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This Article is From Jun 19, 2017

घर में लगी आग ने छीन लिया था रामनाथ कोविंद के सिर से मां का साया - ग्रामीण

बीजेपी द्वारा रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद उनके पैतृक गांव परौंख के लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई बांटकर तथा पटाखे दगाकर खुशियां मनाई.

परौख में रामनाथ कोविंद का अभी भी दो कमरे का घर है जिसका इस्तेमाल सार्वजनिक काम के लिए होता है.

कानपुर देहात: बीजेपी द्वारा रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद हर कोई उनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाना चाहता है. एनडीटीवी संवाददाता कमाल खान ने कानपुर देहात की डेरापुर तहसील में स्थित परौख गांव का दौरा किया जहां कोविंद का जन्‍म हुआ था. परौख में आज जश्न का माहौल था. उनका बचपन बहुत ही गरीबी में बीता. घास-फूस की झोपड़ी में उनका परिवार रहता था. कोविंद के साथ कक्षा आठ तक पढ़े उनके सहपाठी जसवंत ने बताया कि जब उनकी उम्र 5-6 वर्ष की थी तो उनके घर में आग लग गई थी जिसमें उनकी मां की मौत हो गई थी. मां का साया छिनने के बाद उनके पिता ने ही उनका लालन-पालन किया. गांव में अभी भी दो कमरे का घर है जिसका इस्तेमाल सार्वजनिक काम के लिए होता है. ग्रामीणों ने बताया कि कोविंद 13 साल की उम्र में 13 किमी चलकर कानपुर पढ़ने जाते थे.

कानपुर में भी जश्न का माहौल
कानपुर के कल्याणपुर स्थित महर्षि‍ दयानन्द विहार कॉलोनी में जश्न का माहौल है. शहर के मानचित्र पर कोई खास पहचान न रखने वाले इस इलाके के निवासी अपने पड़ोसी रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद खुशियां मना रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा दिल्ली में एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर कोविंद का नाम घोषित किये जाने के साथ ही दयानन्द विहार कॉलोनी के निवासियों में खुशी की लहर दौड़ गई. कोविंद का एक घर इसी कॉलोनी में है. बड़ी संख्या में लोग अपने पड़ोसी को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद सड़कों पर ढोल-नगाड़े बजाने उतर पड़े और उन्होंने जमकर पटाखे भी जलाए.

मिठाई से परहेज करते हैं कोविंद 
वर्ष 1996 से 2008 तक कोविंद के जनसम्पर्क अधिकारी रहे अशोक द्विवेदी ने बताया कि बेहद सामान्य पृष्ठभूमि वाले कोविंद अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के बल पर इस बुलंदी तक पहुंचे हैं. कोविंद की पसंद-नापसंद के बारे में उन्होंने बताया कि वह अन्तर्मुखी स्वभाव के हैं और सादा जीवन जीने में विश्वास करते हैं. उन्हें सादा भोजन पसंद है और मिठाई से परहेज करते हैं. वह लगातार उनके सम्पर्क में हैं और वर्ष 2012 में उनकी पत्नी के निधन पर वह उनके घर आये थे.

गांव के लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई बांटकर तथा पटाखे दगाकर खुशियां मनाई. कोविंद की भांजी और पेशे से शिक्षिका हेमलता ने कहा, "हम उनसे करीब 10 दिन पहले पटना में मिले थे, तब तक हमें जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के प्रत्याशी बनेंगे. यह हमारे लिये गर्व की बात है."

(इनपुट भाषा से भी)

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