हम आज कर रहे हैं, यह उस टाइम भी हो रहा था. और उस टाइम इसलिए हो रहा था क्योंकि कुछ जनरल थे फौज के जनरल बीएम कॉल उसमें सबसे प्रमुख थे, जिनका कोई पॉलिटिकल ताल्लुक था. उनको नीचे से उठाकर ऊपर बिठा दिया. वह हमारे आर्मी सर्विस कोर के तहत थे, जो कि सप्लाई और लॉजिस्टिक्स को देखते हैं. उनको उठाकर आपने फ़ील्ड कमांडर बना दिया और एक बहुत ही अहम पोस्ट पर लगाया. जीओसी फ़ोर कोर लड़ रही थी चाइना के खिलाफ. सवाल नहीं उठाए गए और मैं कहूंगा कि उसमें एक नहीं सबकी गलतियां थीं. खुद जनरल थिमय्या ने अपना इस्तीफा पेश किया और फिर वापस ले लिया. इस बात के ऊपर नहीं, कुछ और बात थी नेहरू जी की पॉलिसी के ऊपर.
रवीश : इस वक़्त जो सवाल उठाया जाना हो तो क्या उठाया जाए? क्या अभी भी हो रहा है भाई-भतीजावाद?
एचएस पनाग : अगर हम सवाल नहीं उठाएंगे तो मैं कह सकता हूं दावे के साथ कि जब दुबारा हमारी कॉन्फ़्रंटेशन होगी पाकिस्तान के साथ, नतीजा स्टेल्मेट ही होगा. क्योंकि जब तक आप मिलिट्री टेक्नोलॉजिकल बढ़त नहीं हासिल करेंगे तब तक पाकिस्तान में इतनी क्षमता रहेगी कि वह हमारे साथ जवाबी हमला करे और हमारे साथ इस लोअर लेवल पर बराबरी करता रहे, क्योंकि बड़ा युद्ध होने में, जिसमें हम उस पर हावी होंगे अपनी नूमेरिकल सूपीरिअरिटी के साथ.
रवीश : सवाल उठाया जाता है कि सवाल करने से सेना का मनोबल गिर जाता है. जब आप लोग अंदर होते हैं तो क्या मनोबल गिर जाता है?
एचएस पनाग : आज पब्लिक और मीडिया सेना पर सवाल उठाए, जिससे सेना का मॉर्डनाइजेशन हो, मैं कहूंगा उससे बड़ा सेना के लिए सपोर्ट नहीं हो सकता और सेना का मोरल उससे एकदम ऊपर पहुंच जाएगा, कि हमारी पब्लिक और हमारा मीडिया और हमारे पॉलीटिशियंस जो हैं, हमारे मॉर्डनाइजेशन के लिए पूरा ज़ोर लगा रहे हैं.
रवीश : हमारी कमियों की बात कर रहे हैं.
एचएस पनाग : मैं उलट कह रहा हूं, कह रहा हूं कि अगर हम यह कहेंगे कि उनकी कमियां बताकर कोई उनको दिया जाए तो उनका मोरल अप होगा.
रवीश : हमारा मीडिया क्या कर रहा है आपकी नजर में?
एचएस पनाग : हमारा मीडिया बिल्कुल उलट काम कर रहा है. सवाल नहीं उठा रहा है. सही सवाल नहीं उठा रहे हैं. इस बात को जिसे कहते हैं अंग्रेज़ी में ब्रशिंग अंडर द कारपेट, वो कर रहे हैं. और अगर ऐसे ही हम करते रहे तो फिर एक वक्त ऐसा होता है जिसे कहेंगे कि इट विल बी टू लेट.
रवीश : बहुत-बहुत धन्यवाद लेफ़्टिनेंट जनरल एचएस पनाग. आपका यही संदेश था कि सेना पर सवाल करते रहिए. चुनावी राजनीति में इस्तेमाल मत कीजिए, मगर सवाल करते रहिए. इससे सेना का ज्यादा भला होता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं